बदन की ऐंठन

बदन की ऐंठन
तुम्हारे स्पर्श से खुल रही है
रिस रिस कर
मैं आहिस्ता आहिस्ता
मीठे दर्द में
डूबा जा रहा हूं

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तुमने याद किया
हाथों में खुजली हुई
पैरों में गुदगुदी सी आई
पलकों ने तुम्हारे होने की हामी भरी
और फिर हिचकियों ने जगाया
धड़कनों के बंद दरवाजे खोलने को
जिसे तुमने खटखटाया था
मेरा नाम लेकर..

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