और, चांद किसी और ने देखा

कारवां वफ़ा का निकला
..सारी रात जागते रहें हम 
और, चांद किसी और ने देखा.

आज सब कुछ बिकाऊ है
शीशे का दिल हो.. या औरत का जिस्म 
...चौक पे

उम्मीद है चलेगी जिंदगी 
बसंती झोकों की तरह 
पर ठहरी है ऐसे..
जैसे पांव भारी है नई दुल्हन के.

नग्में लिख रहा हूं
तन्हाईयों में गुनगुनाने को 
तुम्हें याद कर रहा हूं
और, सबकुछ भूल जाने को.

रंगीन होती है..तेरी यादों की शाम
टटोलता हूं वो 
मिलन की रात 
बहुत लोग ठहरे हैं मेरे कमरे पर 
दिल लगता नहीं चर्चों में.  

21 मई 2009 को लिखा था.



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"एक हथौड़े वाला घर में और हुआ "

Vande Bharat Express : A Journey to Varanasi

बुक रिव्यू: मुर्गीखाने में रुदन को ढांपने खातिर गीत गाती कठपुतलियां