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ईश्वर की आराधना और मेरा अंतर्द्वंद

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Courtesy_Nandlal Sharma नवरात्र चल रहा है और हर कोई ईश्वर की आराधना में जुटा है। मां दुर्गे की पूजा, व्रत और कर्मकांड में हर व्यक्ति लीन दिखाई पड़ रहा है पूरी तन्मयता और भाव से.. लेकिन ये लोग सात्विक भाव और लगन कहां से आते हैं? जब अन्य व्यक्तियों को पूजा करते हुए देखता हूं तो यही सोचता हूं कि आखिर ये लोग कैसे दो-दो घंटे ध्यानमग्न होकर पूजा कर लेते हैं। मैं तो कर ही नहीं पाता हूं।  ईश्वर के सामने निर्विकार भाव से खड़ा भी नहीं हो पाता हूं। आखिर दो-दो घंटे लोग पूजा और आराधना कैसे कर लेते हैं। एक मूर्ति, कैलेंडर या फोटो के सामने कैसे ध्यानमग्न हो पाते हैं। चलो मान लेते हैं कि सवा करोड़ के इस देश में एकाध करोड़ लोग ध्यान करके स्वयं को स्थिरपज्ञ बना लिए होंगे। अपने आराध्य के सामने बैठने पर ध्यानमग्न हो जाते होंगे..  लेकिन बाकियों का क्या? आखिर वो कैसे ध्यान धारण करते हैं।  मैं नास्तिक नहीं हूं। ईश्वर में मेरी आस्था है, लेकिन बनावटीपन और ढकोसले मुझे पसंद नहीं है। मैं किसी का फॉलोवर नहीं हो सकता। चाहे वो ईश्वर ही क्यों न हो, मेरी उनमें आस्था है और मैं उनका सम्मान कर...