..कि तेरा शरमाती आंखों से मुस्कुरा देना..
बरसों पहले लिखी हुई कुछ लाइनें.. वो लम्हें कैसे धुंधले हो जाएं मेरी यादों के शीशे में ..कि तेरा शरमाती आंखों से मुस्कुरा देना.. ये चाहत उनकी भी थी तैयार हम भी हुए कुछ पल की बरसात के बाद ठंडे पड़ गए बदन के शोले अंजान हम है.. बहारों के लौट आने तक बिन पतझड़ के संभव नहीं नई कोंपलों का निकलना.. हो गई.. तलब हमें गए-ए-यार की प्याले भरे रह गए जैसे भरी मेरी आंख थी वो घूंट तड़प गई मेरी वफा से बिखर गए हम .. उसी से लिपट के..