क्रिकेट की आत्मा बचाने और बेचने का ‘टेस्ट’

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पटौदी मेमोरियल लेक्चर के दौरान बोलते हुए सुनील गावस्कर ने कहा, ग्लोबल स्तर पर क्रिकेट के प्रसार के लिए टी-20 और वनडे उचित फॉर्मेट है। लेकिन हमें क्रिकेट की आत्मा टेस्ट को बचाना होगा। गावस्कर ने टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए जो समाधान बताए उनमें सबसे प्रमुख था स्पोर्टिंग विकेट तैयार करना। लेकिन क्या स्पोर्टिंग विकेट तैयार करने से ही टेस्ट क्रिकेट की चुनौतियों का हल मिल जाएगा।

लिटिल मास्टर के इस बयान को गहराई से समझा जाए तो टेस्ट क्रिकेट के सामने खड़ी चुनौतियों के कई चेहरे उभर कर आते है और उनमें सबसे महत्वपूर्ण है बाजार का हाथ, किसके साथ ? कहते है, किसी भी वस्तु की कीमत मार्केट में उसकी मांग से तय होती है। ठीक यही चीज टेस्ट क्रिकेट, वनडे और टी-20 पर भी लागू होती है। वर्तमान में शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां भारत की तरह बाजार ने क्रिकेट को मार्केटिंग, प्रमोशन और बेचने के लिए इस्तेमाल किया हो। गावस्कर अपने पूरे लेक्चर के दौरान टेस्ट, वनडे और टी-20 के इस आर्थिक पहलू पर नहीं बोलते। क्योंकि वह भी किसी ना किसी टेलीविजन चैनल के साथ जुड़ें हैं।

आइए, टेस्ट, वनडे और टी-20 के इस आर्थिक पहलू को समझने के लिए वापस 1950 और 60 के दशक में चलते है। इसी दौरान दो महत्वपूर्ण अविष्कार हुए, कार और टेलीविजन। इनमें से एक टेलीविजन ने क्रिकेट को देखने, दिखाने और चीजों को बेचने का तरीका बदल दिया। ध्यान देने वाली चीज यह है कि टेस्ट क्रिकेट के संदर्भ में मेमन ने 1992 में प्रकाशित अपनी किताब में लिखा है यहीं वह समय था जब पांच दिवसीय क्रिकेट अपने ही घर में क्राइसिस का सामना कर रहा था। टिकटों की बिक्री बहुत नीचे आ गिरी थी और स्टेडियम में ज्यादातर सीटें दर्शकों का इंतजार करती मिलती।

इसी समय इंग्लैंड में स्थानीय क्लबों ने आर्थिक तंगी से निपटने और क्रिकेट के प्रति लोगों का रुझान बढ़ाने के लिए ओवरों की संख्या सुनिश्चित कर दी। यहां मैच के आखिर में रिजल्ट महत्वपूर्ण था। जो टेस्ट क्रिकेट में हमेशा संभव नहीं था, मैचों के ड्रा होने की संभावना ज्यादा थी। ओवरों की तय संख्या ने हार और जीत की प्रतिशतता को एकाएक बढ़ा दिया। कैरी पैकर ने इसी फॉर्मूले को पकड़ा और इस खेल में परिवर्तन के बजाय क्रिकेट के कलेवर को ही बदल डाला। गौरतलब है कि 1970 में पैकर ने कहा था टीवी स्क्रीन के उस पार नई ऊर्जा और संभावना से भरपूर दर्शकों की एक विशाल संख्या बैठी है, जिसे इस खेल को बेचा जा सकता है, थोड़ा आकर्षक बनाकर।

ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड (दो देशों के बीच खेली जाने वाली तत्कालीन श्रृंखलाओं में सबसे ज्यादा लोकप्रिय) के बीच खेली जानी वाली एशेज श्रृंखला के एक्सक्लूसिव प्रसारण के लिए पैकर को अनुमति नहीं मिली। लेकिन ज्यादातर क्रिकेटरों ने पैकर का समर्थन किया और इन्हीं बागी क्रिकेटरों के साथ पैकर ने वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट (WSC) शुरू की। जो आगे चलकर वनडे क्रिकेट के रूप में सामने आया। वर्ल्ड क्रिकेट सीरीज ने केवल क्रिकेट को ही नहीं बेचा बल्कि पैकर ने चीजों को ऐसे मैनेज किया कि सारी वस्तुएं बेची जा सके। खिलाड़ियों को स्टार्स की तरह प्रोजेक्ट करना, नाइट मैचों का आयोजन, रंगीन कपड़ें और पिच के दोनों छोर पर कैमरा। क्रिकेट और टेलीविजन के इस कॉकटेल का जादुई असर हुआ। टेस्ट क्रिकेट को पीछे छोड़ बाजार के अनुकूल सीमित ओवरों का क्रिकेट ही मुख्य खेल बन गया। 
   
पैकर के फॉर्मूले का अल्ट्रा मॉडर्न स्वरूप आईपीएल और बाकी देशों में खेली जा रही टी-20 लीग है। टी-20 लीगों के चलते इस खेल में लाभ और हानि के प्रतिशत का ग्राफ बहुत आकर्षक बन गया है। आज टेस्ट खेलने वाले ज्यादातर देशों के पास अपनी प्रीमियर लीग है। क्योंकि वे जानते है कि आईपीएल जैसी प्रतियोगिताएं दुधारू गाय जैसी है। जहां विज्ञापन के तमाम फॉर्मूले अपनाए जा सकते हैं। लेकिन यहीं देश टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए कितने लालायित है। इसका सार्थक रूप में कोई उदाहरण नहीं मिलता। लेकिन पैसे के लिए आईपीएल जैसी लीगों में खेलने के लिए खिलाड़ियों ने अपने बोर्ड से अब भी पंगा लिया है।

आईपीएल को बाजार के खिलाड़ियों ने कैसे उपयोग किया इसे भी दो उदाहरणों से समझा जा सकता है। हममें से बहुतों को आईपीएल शुरू होने से पहले यह नहीं पता था कि एन. श्रीनिवासन की कंपनी का नाम इंडिया सीमेंट्स है। और इसका मालिक आगे चलकर भारतीय क्रिकेट पर कंट्रोल करेगा। इंडिया सीमेंट्स को जानने वाले कहते है कि यह विज्ञापनों को लेकर संकोची स्वभाव की कंपनी थीं। जिसे विज्ञापन बाजार में उतरने की सख्त जरुरत थीं। ताकि बाजार में अपने व्यापार को स्थापित कर सके।

अपनी इस योजना को लागू करने के लिए इंडिया सीमेंट्स ने आईपीएल के पहले संस्करण में चेन्नई सुपर किंग्स नाम की फ्रेंचाइजी के तहत महेन्द्र सिंह धोनी (लगभग 6 करोड़) को 1.5 मिलियन में खरीद अपने प्रचार अभियान को गति दी। मजेदार बात ये है कि श्रीनिवासन ने इसी दौरान कहा था इंडिया सीमेंट्स अपनी आईपीएल टीम को कॉलिंग कार्ड की तरह इस्तेमाल करेगा। टीम की सफलता और लोकप्रियता को देखते हुए इंडिया सीमेंट्स ने सुपरकिंग्स नाम से अपने ब्रैंड को बाजार में उतारा और इसकी पैकेजिंग को टीम की जर्सी का रंग दिया। कहा जा सकता है इंडिया सीमेंट्स ने आईपीएल को मार्केटिंग व्हीकल के रूप में बखूबी इस्तेमाल किया।

श्रीनिवासन और इंडिया सीमेंट्स से दो कदम आगे बढ़ते हुए रिचर्ड ब्रैसनन और डोनाल्ड क्रैम्प को कॉपी करने वाले विजय माल्या ने तो आईपीएल के शुरूआत में ही यह स्पष्ट कर दिया कि रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु उनके बिजनेस को प्रमोट करने का जरिया है। चाहे वह उनकी एयरलाइंस हो या शराब। आईपीएल के मैचों पर नजर रखने वाले जानते है कि साइट स्क्रीन से लेकर मैदान का हर कोना विज्ञापनों से पटा होता है। चीयर गर्ल्स और ग्लैमर का कॉकटेल यहां भी है। क्रिकेट स्टार्स के साथ फिल्म स्टार्स की उपस्थिति स्टेडियम में बैठे लोगों को क्रेजी बना रही है। धोनी और हरभजन जैसे खिलाड़ी मेक इट लॉर्ज कहते हुए एक दूसरे चैंलेज कर रहे है। मैदान पर ड्रामा, एक्शन और रिजल्ट सब कुछ है।

ऐसे में जब गावस्कर कहते है कि टी-20 और वनडे, क्रिकेट के ग्लोबलाइजेशन के लिए उचित है। तब यह समझना मुश्किल हो जाता है एक आम व्यक्ति (जिसके बारे में कहा जाता है कि वह क्रिकेट मनोरंजन के लिए देखता है) जो टी-20 और वनडे के जरिए ग्लोबलाइज्ड हो रहे क्रिकेट का आदी हो चुका है। जिसे लाइव ड्रामा और एक्शन के साथ रिजल्ट चाहिए। वह थकाऊ टेस्ट क्रिकेट क्यों देखेगा। जब उसे रिजल्ट के लिए पांचवें दिन तक इंतजार करना पड़े। क्या स्पोर्टिंग विकेट बना देने से टेस्ट क्रिकेट की चुनौतियों का हल हो जाएगा? अफसोस,  गावस्कर सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन रहे है। क्योंकि ज्यादातर देशों ने क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने का ठेका मल्टीनेशनल कंपनियों और बाजार को दे रखा है। जो अपना टेस्ट प्रॉफिट प्रतिशत के आधार पर चुनता है ना कि क्रिकेट की आत्मा को बचाने के लिए..।   
.....Published in News Magzine 30 DAYS POST

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