हम छुप रहे है..मिलने के बहाने.

शाम डूब रही है..
चांद के आगोश में
हम छुप रहे है
मिलने के बहाने..

इस शाम का रंग
..बड़ा बेरंग है.
घुंघरु खनके नहीं
मेरी गली के चौराहे पर

इश्क का दीया
मेरे दिल में भी जलता
अफसोस, उस लौ में संवरने वाला नहीं मिलता.

कत्ल भरी निगाहों की
मल्लिका सिर्फ तुम्हीं हो
वाह, ये भरम सिर्फ तुम्हीं को है.
मगर, हम भी वो लौ है
जो, नहीं बुझते
.......जहर के छीटों  से

इक हाथ में
नई फसल की सूखी डांठ
दूजे में मौत का औजार
खुद का पेट भरने को
कतर रहा हूं जिस्म
लहलहाते खेतों का..

तपन भरी धूप में
छलकते पसीने की बूंद
कुछ गले उतर रही है
सूखे गले की सूखी थूंक

चाय में भीगी हुई, रोटियों की तरह
मुझे चाहिए गरमागरम, कुछ आपकी तरह.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"एक हथौड़े वाला घर में और हुआ "

बुक रिव्यू: मुर्गीखाने में रुदन को ढांपने खातिर गीत गाती कठपुतलियां

FIRE IN BABYLON