बीजेपी के लिए भंवर से आगे बढ़ा यूपी चुनाव, अब शुरू होगी अखिलेश की परीक्षा

यूपी में आज दूसरे चरण का मतदान हो रहा है. निश्चित रूप से पहले और दूसरे चरण में बीजेपी बैकफुट पर रही है और उसे नुकसान हुआ है. लेकिन यूपी में चुनाव क्या खेला कहिए... आज की वोटिंग के बाद शुरू होगा. यानी तीसरे चरण और उसके बाद से, क्योंकि चुनाव अब उन इलाकों में पहुंचेगा, जहां शासन के राशन का असर है. जहां गरीबी और बदहाली है. कोरोना में सबकुछ गंवा बैठे लोग खुलकर कहते हैं कि इससे पहले किसी ने इतना राशन दिया था क्या? दरअसल यही विपक्ष का इम्तिहान है. व्हाट्सऐप, मोबाइल और बीजेपी के स्वयंसेवकों ने अति-पिछड़ों और दलितों (दलित समुदाय के प्रति मैं थोड़ा नरम हूं क्योंकि वह अपनी पार्टी के प्रति ज्यादा वफादार है दूसरों की तुलना में) को यह बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा है कि अगर योगी-मोदी ना होते तो हालात और बुरे होते. गरीबी और भौतिक सुविधाओं के अभाव में जीने वाले लोग राशन, हर घर नल, उज्जवला, शौचालय, आवास और 500 रुपया अकाउंट में पाकर अपनी सोच पर ताला लगा चुके हैं. हर किसी को इन सभी को योजनाओं का लाभ नहीं मिला है. लेकिन, हर किसी को कुछ ना कुछ मिला है. और ये बताने में बीजेपी और उसके स्वयंसेवकों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है कि मोदी विश्वगुरु हैं. बाकी का ब्रेनवॉश टीवी वालों ने कर दिया है. विपक्ष में खासतौर पर अखिलेश यादव ने पुरजोर कोशिश है कि यूपी में चुनाव जाति पर हो. लेकिन जिनको टारगेट करके मोयी ने कथित तौर पर उपकृत किया है, वे भी अखिलेश के जाति वाले समीकरण से ही हैं. अगर वे पिछली बार की तरह बीजेपी के साथ गए तो खेला रिवर्स भी हो सकता है. पूर्वांचल में साफ तौर पर दिखता है कि विपक्ष के पास राशन का कोई तोड़ नहीं है. हालांकि ऐसा नहीं है कि योगी सरकार से नाराजगी नहीं है, लेकिन पूर्वांचल में खासतौर पर अतिपिछड़ों में जिनके पास दो जून की रोटी की गारंटी नहीं है, वे अखिलेश के जाति वाले समीकरण को बैठने देंगे? यही असली डर है. अगर अखिलेश का समीकरण साबुत रहा तो योगी को अपना बोरिया-बिस्तर बांध लेना चाहिए क्योंकि मुख्तार अंसारी को ओमप्रकाश राजभर ने मऊ सदर से उतारने का ऐलान किया है. ये अखिलेश का ही दांव है, जो पर्दे की पीछे से हैं. मुख्तार के बड़े भाई शिबगतुल्लाह सपा में हैं. मत भूलिए कि पूर्वांचल में मुसलमान अंसारी ब्रदर्स के खिलाफ नहीं जाएगा. मैं दावे से कह सकता हूं 100 में 90 उनके साथ हैं. और ये असर बिहार बॉर्डर से कानपुर तक है, तभी तो हाटा की जैनब ने कहा था कि सपा सरकार में फायदा मिला हो या ना मिला हो वोट साइकिल को ही दूंगी. हाटा कुशीनगर में है. बाकी रह गए यादव और गैर यादव- डर इन्हीं को लेकर है. पिछली बार बीजेपी को वोट मार आए थे, तो क्या अब सपा गठबंधन की ओर लौटेंगे. ये भी याद रखिए कि बीजेपी ने भी रणनीतिक तौर पर पिछड़े समुदाय के वोटरों को टिकट दिया है. ऐसे समझिए कि स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ बीजेपी ने कुशवाहा उम्मीदवार दिया है. ऐसे में अखिलेश का इम्तिहान यही है कि यादव और गैर-यादव उनकी उम्मीदों और रणनीति के साथ उन्हें वोट करे क्योंकि अगर ये ना भटके तो फिर अखिलेश की नैय्या पार है. योगी के पास वाया पूर्वांचल एक्सप्रेस वे भी गोरखपुर जाने का विकल्प रहेगा. इसके उलट यही चीज बीजेपी के पक्ष में जाती है. पिछड़ों और अति पिछड़ों में बहुत सारे लोग महत्वाकांक्षी हो गए हैं और जो सक्षम हैं वे अपनी राजनीति करना चाहते हैं. अगर पूर्वांचल में अखिलेश यादव का समीकरण सही नहीं बैठा तो 10 मार्च को चीजें बहुत ज्यादा उलझ जाएंगी और साफचन्नका जीत का सपना अधूरा भी रह सकता है. दरअसल ये समझना होगा कि अगर किसी के पास कुछ नहीं है और उसे खाने को मिल जाए तो उसके लिए यही बहुत ज्यादा है. बाकी सांड़ का मुद्दा, बेरोजगारी, बबुआन का अत्याचार, योगी की ठकुरैती सब मुद्दा है... लेकिन बीजेपी का प्रचार तंत्र, देश की 15 फीसदी से ज्यादा आबादी के खिलाफ नफरत, झूठ और अफवाह, ब्रेनवॉश, दबंगई, फर्जीवाड़ा और चुनाव जीतने के लिए साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल भी है. पटना से उठा बेरोजगारी का मुद्दा बहुत जिसका पूर्वांचल पर खासा असर हो सकता था, बहुत जल्दी बुझ गया. पूर्वांचल में किसान आंदोलन का असर भी नहीं है. ऐसे में अब फैसला जनता जनार्दन को करना है. ध्यान रहे कि चुनाव आयोग ने अब सियासी पार्टियों को खुलकर खेलने को कह दिया है... बीजेपी के लिए मुश्किल इलाकों से चुनाव अब आगे बढ़ चुका है. जनता को भी अपने बच्चों और उनके भविष्य के लिए राशन से आगे बढ़ना होगा. वरना फ्री का राशन धीमा जहर साबित हो सकता है.

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