A Letter to Congress Vice President Rahul Gandhi
Congress Vice President Rahul Gandhi |
आदरणीय राहुल जी,
नमस्कार!
मैं 29 साल का एक युवा हूं जो महात्मा गांधी और
पंडित जवाहर लाल नेहरू के मूल्यों और सिद्धांतों में विश्वास करता है। इसी नाते यह
पत्र आपको लिख रहा हूं। देश में जिस तरह राजनीतिक द्वेष का वातावरण बना हुआ है, लोग आपकी तरफ मुंहबांए देख रहे हैं। भारत
की समरसता और विविधता को बचाने की जिम्मेदारी आप पर है। मैं इस बात को समझता हूं कि
राजनीतिक समीकरण हमारे साथ नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें।
हमें आगे बढ़कर चुनौतियों का मुकाबला करना है।
आर्थिक और सामाजिक
मोर्चे पर आम जनता के हितों पर लगातार चोट हो रही है, लेकिन राष्ट्रभक्ति और हिंदुत्व की चाशनी
में लपेटकर इसे देशभक्ति साबित किया जा रहा है। हमें संविधान के मूल्यों को हाथ में
लेकर रणक्षेत्र में निकलना होगा। अपने विश्वास और राजनीतिक मूल्यों के साथ हमें लोगों
के बीच घुल जाना होगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ और बीजेपी को सामाजिक न्याय की राजनीति से बहुत डर लगता है। आपको यही छोर पकड़ना
है और निकल पड़ना है स्कूलों,
कॉलेजों, पार्कों, चौराहों,
खेत-खलिहान और मंडियों
की तरफ..। ध्यान रहे आपको उतरना होगा.. कांग्रेस पार्टी को नहीं। कांग्रेस पार्टी को
दोबारा से खड़ा करना है.. तो पैदल चलना ही होगा। हमें लंबी लड़ाई के लिए तैयारी करनी
है। महाभारत में कौरवों के पास अक्षौहिणी सेना थी और पांडवों के साथ सिर्फ कृष्ण थे।
कृष्ण को कितने अपमान सहने पड़े,
कितने लांछन लगे..
क्या-क्या न कहा गया,
लेकिन कृष्ण को
पता था कि उन्हें क्या करना है।
मैं न तो कांग्रेस
पार्टी का सदस्य हूं और न ही किसी पार्टी से मेरा ताल्लुक है। मैं एक राजनीतिक व्यक्ति
हूं और मुझे पता है कि मेरे भारत के लिए कौन सी राजनीति बेहतर है। आपसे विनम्र अपील
करना चाहूंगा कि आप निकल पड़िए... भारत के गांवों की ओर... जैसे भी हो सके.. बिना लाव
लश्कर के.. बिना यह सोचे कि जीत मिलेगी कि नहीं मिलेगी। हार का सिलसिला कब तक चलेगा? महात्मा गांधी जब दांडी के लिए निकल रहे
थे.. तो उनके साथ कोई लश्कर नहीं था। न कोई डुगडुगी बजवाई गई थी। वो सिर्फ निकल पड़े
और कोटि-कोटि पग उनके साथ चल पड़े थे।
वर्तमान प्रधानमंत्री
जो राजनीति कर रहे हैं। उसके मुकाबले हमें एक नई लकीर खींचनी होगी। प्रधानमंत्री बड़ी
चालाकी से सबकुछ जनता से छीन रहे हैं और लोगों को इसका आभास भी नहीं हो रहा है। पिछले
तीन सालों में चीजों के दाम बहुत बढ़े हैं। एक समय घर जाने के लिए मुझे ट्रेन में थर्ड
एसी का टिकट 800-900 में मिलता था अब वह 1400-1500 का हो गया है। दवाइयां महंगी हो गई हैं।
शिक्षा महंगी हो गई है। ऐसे हालात में एक नई आर्थिक व्यवस्था खड़ी करनी होगी। इसके
लिए हमें लोगों को एकजुट करना ही होगा ताकि राजनीतिक ताकत हासिल की जा सके। इस देश
में बिना राजनीति के पत्ता भी नहीं खड़कता।
एक लंबे समय से
आरएसएस और बीजेपी लोगों का ब्रेन वॉश कर रही हैं और उसी का परिणाम है कि बहुसंख्यक
आबादी उनकी विचारधारा को अपना रही है। ऐसा लगता है कि गांधी और उनके मूल्य अप्रासंगिक
हो गए हैं। बैन पॉलिक्टिस खेल रही बीजेपी भले ही ऊपर से अजेय दिख रही हो लेकिन उसके
किले में दरवाजा है जिसके जरिए अंदर घुसकर उसे मारा जा सकता है।
एक कहावत है कि
जब खेत में खड़ी फसल को चूहे खाने लगते हैं तो उन्हें पकड़ने के लिए हम डंडे गाड़ते
हैं कि चील या कोई पक्षी आएगा और डंडे पर आराम फरमाने के लिए बैठेगा और चूहा नजर आने
पर उसे अपना ग्रास बना लेगा। हम इस कोशिश में रहते हैं कि इससे चूहा भी मर जाएगा और
फसल भी खराब नहीं होगी,
लेकिन बहुत बार
हम गलत साबित होते हैं। आपने कई राज्यों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया। कहीं सफलता
मिली और कहीं निराशा.. लेकिन हार नहीं मानना है। अगर चूहा इस तकनीक से पकड़ में नहीं
आ रहा तो क्यों न हम पूरे खेत का ही पैदल चल निरीक्षण कर डाले। संभव है कि हमें चूहे
का दरवाजा मिल जाएगा। ये चूहे वही हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के दौरान डर के मारे दुम
दबाए अंग्रेजों के आगे नतमस्तक थे।
अटल बिहारी वाजपेयी
के शासनकाल के दौरान भी ऐसा माहौल बना था कि विपक्ष कमजोर है। उसके पास नेता नहीं है।
2004 में देश को नेता भी मिली और प्रधानमंत्री
भी। हमें संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ना है। हमें सड़कों पर उतरना है। कैंपसों में जाना
है और देश के नौजवानों तक अपनी बात पहुंचानी है। उन्हें सच बताना है और ये काम आपको
ही करना है। किसी और भरोसे रहना ठीक नहीं होगा। सियासी बिसात पर बाजी आपको ही चलनी
होगा। बेहतर होता.. गोवा आप ही जाते।
आपको कंधे झुकाए
रणभूमि में खड़े उन साथियों का हौसला बढ़ाना है जो झूठे प्रचार के झांसे में आकर निराश
दिख रहे हैं। ठीक है कि चुनावी हार हुई है.. लेकिन हमें बेहतर भविष्य के लिए लड़ना
ही होगा। आप चलेंगे तो कारवां चल पड़ेगा.. युवाओं को जिम्मेदारी दीजिए और उनका नेतृत्व
कीजिए। 67 बरस के मोदी का सामना एक युवा टीम ही कर सकती है, जो देश को दलदल में जाने से बचा ले। रावण
के दस शीश थे... और राम अकेले थे। जरासंध को मारने के लिए कृष्ण रण से ही भाग निकले..
क्योंकि उन्हें पता था कि जरासंध कैसे मरेगा। हमें अपनी चाल/माध्यम/तरीके को लेकर नहीं
सोचना। हमें नतीजों की परवाह करनी है।
आपका
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