गुरमेहर के बहाने गुलमोहर की बात
जब भी गुरमेहर सुनता या पढ़ता हूं। अतःमस्तिष्क में गुलमोहर की प्रतिध्वनि आती है और गुलमोहर से जुड़ी कई यादें ताजा हो जाती हैं। पांचवीं तक हर साल छमाही और सालाना परीक्षा के दौरान मिट्टी कला की भी परीक्षा होती थी, इस इम्तिहान में सबको मिट्टी से कुछ न कुछ बनाकर और सजा कर ले जाना होता था और तब मार होती थी, गुलमोहर के फूल के लिए। ज्यादातर बच्चे मिट्टी का गिलास बनाते अपने हाथों से। पहली या गदहिया गोल वाले अपने पिता से मां से बनवाते, कुछ की बहनें मदद करतीं। कुल मिला जुलाकर गिलास बन जाता। बनाने के बाद सबसे पहले गिलास को सुखाया जाता, इसके बाद गिलास को रंगा जाता। बलुई मिट्टी से बना गिलास सबसे शानदार उतरता। सुराहियां बलुई मिट्टी की होती हैं। उसे सूखने में ज्यादा टाइम नहीं लगता। जिसे अनुभव या ज्ञान नहीं होता, वो काली मिट्टी उठा लाता। काली मिट्टी से बनी गिलास भारी होती और उस पर रंग भी नहीं चढ़ता। बहरहाल, लोग अपनी सुविधा के मुताबिक रंग रोगन करते और चल पड़ते गुलमोहर की खोज में। हमारी तरफ गुलमोहर के पेड़ों की ऊंचाई काफी होती है, विशाल पेड़ होते हैं। हालांकि दिल्ली में मैंने छोटे-छोटे पेड़ भी