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सूरज, तुमसे मुंह दिखाई नहीं लेगा

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एक अमूर्त काया ही है मेरी प्रेयसी जिसे प्रेम करता हूं जब रोती है.  सारा जहां कहता है  बारिश हो रही है.. जब हंसती है  दुनिया वाले  दिन को खुशगवार कहते है और जब संवरती है तो  उस रात को  पूर्णिमा का नाम देते है. एक अमूर्त काया ही है मेरी प्रेयसी  उसके रोने, हंसने, और संवरने से  निढाल होते है..दुनिया वाले देखने के बजाय  महसूस करना रोने, हंसने और संवरने से  जो साकार होती है  वहीं है मेरी प्रेयसी  नजर आये, तो  मेरा जिक्र करना  सूरज, तुमसे मुंह दिखाई नहीं लेगा 03.05.2013

हम छुप रहे है..मिलने के बहाने.

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शाम डूब रही है.. चांद के आगोश में हम छुप रहे है मिलने के बहाने.. इस शाम का रंग ..बड़ा बेरंग है. घुंघरु खनके नहीं मेरी गली के चौराहे पर इश्क का दीया मेरे दिल में भी जलता अफसोस, उस लौ में संवरने वाला नहीं मिलता. कत्ल भरी निगाहों की मल्लिका सिर्फ तुम्हीं हो वाह, ये भरम सिर्फ तुम्हीं को है. मगर, हम भी वो लौ है जो, नहीं बुझते .......जहर के छीटों  से इक हाथ में नई फसल की सूखी डांठ दूजे में मौत का औजार खुद का पेट भरने को कतर रहा हूं जिस्म लहलहाते खेतों का.. तपन भरी धूप में छलकते पसीने की बूंद कुछ गले उतर रही है सूखे गले की सूखी थूंक चाय में भीगी हुई, रोटियों की तरह मुझे चाहिए गरमागरम, कुछ आपकी तरह.

इक कप के मिठास में

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सोचा कि इस गम को  डुबोके पी जाऊं शराब में  पीते-पीते शाम हो गई गम तैरता रहा.. मेरे ही ख्याल में  लाजवाब है..हर कला आपके अंदाज में  हर कोई घुलता है..इक कप के मिठास में  बड़ी बेसब्र है दुनिया कि कौन कातिल है यहां गर वो मिले अपने कफन में  तो..उसे भी रुला डाले दुनिया गर शाम गुजरती है मयखाने में  तो समां से पूछो  क्यूं दीवाने डूब रहे है दो घूंट शराब में  हर खिलती कली पर भौरां मेहरबान है.. कौन बताएं उन्हें कि  ये हरकत नादान है.. दिख रही है जिंदगी  उजड़ते पेड़ की तरह  हर तरफ दरारें है इसमें  टूटती शाख की तरह  तहखानों में बंद ना होगी  जिंदगी फिर इस कदर  हम ढूंढ़ते रहेंगे..चांदनी  पूर्णिमा की रात की तरह.

..कि तेरा शरमाती आंखों से मुस्कुरा देना..

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बरसों पहले लिखी हुई कुछ लाइनें.. वो लम्हें कैसे धुंधले हो जाएं मेरी यादों के शीशे में ..कि तेरा शरमाती  आंखों से मुस्कुरा देना.. ये चाहत उनकी भी थी  तैयार हम भी हुए कुछ पल की बरसात के बाद  ठंडे पड़ गए बदन के शोले  अंजान हम है.. बहारों के लौट आने तक  बिन पतझड़ के संभव नहीं  नई कोंपलों का निकलना.. हो गई.. तलब हमें गए-ए-यार की  प्याले भरे रह गए जैसे भरी मेरी आंख थी वो घूंट तड़प गई मेरी वफा से  बिखर गए हम .. उसी से लिपट के..

और, चांद किसी और ने देखा

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कारवां वफ़ा का निकला ..सारी रात जागते रहें हम  और, चांद किसी और ने देखा. आज सब कुछ बिकाऊ है शीशे का दिल हो.. या औरत का जिस्म  ...चौक पे उम्मीद है चलेगी जिंदगी  बसंती झोकों की तरह  पर ठहरी है ऐसे.. जैसे पांव भारी है नई दुल्हन के. नग्में लिख रहा हूं तन्हाईयों में गुनगुनाने को  तुम्हें याद कर रहा हूं और, सबकुछ भूल जाने को. रंगीन होती है..तेरी यादों की शाम टटोलता हूं वो  मिलन की रात  बहुत लोग ठहरे हैं मेरे कमरे पर  दिल लगता नहीं चर्चों में.   21 मई 2009 को लिखा था.

इक प्यास

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इक प्यास सी लगी है तुझे देखकर भीग रहा है तन बदन बारिश की बूंदों से.. लेकिन प्यास बुझती नहीं.. पिया नहीं जा रहा कुछ तुझे देखकर.. ये कैसी प्यास है जो नहीं बुझती पानी के कतरों से तड़प रहा हूं पानी पीकर भी.. तू क्या है, जो बढ़ती जा रही है प्यास तुझे देखकर.. अजीब इत्तेफाक है पसरा है पानी हर तरफ पीता जा रहा हूं कि, शायद मिट जाए तुझे देखकर.. ये बढ़ती जा रही है अनंत की तरफ ये प्यास मिटती नहीं तुझे देखकर.. आके करीब पिला दो अपने लबों से.. तेरे हाथों के स्पर्श से बना जाम.. भिगो जाएगा जिस्म को अंदर से.. ये प्यास मिट जाएगी तुझे पाकर.. तू क्या है जो किसी में जगा देती है इक प्यास और करीब आके मिटा देती है प्यास.. 28.03.2013 * मई 2008 में लिखी गई यह कविता आज मैंने अपने ब्लॉग पर पोस्ट की है. 

मैं चाहता हूं, तुझे..

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ये दिल मदहोश है, तेरे प्यार के तरन्नुम में तू मुझे संवरने दे, अपनी नजरों के आइने में. मैं चाहता हूं,  तुझे दिल की गहराइयों से अपने जेहन की दीवारों पर लिखे हैं नाम तेरे. तू मुझे जी लेने दे, अपने प्यार के साए में इक टूटे हुए दिल की दुआएं होगी, तेरे दामन में. तेरी तस्वीरों को हमने, अपनी यादों में सजाया मेरे सोने के लिए तूने अपना आंचल बिछाया. तुझे देखकर सोचता हूं, तू ख्वाब है या हकीकत मैं समर्पित हूं तेरे लिए, जिंदगी हो या मौत का निमंत्रण. 2009 में लिखी एक और कविता को 4 सालों बाद ब्लॉग पर लगाना एक अलग एहसास दे रहा है. 

मानसून के लिए

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courtesy_ Google डाकिए के मार्फत एक लिफाफा आता रहा मानसून के लिए.. मैं लौटाता रहा लौटाता रहा.. बरसों बाद बुकसेल्फ से एक नोटबुक गिरी हवा के थपेड़ों से..टकराकर चंद नज्मों के साथ गुलाब का एक सूखा फूल अपनी गर्माहट बचाए हुए था मानसून के लिए.. कागज के निचले छोर पर डॉट डॉट करके ...लिखा था वाक्यांश के एक शब्द बताओ जिसकी उपमा ना दी जा सके लंबे वक्त से हवा में खामोशी तैर रही है कोई जवाब ना आया. मानसून की ओर से.. 24.03.2013

तुम्हारी उपस्थिति बनी रही..

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हमारे प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए  मेरी कविताओं का  कविता होना  या पेंटिंग्स का  पेंटिंग्स होना  कितना जरुरी है? तुम्हें मालूम है क्या या अनजान बनती हो सबकुछ बतिया कर भी तटस्थ भाव से  मैं क्या कहूं कैसे परिभाषित करूं कि तुम्हारी असहमतियों के बावजूद  मैंने एक नापाक हरकत की है अपने दिलो दिमाग में  तुम्हारी एक तस्वीर बनाई है यह तुम्हारी तरह दिखती है इसलिए पलकों के बंद दरवाजे में छुपा रखा है  सपनों के गलियारे में इसकी पेंटिंग लगा रखी है हर रोज आधी रात को  तुम्हारे कैनवास के साए में इंतजार करता हूं कि  तुम आओगी मेरी अंगुलियां चटकाने  और हथेलियों को थामने  जो थकती नहीं है  तुम्हारे बालों को संवारते  रंगों से तुम्हारा श्रृंगार करते  सोचता हूं  चांद की चोरी-चोरी  कभी तो तुम आओगी  सपनों के गलियारे में  पलकों के बंद किवाड़ खोलकर  मेरी बनाई पेंटिंग्स निहारने.. उस दिन, तुमसे नजरें मिलाऊंगा तुम्हारे रेशमी बालों में  अपने हाथों से रंग लगाऊंगा और तुम्हें अपने हाथों से आहिस्ता अपने सिरहाने बिठाऊंगा ताकि जब तुम्ह

उलझी नींद

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बरसात रात ख्वाब शहर और चांद भी  सब कुछ वहीं है लेकिन नींद अब भी उस चेहरे में उलझी है जो आजकल आंखों पर तारी है. 23.02.2013

सपने बुढ़ाती आंखों के

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व्यापारी हां, यहीं लिखा था सौदागर का अर्थ  भाषा कि किताबों में  फिर सपनों के सौदागर का मतलब सपने खरीदने और बेचने वाला वो बेचता है सबकुछ  रोटी से लेकर अंगिया तक  किताबों से लेकर  सपनों तक...सबकुछ  सपनों का खरीदना और बेचना उनके लिए धंधा है लेकिन तुम मत फंसना  इनके मायाजाल में ये तुम्हारे संघर्षों को खरीद लेंगे प्लास्टिक नुमा खिलौनों को नचाकर फिर तुम्हारे सपने  'प्रॉडक्ट' बन जाएंगे और उन उत्पादों को बेचने के लिए  तुम्हारे सपनों का हवाला देंगे अपने मुताबिक चाहे वो कितने ही कोरे और भावनात्मक हो उन्हें सिर्फ कीमत चाहिए  तुम्हारे सपनों की जो अब उत्पाद है  उनके लिए और उत्पादों को बेचना ही सौदागरों का काम है चाहे क्यों ना वो  तुम्हारे सपने ही खरीदे कब समझोगे तुम  तुम्हारी  सूखी आंखों का सपना उत्पाद नहीं है कि उसे बेच डालो  तुम सपना समझ के  झोपड़ पट्टी को बेच डालों सपनों के महल के लिए  फिर वहां खड़ी होगी कोई एंटालिका  और सपनों की कीमत  तुम्हें बेघर बना गई होगी क्योंकि एंटालिका की कीमत  तय करने वाल

लावारिस सपने

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मैं जानता हूं उन सबकी तरह  जो तुमसे..  पहले मिले थे मुझे जो मुझे अपना कहते थे तुमने भी मेरा बढ़िया  उपयोग किया है और जब मैंने तुम्हें पहचाना  मेरी आंखों में  लावारिस पड़े थे  मेरे सपने

मैं तैरना चाहता हूं.

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courtesy: google  लड़कपन में जब मैं तैरना नहीं जानता था गंगा के कोल में सीखता था तमाम कोशिशों के बाद जब सब बेचैन हो जाते एक सुर में कहते तू ये जलभंवरा पी ले तैरना सीख जाएंगा जैसे ये भागता है पानी की सतह पर.. जवानी में मैं बह रहा हूं अनोखे बहाव में जो मुझसे शुरू होता है मेरे भीतर से उठता है खुशी का एक भाव चेहरे पर गंभीरता लिए मन में छा जाता है तुम्हारा नाम अंतः मस्तिष्क में टकराता है लेकिन मैं सिर्फ बहना नहीं चाहता तैरना चाहता हूं बावजूद इसके कि लड़कपन में सीख नहीं पाया तैरना.. गंगा के बहाव की तरह मैं तैरना चाहता हूं तुम्हारे आकर्षण में चहकते अंर्तमन में गूंजती तुम्हारी प्रतिध्वनियों के बीच स्थिर होकर लहरों पर दौड़ते भंवरे की तरह जिसके बहाव का वेग नियंत्रित और अनियंत्रित होता है बिना बताए तुम्हें... मैं तैरना चाहता हूं..

हेयरक्लिप

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तुम्हारे बालों में टंगा हेयरक्लिप होना चाहता हूं.                   (January 2013)

तुम्हारी दो आंखे..

हमें यूं छोड़कर तुम्हारा दूसरे शहर चले जाना जैसे हवामहल के झरोंखो पर किसी ने पर्दा डाल दिया हो मैं लाल बत्ती के उस पार बुत बना..ठिठका हूं ढूंढ़ते हुए तुम्हारी दो आंखे.. 16.12.2012

कमरे की बत्तियां

मेरी उदासियों का साया तुम पर ना हो. लो, मैंने कमरे की बत्तियां बुझा दी.. तुम्हारी अपनी महफिलों में.. गैरों की आवाजाही है..  मेरे आने से.. जलवों की रोशनाई कम हुई..  ये बताओ.. उदास रातों के लिए  तुमने कीमत क्या चुकाई.. 16.12.2012

किसी को क्या परेशानी थी, जो, फूंक दी मेरी दुकान

किसी को क्या परेशानी थी मेरे बूढ़े बाप से जो, फूंक दी मेरी दुकान मेरा बाप जो कमजोर था, सीधा था  भट्ठी झोंका करता था अपने बच्चों का पेट पालने के लिए खेतों में काम आने वाले औजार बनाता हंसिया, गड़ासी और खुरपी घरों में पंखे लटकाने के लिए हुक और चिरई काड़ा किसी को क्या परेशानी थी जो लोगों ने फूंक दी हमारी दुकान चुरा ले गए हथौड़े और सड़सी वो, निहाय जिस पर मेरा बाप लोहे के औजार गढ़ता था उम्र के आठवें दशक में किसी को क्या परेशानी थी जो फूंक दी मेरी दुकान मैं जानना चाहता हूं क्या, जमीदारों और सामंतों के इलाके में भट्ठी झोंकना गुनाह है जिनके पास हजारों एकड़ जमीनें है वहीं आते थे, हंसिया में दांत निकलवाने लेकिन 8 रूपए देने में उन्हें पसीने आते थे उन्हें लगता था मेरा बाप ज्यादा मांग रहा अपनी मेहनत का दाम भट्ठी की आग में झुलसने का हक आखिर क्या वजह थी जो, लोगों ने फूंक दी हमारी दुकान मेरा बाप मुझसे कहता है ऐसी बात नहीं थी बेटा मैं किसी से क्यों झगड़ा करूंगा हमें पेट जिलाने के लिए दो रुपए कमाने हैं हमें किसी से क्यों शिकायत है लेकिन हम जानना चाहते है क्यों लोगों ने

रुपयों की आग जलाता हूं..

जब, घुप्प अंधेरी जिंदगी में रुपयों की आग जलाता हूं.. तुम्हारी मुहब्बत पिघलती हैं कुछ अपने लिए...कुछ मेरे लिए.. माथे पर उभरे पसीने की तरह.. तुम जलती हो.. हमें आजमाने के लिए 11.12.2012

बदन की ऐंठन

बदन की ऐंठन तुम्हारे स्पर्श से खुल रही है रिस रिस कर मैं आहिस्ता आहिस्ता मीठे दर्द में डूबा जा रहा हूं      2 तुमने याद किया हाथों में खुजली हुई पैरों में गुदगुदी सी आई पलकों ने तुम्हारे होने की हामी भरी और फिर हिचकियों ने जगाया धड़कनों के बंद दरवाजे खोलने को जिसे तुमने खटखटाया था मेरा नाम लेकर..

अरारो के साए में

इस बेचैनी का कोई सिरा नहीं है ..तुम यूं ही उलझती जा रही हो यूं ही रात ख्यालों में फिरते रहे ..तुम आई तो घुंघरू बिखरे मिले यूं चुपके से आना ठीक ना था मोहल्ला, तुम्हारी फिक्र में करवटें बदलता है फासले का सिरा थामे.. हम तुम खड़े है.. अरारो के साए में