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मानसून के लिए

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courtesy_ Google डाकिए के मार्फत एक लिफाफा आता रहा मानसून के लिए.. मैं लौटाता रहा लौटाता रहा.. बरसों बाद बुकसेल्फ से एक नोटबुक गिरी हवा के थपेड़ों से..टकराकर चंद नज्मों के साथ गुलाब का एक सूखा फूल अपनी गर्माहट बचाए हुए था मानसून के लिए.. कागज के निचले छोर पर डॉट डॉट करके ...लिखा था वाक्यांश के एक शब्द बताओ जिसकी उपमा ना दी जा सके लंबे वक्त से हवा में खामोशी तैर रही है कोई जवाब ना आया. मानसून की ओर से.. 24.03.2013

क्रिकेट की आत्मा बचाने और बेचने का ‘टेस्ट’

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courtesy_google पटौदी मेमोरियल लेक्चर के दौरान बोलते हुए सुनील गावस्कर ने कहा, ‘ ग्लोबल स्तर पर क्रिकेट के प्रसार के लिए टी-20 और वनडे उचित फॉर्मेट है। लेकिन हमें क्रिकेट की आत्मा टेस्ट को बचाना होगा। ‘ गावस्कर ने टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए जो समाधान बताए उनमें सबसे प्रमुख था स्पोर्टिंग विकेट तैयार करना। लेकिन क्या स्पोर्टिंग विकेट तैयार करने से ही टेस्ट क्रिकेट की चुनौतियों का हल मिल जाएगा। लिटिल मास्टर के इस बयान को गहराई से समझा जाए तो टेस्ट क्रिकेट के सामने खड़ी चुनौतियों के कई चेहरे उभर कर आते है और उनमें सबसे महत्वपूर्ण है बाजार का हाथ, किसके साथ ? कहते है, किसी भी वस्तु की कीमत मार्केट में उसकी मांग से तय होती है। ठीक यही चीज टेस्ट क्रिकेट, वनडे और टी-20 पर भी लागू होती है। वर्तमान में शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां भारत की तरह बाजार ने क्रिकेट को मार्केटिंग, प्रमोशन और बेचने के लिए इस्तेमाल किया हो। गावस्कर अपने पूरे लेक्चर के दौरान टेस्ट, वनडे और टी-20 के इस आर्थिक पहलू पर नहीं बोलते। क्योंकि वह भी किसी ना किसी टेलीविजन चैनल के साथ जुड़ें हैं। आइए, टेस्ट, वनडे

SHORT STORY (लघु कथा) मां की दुआओं में असर होता है.

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गलियों, छज्जों और खिड़कियों की खाक छानने के बाद भी अमूमन दिन में एकाध बार ही उसके दर्शन हो पाते,     उस दिन वह अपनी मां के साथ आयी, कुएं की देहरी पर मैं उसकी राह देख रहा था। पूजा करने के बाद प्रसाद देने के बहाने वह मेरे पास आई..मैंने पूछा, क्या मांगा, बोली, तुम्हारी सलामती और साथ। तुम्हारी मां ने क्या मांगा, घर, वर और हजारों खुशियां..उसने प्रसाद देने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कानों में कहा, मेरी शादी की बात चल रही है..मेरी आंखे उसके चेहरे पर ठहर गई..अंगुलियां, उसकी अंगुलियों से उलझ गई...मैं उसे खोने के डर में डूबता चला गया..दूर कहीं अंतर्मन में गूंज रहा था। मां की दुआओं में असर होता है...

..और अंत में खुद के लिए खेलते सचिन

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courtesy_google चेन्नई के चेपक स्टेडियम में धोनी ब्रिगेड कंगारुओं के खिलाफ एक इकाई के रूप में खेलती नजर आई। इसमें कोई शक नहीं कि अपने घर में टीम का प्रदर्शन प्रभावशाली रहा। लेकिन इसी मैच में एक शख्स खुद के लिए खेलता नजर आया। ढाई दशक से ज्यादा समय तक करोड़ों लोगों के लिए खेलने वाले सचिन रमेश तेंदुलकर आज खुद को साबित करने के लिए खेल रहे है। मजेदार बात ये है कि उन्हें स्वयं के बनाए मानकों को लांघना है या फिर उनकी चमक पिछले के बराबर रखनी है। मेरी स्मृतियों में जो पहला वाकया दर्ज है वह 1999 में इंग्लैंड में चल रहे विश्वकप टूर्नामेंट का है। भारतीय टीम अपने दोनों शुरूआती मैच दक्षिण अफ्रीका और जिंबाब्वे से हार चुकी थी। उस समय मोहल्ले के चौक पर रखे एक रेडियो पर चालीस कान केन्द्रित होते। लेकिन उस दिन सब यहीं अफसोस जता रहे थे कि काश सचिन इस समय टीम में होते, तो हमारी उम्मीदें और जवां होती। गौरतलब है कि पिता के निधन के चलते सचिन टीम में नहीं थे। केन्या के खिलाफ सचिन टीम में लौटे और शानदार शतक से अपने चाहने वालों की उम्मीदें को पंख लगा दिए। लेकिन आज सचिन यह साबित करना चाह रहे है

तुम्हारी उपस्थिति बनी रही..

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हमारे प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए  मेरी कविताओं का  कविता होना  या पेंटिंग्स का  पेंटिंग्स होना  कितना जरुरी है? तुम्हें मालूम है क्या या अनजान बनती हो सबकुछ बतिया कर भी तटस्थ भाव से  मैं क्या कहूं कैसे परिभाषित करूं कि तुम्हारी असहमतियों के बावजूद  मैंने एक नापाक हरकत की है अपने दिलो दिमाग में  तुम्हारी एक तस्वीर बनाई है यह तुम्हारी तरह दिखती है इसलिए पलकों के बंद दरवाजे में छुपा रखा है  सपनों के गलियारे में इसकी पेंटिंग लगा रखी है हर रोज आधी रात को  तुम्हारे कैनवास के साए में इंतजार करता हूं कि  तुम आओगी मेरी अंगुलियां चटकाने  और हथेलियों को थामने  जो थकती नहीं है  तुम्हारे बालों को संवारते  रंगों से तुम्हारा श्रृंगार करते  सोचता हूं  चांद की चोरी-चोरी  कभी तो तुम आओगी  सपनों के गलियारे में  पलकों के बंद किवाड़ खोलकर  मेरी बनाई पेंटिंग्स निहारने.. उस दिन, तुमसे नजरें मिलाऊंगा तुम्हारे रेशमी बालों में  अपने हाथों से रंग लगाऊंगा और तुम्हें अपने हाथों से आहिस्ता अपने सिरहाने बिठाऊंगा ताकि जब तुम्ह

उलझी नींद

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बरसात रात ख्वाब शहर और चांद भी  सब कुछ वहीं है लेकिन नींद अब भी उस चेहरे में उलझी है जो आजकल आंखों पर तारी है. 23.02.2013

SHORT STORY (लघु कथा): बेदाग रोटियां

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तवे से उतरती रोटियों पर जलने की कोई चित्ती ना थीं, मैंने जला हुआ सरकंडा उठाया और हर रोटी को टीका लगा दिया। इससे पहले कि वो कुछ कहती..मैं खुद ही बोल पड़ा, सबमें तुम्हारा अक्स नजर आता है..मैं नहीं चाहता इन बेदाग रोटियों को नजर लग जाएं.. 17.02.2013