सूरज, तुमसे मुंह दिखाई नहीं लेगा
एक अमूर्त काया ही है मेरी प्रेयसी जिसे प्रेम करता हूं जब रोती है. सारा जहां कहता है बारिश हो रही है.. जब हंसती है दुनिया वाले दिन को खुशगवार कहते है और जब संवरती है तो उस रात को पूर्णिमा का नाम देते है. एक अमूर्त काया ही है मेरी प्रेयसी उसके रोने, हंसने, और संवरने से निढाल होते है..दुनिया वाले देखने के बजाय महसूस करना रोने, हंसने और संवरने से जो साकार होती है वहीं है मेरी प्रेयसी नजर आये, तो मेरा जिक्र करना सूरज, तुमसे मुंह दिखाई नहीं लेगा 03.05.2013