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IPL 10 में इन चार खिलाड़ियों पर रहेगी नजर

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इस बार का आईपीएल मेरे लिए मिश्रित भावनाओं वाला है। कई खिलाड़ी हैं, जिनके लिए इस बार आईपीएल देखा जाना चाहिए। हालांकि ये कोई उभरते सितारे नहीं है, बल्कि अपने खेल से करोड़ों दिलों पर राज कर चुके वो किंग हैं जिनका सूरज ढलान पर है। इन्हीं खिलाड़ियों के खेल पर नजर रखने के लिए आईपीएल देखा जाएगा। आइए एक नजर डालते हैं उन खिलाड़ियों पर जिन रहेगी मेरी नजर... युवराज सिंह  युवी के लिए आईपीएल के 10वें सीजन में सबसे बड़ी फायदे की बात ये है कि वे इस लो प्रोफाइल हैं। बड़ा हल्ला नहीं है उनको लेकर ऐसे में उन पर दबाव कम है। युवी आईपीएल में अब तक कुछ खास नहीं कर पाए हैं। टीम मालिकों ने उन पर पैसों की बरसात तो की लेकिन वे अपने बल्ले से रनों की बरसात नहीं कर पाए। ऐसे में देखना ये है कि लो प्रोफाइल युवराज का बल्ला कितना बोलता है। युवी अब पहले से कहीं ज्यादा फिट हैं और इंग्लैंड के खिलाफ वन-डे सीरीज में शतक जड़कर उन्होंने कॉन्फिडेंस हासिल किया है। युवी के लिए आईपीएल देखा जाना चाहिए। सुरेश रैना बाएं हाथ के इस खिलाड़ी का करियर पटरी से उतरा हुआ दिख रहा है। घरेलू सीजन में रैना ने किनारा कर लिया था, जिसक

A Letter to Congress Vice President Rahul Gandhi

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Congress Vice President Rahul Gandhi आदरणीय राहुल जी , नमस्कार! मैं 29 साल का एक युवा हूं जो महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू के मूल्यों और सिद्धांतों में विश्वास करता है। इसी नाते यह पत्र आपको लिख रहा हूं। देश में जिस तरह राजनीतिक द्वेष का वातावरण बना हुआ है , लोग आपकी तरफ मुंहबांए देख रहे हैं। भारत की समरसता और विविधता को बचाने की जिम्मेदारी आप पर है। मैं इस बात को समझता हूं कि राजनीतिक समीकरण हमारे साथ नहीं है , लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें। हमें आगे बढ़कर चुनौतियों का मुकाबला करना है। आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर आम जनता के हितों पर लगातार चोट हो रही है , लेकिन राष्ट्रभक्ति और हिंदुत्व की चाशनी में लपेटकर इसे देशभक्ति साबित किया जा रहा है। हमें संविधान के मूल्यों को हाथ में लेकर रणक्षेत्र में निकलना होगा। अपने विश्वास और राजनीतिक मूल्यों के साथ हमें लोगों के बीच घुल जाना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी को सामाजिक न्याय की राजनीति से बहुत डर लगता है। आपको यही छोर पकड़ना है और निकल पड़ना है स्कूलों , कॉलेजों , पार्कों

Bachelors Kitchen : Paneer Sweet Dish

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Courtesy_Social Media घर से दूर रहने वालों के लिए स्वादिष्ठ और बढ़िया खाने की तलब हमेशा रहती है। अगर कुछ मीठा खाना हो तो बाहर से मंगाने के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आता। बैचलर लड़कों के लिए पहाड़ सा काम नजर आता है, कुछ मीठा सा अपने हाथों से बना लेना..। अगर आप इस परेशानी के आगे हार मान जाते हैं और बाहर का खाते हैं.. तो आज हम आपको एक ऐसी डिश बताने जा रहे हैं जो मिनटों में तैयार होगी और आपको मुंह में मिठास घोल देगी। जी, हां यह एक स्वीट डिश है, जो कभी भी किसी भी मौके पर बनाई जा सकती है। चाहे दोस्तों के साथ पार्टी का मूड हो या अकेलेपन में कुछ मीठा खिलाने का या अपनी गर्लफ्रेंड को इम्प्रेस करने का.. चलिए आपको बताते हैं कि इसे बनाना कैसे हैं। पनीर का खुरमा  बनाने के लिए हमें चाहिए - पनीर 100 ग्राम और और 100 ग्राम शक्कर पिसी हुई। पिसी हुई शक्कर आपको बाजार से मिल जाएगी.. टेंशन नॉट  अगर पनीर बहुत देर से फ्रीज में रखा हो तो उसे तीन चार मिनट के लिए थोड़े से गुनगुने पानी में रखे दें। फिर उसे निकालकर छोटे-छोटे मन चाहे आकार में काट लीजिए।  पैन को गरम कीजिए और मद्धिम आंच पर भूनिए। पिसी

ईश्वर की आराधना और मेरा अंतर्द्वंद

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Courtesy_Nandlal Sharma नवरात्र चल रहा है और हर कोई ईश्वर की आराधना में जुटा है। मां दुर्गे की पूजा, व्रत और कर्मकांड में हर व्यक्ति लीन दिखाई पड़ रहा है पूरी तन्मयता और भाव से.. लेकिन ये लोग सात्विक भाव और लगन कहां से आते हैं? जब अन्य व्यक्तियों को पूजा करते हुए देखता हूं तो यही सोचता हूं कि आखिर ये लोग कैसे दो-दो घंटे ध्यानमग्न होकर पूजा कर लेते हैं। मैं तो कर ही नहीं पाता हूं।  ईश्वर के सामने निर्विकार भाव से खड़ा भी नहीं हो पाता हूं। आखिर दो-दो घंटे लोग पूजा और आराधना कैसे कर लेते हैं। एक मूर्ति, कैलेंडर या फोटो के सामने कैसे ध्यानमग्न हो पाते हैं। चलो मान लेते हैं कि सवा करोड़ के इस देश में एकाध करोड़ लोग ध्यान करके स्वयं को स्थिरपज्ञ बना लिए होंगे। अपने आराध्य के सामने बैठने पर ध्यानमग्न हो जाते होंगे..  लेकिन बाकियों का क्या? आखिर वो कैसे ध्यान धारण करते हैं।  मैं नास्तिक नहीं हूं। ईश्वर में मेरी आस्था है, लेकिन बनावटीपन और ढकोसले मुझे पसंद नहीं है। मैं किसी का फॉलोवर नहीं हो सकता। चाहे वो ईश्वर ही क्यों न हो, मेरी उनमें आस्था है और मैं उनका सम्मान करता है। जैसे एक

एंटी रोमियो स्क्वॉयड की कहानियां - 1

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Courtesy_Google खेत थे.. झुरमुट था.. बगीचा था.. पगडंडी थी.. हर शाम खेतिहर मजदूर इसी पगडंडी को पकड़ घरों को लौटते। चलता फिरता रास्ता था.. लेकिन इतना भी नहीं कि दिल्ली-पटना रूट हो। 'एंटी रोमियो दस्ता अक्सर इस पगडंडी पर खड़ा मिलता। 'लायक' इस दस्ते के कैप्टन थे और उनकी नजर सोहना बो पर थी।  सोहना बो एक बिंदास महिला थी, उसे किसी की परवाह नहीं थी और यही चीज उसे खूबसूरत बनाती। मेहनती लोग बहुत खूबसूरत होते हैं। लायक हर शाम फरसा लेकर अपने खेत में पहुंच जाते.. सोहना  बो के शिकार में। उस दिन गोधूलि बेला का समय था। सोहना बो अपनी सहेलियों के साथ घर लौट रही थी। उसके दुपट्टे में दाना बंधा था और वो भर मुट्ठा फांक रही थी। हंस रही थी, मगन थी घर लौटने की जल्दी में। लायक ने देखा और कुटीली मुस्कान भर के बोले.. एक बार और फांक के दिखाओ.. सोहना बो को लगा मजाक कर रहे हैं।  उसने भर मुट्ठा दाना मुंह में डाला.. लायक ने झपट्टा मारकर उसके मुंह को कसके हाथ से दबा लिया। सोहना बो के मुंह में दाना भरा था.. आवाज निकल नहीं पा रही थी और फिर एंटी रोमियो दस्ता गोधूलि बेला में झुरमुट से बाहर आ गया.. वो 5-

यूपी विधानसभा चुनाव का सारांशः 10 प्वाइंट

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Courtesy_Social Media उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत ने विपक्षी पार्टियों को कई मोर्चों पर सबक सिखाया है। चुनाव प्रबंधन, कम्युनिकेशन, जातीय गणित और राजनीतिक समीकरणों को बीजेपी ने बड़ी चालाकी से सेट किया और अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। इस चुनाव परिणाम के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह 'न्यू इंडिया' का जनादेश है। 'न्यू इंडिया' के इस जनादेश ने यूपी की बदलती राजनीति की कई गिरहें खोल दी हैं। या यूं कहें कि बदलती राजनीति की तस्वीर बिल्कुल साफ कर दी है। इस जनादेश के बाद यूपी की राजनीति के नए कोण उभर कर सामने आ रहे हैं। 1. कांशीराम के लिए बहुजनों ने एक नारा दिया था। 'कांशीराम तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई...' यह यथार्थ है कि कांशीराम और बसपा ने यूपी में दलितों और पिछड़ों की राजनीति कर उन्हें सत्ता में भागीदार बनाया लेकिन 2017 के जनादेश ने यह साफ कर दिया है कि कांशीराम ने जिस कौम को जगाया था उसे अब भूख लगी है। 1984 में बसपा के गठन और 93 में बीएसपी की पहली साझा सरकार के बाद आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितने वर्ष गुजर गए। यूपी और

गुरमेहर के बहाने गुलमोहर की बात

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जब भी गुरमेहर सुनता या पढ़ता हूं। अतःमस्तिष्क में गुलमोहर की प्रतिध्वनि आती है और गुलमोहर से जुड़ी कई यादें ताजा हो जाती हैं। पांचवीं तक हर साल छमाही और सालाना परीक्षा के दौरान मिट्टी कला की भी परीक्षा होती थी, इस इम्तिहान में सबको मिट्टी से कुछ न कुछ बनाकर और सजा कर ले जाना होता था और तब मार होती थी, गुलमोहर के फूल के लिए। ज्यादातर बच्चे मिट्टी का गिलास बनाते अपने हाथों से। पहली या गदहिया गोल वाले अपने पिता से मां से बनवाते, कुछ की बहनें मदद  करतीं। कुल मिला जुलाकर गिलास बन जाता। बनाने के बाद सबसे पहले गिलास को सुखाया जाता, इसके बाद गिलास को रंगा जाता। बलुई मिट्टी से बना गिलास सबसे शानदार उतरता। सुराहियां बलुई मिट्टी की होती हैं। उसे सूखने में ज्यादा टाइम नहीं लगता। जिसे अनुभव या ज्ञान नहीं होता, वो काली मिट्टी उठा लाता। काली मिट्टी से बनी गिलास भारी होती और उस पर रंग भी नहीं चढ़ता। बहरहाल, लोग अपनी सुविधा के मुताबिक रंग रोगन करते और चल पड़ते गुलमोहर की खोज में। हमारी तरफ गुलमोहर के पेड़ों की ऊंचाई काफी होती है, विशाल पेड़ होते हैं। हालांकि दिल्ली में मैंने छोटे-छोटे पेड़ भी