संविधान नागरिकों को अधिकार देता है, लेकिन जब संविधान ही संकट में हो तो वह नागरिकों से साहस की मांग करता है कि नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होंगे. लेकिन डर और नफरत के अंधड़ में फंसे लोग सवाल करने का विवेक खो चुके होते हैं, वे अपनी नौकरी, ईएमआई और भविष्य की फिक्र में सत्ता से सवाल करने की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं. बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो अपना सबकुछ गंवाकर अंधेरे के पार देखने की कोशिश करते हैं और नागरिक धर्म का पालन करते हुए सत्ता को आईना दिखाते हैं. वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर मिश्र (जो चंद रोज पहले देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों में से एक में बतौर एग्जिक्यूटिव एडिटर लीडरशिप पोजिशन में थे) ने ऐसा साहस दिखाया है. दयाशंकर मिश्र ने अपनी किताब 'राहुल गांधीः सांप्रदायिकता, दुष्प्रचार और तानाशाही से ऐतिहासिक संघर्ष' के जरिए सत्ता के सामने आईना रखा है. ये आईना नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल को घटनाओं के आलोक में देखता है, जिसमें पाठक को साफ दिखाई देता है कि कैसे 2014 के बाद कभी गौ मांस के नाम पर तो कभी हिंदुत्व की रक्षा के लिए नागरिकों की हत्या शुरू हो