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Rahul Gandhi: Sampradayikta, Dushprachar, Tanashahi se Aitihasik Sangharsh ‘राहुल गांधी : सांप्रदायिकता, दुष्प्रचार, तानाशाही से ऐतिहासिक संघर्ष

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संविधान नागरिकों को अधिकार देता है, लेकिन जब संविधान ही संकट में हो तो वह नागरिकों से साहस की मांग करता है कि नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होंगे. लेकिन डर और नफरत के अंधड़ में फंसे लोग सवाल करने का विवेक खो चुके होते हैं, वे अपनी नौकरी, ईएमआई और भविष्य की फिक्र में सत्ता से सवाल करने की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं. बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो अपना सबकुछ गंवाकर अंधेरे के पार देखने की कोशिश करते हैं और नागरिक धर्म का पालन करते हुए सत्ता को आईना दिखाते हैं. वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर मिश्र (जो चंद रोज पहले देश के सबसे बड़े मीडिया समूहों में से एक में बतौर एग्जिक्यूटिव एडिटर लीडरशिप पोजिशन में थे) ने ऐसा साहस दिखाया है. दयाशंकर मिश्र ने अपनी किताब 'राहुल गांधीः सांप्रदायिकता, दुष्प्रचार और तानाशाही से ऐतिहासिक संघर्ष' के जरिए सत्ता के सामने आईना रखा है. ये आईना नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल को घटनाओं के आलोक में देखता है, जिसमें पाठक को साफ दिखाई देता है कि कैसे 2014 के बाद कभी गौ मांस के नाम पर तो कभी हिंदुत्व की रक्षा के लिए नागरिकों की हत्या शुरू हो

Danasari Anasuya Seethakka Life Story in Hindi: तेलंगाना की कैबिनेट मंत्री दनसरी अनुसूया सिथक्का की कहानी

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जब लगे कि आगे का रास्ता दिख नहीं रहा है, भविष्य क्या होगा तो अनुसूया सिथक्का की कहानी सुनिएगा... एक लड़की जो 14 साल की उम्र में नक्सली बन जाती है. बंदूक थाम सिस्टम के खिलाफ खड़ी हो जाती है और 11 साल तक जंगलों में भटकने के बाद फैसला करती है कि नहीं, अब ये जीवन नहीं जीना. ये गलत कदम है, वापस लौटना होगा तो 1997 में सरेंडर कर देती है. जेल से ही 10वीं की पढ़ाई करती है और जब बाहर आती है तो पढ़ाई जारी रखती है. वकालत की पढ़ाई पूरी कर एक वकील के तौर पर अपनी जिंदगी का नया अध्याय शुरू करती है. फिर उस्मानिया यूनिवर्सिटी से आदिवासियों से संबंधित विषय पर पीएचडी करती है. विषय होता है गोट्टी कोया ट्राइब का सामाजिक बहिष्कार... लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी के साहस की प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने अनुसूया सिथक्का को तेलंगाना में कैबिनेट मंत्री बनाया. 11 अक्टूबर 2022 को सिथक्का ने ट्विटर पर लिखा कि मैंने अपने बचपन में सोचा भी नहीं था कि मैं नक्सली बनूंगी. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं वकालत करूंगी. जब मैं वकील बन गई तो कभी सोचा नहीं था कि मैं विधायक बनूंगी. मैंने ये भी नहीं सोचा था कि मैं पीएचडी कर

पांच राज्यों के चुनाव में क्या 2 हजार रुपये के नोट का स्ट्रेटजिक इस्तेमाल हुआ?

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क्या पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में 2000 रुपये के नोट का स्ट्रेटजिक इस्तेमाल हुआ है? आइए खबरों के जरिए ही समझते हैं. 19 मई 2023 को आरबीआई ने 2000 रुपये का नोट बंद करने का ऐलान किया. लेकिन कहा गया कि बाजार में मौजूद नोट लीगल टेंडर रहेंगे. आप एक्सचेंज कर सकते हैं. आरबीआई के ऐलान के बाद नोट एक्सचेंज करने के लिए फिर से लाइन लगी. आरबीआई ने बैंकों को 2000 रुपये के नोट जारी करने से मना किया. 2000 रुपये के नोटों को एक्सचेंज करने की पहली डेडलाइन 30 सितंबर 2023 थी, फिर इसे बढ़ाकर 7 अक्टूबर 2023 कर दिया गया. 1 दिसंबर 2023 को मिंट में छपी शिवांगी की रिपोर्ट को पढ़िए आपको पता चलेगा कि 30 नवंबर 2023 तक 97.26 प्रतिशत 2000 रुपये के नोट बैंकों में पहुंच गए हैं. लेकिन 2000 के नोट अभी भी मार्केट में घूम रहे हैं. जिनका मूल्य 9760 करोड़ रुपया है. लेकिन ये सिर्फ 2.74 फीसदी ही हैं. मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक ही आरबीआई ने कहा है कि 2000 रुपये के नोट लीगल टेंडर बने रहेंगे. मतलब वे रद्दी नहीं हुए हैं. मतलब आप के पास पड़ा नोट रद्दी नहीं है. अब आप सोचिए कि चुनावों से पहले 2000 रुपये के नोट को बैंकों

LOKSABHA ELECTION 2024: हिंदी पट्टी में घिर गई है बीजेपी?

जब आप एक देश एक भाषा एक कल्चर की बात करते हैं तो बंध जाते हैं, क्योंकि फिर आपको दूसरे कल्चर के साथ दिक्कत आती है. साउथ के साथ मामला साफ दिख रहा है. बंगाल और पंजाब के साथ भी दिख रहा है. कश्मीर भी अलग है. नॉर्थ ईस्ट को आप डरा लोगे लेकिन कल्चर अलग है. हालात भी, फिर आ जाइए हिंदी पट्टी में, आपको सत्ता के बचाने के लिए मैक्सिमम सीटें जीतनी हैं. 2014 और 2019 से भी ज्यादा सीटें जीतनी हैं. तो फिर हिंदी पट्टी की सभी सीटें जीतनी होंगी. अपनी सीमा से बाहर निकले ईवीएम की मदद ली तो एक्सपोज होने का डर है. परिणामों पर लोग भरोसा नहीं करेंगे. बेशर्मी से जीत भी लिए तो सवाल होंगे. तो फिर क्या इंडिया 2024 में हारने के बाद EVM पर सवाल उठाएगा या 2024 का चुनाव ही EVM बनाम बैलेट की वापसी को लेकर लड़ेगा. तय करना पड़ेगा. समय नहीं है.

बीजेपी के लिए भंवर से आगे बढ़ा यूपी चुनाव, अब शुरू होगी अखिलेश की परीक्षा

यूपी में आज दूसरे चरण का मतदान हो रहा है. निश्चित रूप से पहले और दूसरे चरण में बीजेपी बैकफुट पर रही है और उसे नुकसान हुआ है. लेकिन यूपी में चुनाव क्या खेला कहिए... आज की वोटिंग के बाद शुरू होगा. यानी तीसरे चरण और उसके बाद से, क्योंकि चुनाव अब उन इलाकों में पहुंचेगा, जहां शासन के राशन का असर है. जहां गरीबी और बदहाली है. कोरोना में सबकुछ गंवा बैठे लोग खुलकर कहते हैं कि इससे पहले किसी ने इतना राशन दिया था क्या? दरअसल यही विपक्ष का इम्तिहान है. व्हाट्सऐप, मोबाइल और बीजेपी के स्वयंसेवकों ने अति-पिछड़ों और दलितों (दलित समुदाय के प्रति मैं थोड़ा नरम हूं क्योंकि वह अपनी पार्टी के प्रति ज्यादा वफादार है दूसरों की तुलना में) को यह बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है कि अगर योगी-मोदी ना होते तो हालात और बुरे होते. गरीबी और भौतिक सुविधाओं के अभाव में जीने वाले लोग राशन, हर घर नल, उज्जवला, शौचालय, आवास और 500 रुपया अकाउंट में पाकर अपनी सोच पर ताला लगा चुके हैं. हर किसी को इन सभी को योजनाओं का लाभ नहीं मिला है. लेकिन, हर किसी को कुछ ना कुछ मिला है. और ये बताने में बीजेपी और उसके स्वयंसेवकों ने कोई क

अब सुनाई नहीं देगा... लखनऊ से कमाल खान, एनडीटीवी इंडिया के लिए

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कमाल खान नहीं रहे... सुबह से इस खबर पर यकीन मुश्किल हो रहा है. अब भी जब ये टिप्पणी टाइप कर रहा हूं समझ नहीं आ रहा है कि क्या और कैसे लिखा जाएगा. उनसे कभी मिला नहीं था, बस उनकी रिपोर्ट देखीं थीं, यूट्यूब पर ढूंढ़कर देखा-सुना था और कोशिश रहती थी कि जब भी मौका मिले तो उन्हें देखा और सुना जाए... उनकी रपटों से पहला परिचय आईआईएमएसी में पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान ही हुआ. उस दौरान रवीश की रिपोर्ट और कमाल खान की रिपोर्ट्स का बहुत इंतजार हुआ करता था, पत्रकारिता के छात्र दोनों को बड़े चाव से सुना करते थे. हमने भी कमाल खान की रिपोर्ट्स देखने शुरू की और फिर से सिलसिला कभी खत्म नहीं हुआ... कमाल खान को देखना ऐसा था, जैसे कि यूपी को देखना हो. उन्हें देखने पर लगता था कि ऐसा ही तो है अपना यूपी. उनकी रिपोर्ट्स सामाजिक और राजनीतिक हिंसा पर होती थी, लेकिन मन उद्धेलित नहीं होता था. मन विचलित नहीं होता था... मुझे याद है कि उन्होंने बदलते लखनऊ पर एक रिपोर्ट की थी, कि कैसे लखनऊ समय के साथ बदल रहा है... उस रिपोर्ट ने मेरे मन मस्तिष्क में यह बात बिठा दी कि कमाल खान के पास यूपी और लखनऊ के बारे में कितनी जानका