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अल्बर्ट हॉल, मिस्त्र की ममी और पधारो म्हारे देश

हजारों सालों से मरी हुई देह को मसाला लगाकर सहेजा गया हैं। निर्जीव देह आज भी उसी तरह सोई है जैसे जिंदा शरीर को मौत ने अभी गले लगाया हो। दिन भर में सैकड़ों लोग यहां घूमने आते है और उनकी बातें यहां कोलाहल पैदा करती है। लेकिन ममी को देख लोग एकबारगी हतप्रभ हो जाते हैं। जिसके बारे में आपने सिर्फ किताबों में पढ़ा हो, अगर वह आपकी आंखों के सामने पसरी मिली तो चौंकना लाजिमी है। भारत के सबसे खूबसूरत म्यूजियमों में से एक अल्बर्ट हॉल में मिस्त्र की यह ममी आज भी पूरे तामझाम के साथ सहेज कर रखी गई है। अल्बर्ट हॉल में कई सारी चीजें आपको देखने को मिल जाएंगी। दीवारों पर टंगी पेटिंग्स, मूर्तियां और सदियों पुराने कपड़ें आपको लुभा सकते हैं। यहीं चबूतरे पर 1883 से संरक्षित 322 से 30 ईसा पूर्व की ममी सोई मिल जाएगी। यह मिस्त्र के प्राचीन नगर पैनोपोलिस के अखमीन क्षेत्र की है। जो मिस्त्र में ममीफिकेशन के लिए अग्रणी शहरों में जाना जाता हैं। सालों से पड़ी इस ममी की लकड़ी का ताबूत और मृत देह के ऊपर लिपटी कुछ पट्टियां खराब हो गई थी। जिन्हें ठीक कराया गया है। इसके लिए बाकायदा 2011 में मिस्त्र से एक दल बुलाया गया ...

शहर में भादो की बारिश

गुलाबी शहर का रंग इस भादो में मटमैला हो गया। सावन में फुहारों का इंतजार कर रहे इस शहर को बादलों ने खूब भिगोया। शहर की तस्वीर कुछ मटमैली हो गई। पहाड़ अपनी जगह से खिसककर समतल धरातल पर बिछ गए तो निचले इलाकों को मौसमी लहरों ने खूब हिलोरा। सीवर जाम हो गए, नालियां उफनने लगी और कचरा सड़कों पर बिखर गया। सीएम साहब सहित सभी ने माना, शहर में अतिवृष्टि हुई हैं। लेकिन जंगल में मोर नाचा, किसने देखा की तर्ज पर, रामगढ़ में बारिश हुई किसने देखा? रामगढ़ और जमवारामगढ़ में रहने वालों को यह कहावत ज्यादा समझ में आई। पूरा शहर बरसात में डूबा नजर आया, लेकिन रामगढ़ बांध में पानी नहीं पहुंचा। अमानीशाह नाला (कहते है पहले यहां द्रव्यवती नदी बहती थी) सूखा रहा। बारिश ने शहर का रंग बदला, लोग बेघर हुए, राहत शिविर खुले और सरकार के मुखिया के हुक्मरान का दौरा भी हुआ। सरकार की व्यस्तता बढ़ी, बारिश से उजड़े लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए। बारिश के पानी में उखड़ी सड़क रातों रात बिछ गई, सरकार की खूब वाहवाही हुई किसी के चेहरे पर दर्द नजर नहीं आया। रात बीती भी नहीं थी, सड़क अपनी औकात पर आ गई, राहत शिविर का भी यहीं...

हजरात, ये मनाली और शिमला नहीं, गुलाबी शहर है।

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इससे पहले कि आप कोई कयास लगाए। मैं स्पष्ट कर दूं कि ये तस्वीरें किसी स्वप्निले शहर की नहीं हैं। ना ही ये शिमला और मनाली है। पहाड़ों के साए से तीसरी निगाह में कैद इन तस्वीरों पर बादलों की छाया हैं। गुलाबी शहर जयपुर का मौसम इन दिनों बारिश और बादलों के कहकहे से गुलजार हैं।  अरब सागर के दरिया से उठा मानसून भादो के पखवाड़े में नाहरगढ़ की पहाडिय़ों पर बादलों के स्वरुप में आराम फरमा रहा हैं। लिहाजा पिछले दस दिनों से यहां रिमझिम बारिश का दौर जारी हैं। किले, इमारतें और पैलेस नहा धोकर मुस्कुरा रहे हैं अपने मेहमानों के स्वागत में, तो पहाडिय़ों ने हरियाली की हल्की चादर ओढ़ ली हैं। आपने सुना होगा, भादों की रात बड़ी डरावनी होती हैं? लेकिन मैं नहीं मानता, क्योंकि गुलाबी शहर में भादो के दिन और रात मौसम के गुलाबीपन में भीगे हुए हैं। आपने शरद, शिशिर और बसंत में भले ही गुलाबी शहर को आंखों भर निहारा हो। लेकिन वर्षा ऋतु में इसे देखना मादकता भरा हैं। जब आपकी आंखें पहाड़ों पर बैठे बादलों से टकरा जाए.... सभी फोटोः मनोज श्रेष्ठ