संदेश

..कि तेरा शरमाती आंखों से मुस्कुरा देना..

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बरसों पहले लिखी हुई कुछ लाइनें.. वो लम्हें कैसे धुंधले हो जाएं मेरी यादों के शीशे में ..कि तेरा शरमाती  आंखों से मुस्कुरा देना.. ये चाहत उनकी भी थी  तैयार हम भी हुए कुछ पल की बरसात के बाद  ठंडे पड़ गए बदन के शोले  अंजान हम है.. बहारों के लौट आने तक  बिन पतझड़ के संभव नहीं  नई कोंपलों का निकलना.. हो गई.. तलब हमें गए-ए-यार की  प्याले भरे रह गए जैसे भरी मेरी आंख थी वो घूंट तड़प गई मेरी वफा से  बिखर गए हम .. उसी से लिपट के..

SHORT STORY: जो था..मधुमास था.

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अगली सुबह जब वह अपने पुराने कुर्ते में बटन टांक रहा था. दरवाजे पर दस्तक हुई..उसने आवाज दी..खुला है..और जब वह आई तो आती गई..बटन, धागे और सुई एक दूसरे के सहारे उलझे थे. उसने करीने से सुई थामा और बटन टांकने लगी..वो देखता रहा..हवा में घुल रहे प्रेम में डूबता रहा. उसके हाथ उतावले थे अपनी प्रेयसी के चेहरे को थामने के लिए..लेकिन उसने अपनी अंगुलियों को झिड़क दिया..और जब प्रेयसी ने धागे को तोड़ने के लिए कैंची मांगने के बजाय..धागे को ही अपने होंठो तक ले गई...तो उसके सीने में एक चुभन सी उठी और फिर क्या..जो था..मधुमास था. 26.04.2013

और, चांद किसी और ने देखा

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कारवां वफ़ा का निकला ..सारी रात जागते रहें हम  और, चांद किसी और ने देखा. आज सब कुछ बिकाऊ है शीशे का दिल हो.. या औरत का जिस्म  ...चौक पे उम्मीद है चलेगी जिंदगी  बसंती झोकों की तरह  पर ठहरी है ऐसे.. जैसे पांव भारी है नई दुल्हन के. नग्में लिख रहा हूं तन्हाईयों में गुनगुनाने को  तुम्हें याद कर रहा हूं और, सबकुछ भूल जाने को. रंगीन होती है..तेरी यादों की शाम टटोलता हूं वो  मिलन की रात  बहुत लोग ठहरे हैं मेरे कमरे पर  दिल लगता नहीं चर्चों में.   21 मई 2009 को लिखा था.

इक प्यास

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इक प्यास सी लगी है तुझे देखकर भीग रहा है तन बदन बारिश की बूंदों से.. लेकिन प्यास बुझती नहीं.. पिया नहीं जा रहा कुछ तुझे देखकर.. ये कैसी प्यास है जो नहीं बुझती पानी के कतरों से तड़प रहा हूं पानी पीकर भी.. तू क्या है, जो बढ़ती जा रही है प्यास तुझे देखकर.. अजीब इत्तेफाक है पसरा है पानी हर तरफ पीता जा रहा हूं कि, शायद मिट जाए तुझे देखकर.. ये बढ़ती जा रही है अनंत की तरफ ये प्यास मिटती नहीं तुझे देखकर.. आके करीब पिला दो अपने लबों से.. तेरे हाथों के स्पर्श से बना जाम.. भिगो जाएगा जिस्म को अंदर से.. ये प्यास मिट जाएगी तुझे पाकर.. तू क्या है जो किसी में जगा देती है इक प्यास और करीब आके मिटा देती है प्यास.. 28.03.2013 * मई 2008 में लिखी गई यह कविता आज मैंने अपने ब्लॉग पर पोस्ट की है. 

मैं चाहता हूं, तुझे..

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ये दिल मदहोश है, तेरे प्यार के तरन्नुम में तू मुझे संवरने दे, अपनी नजरों के आइने में. मैं चाहता हूं,  तुझे दिल की गहराइयों से अपने जेहन की दीवारों पर लिखे हैं नाम तेरे. तू मुझे जी लेने दे, अपने प्यार के साए में इक टूटे हुए दिल की दुआएं होगी, तेरे दामन में. तेरी तस्वीरों को हमने, अपनी यादों में सजाया मेरे सोने के लिए तूने अपना आंचल बिछाया. तुझे देखकर सोचता हूं, तू ख्वाब है या हकीकत मैं समर्पित हूं तेरे लिए, जिंदगी हो या मौत का निमंत्रण. 2009 में लिखी एक और कविता को 4 सालों बाद ब्लॉग पर लगाना एक अलग एहसास दे रहा है. 

मानसून के लिए

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courtesy_ Google डाकिए के मार्फत एक लिफाफा आता रहा मानसून के लिए.. मैं लौटाता रहा लौटाता रहा.. बरसों बाद बुकसेल्फ से एक नोटबुक गिरी हवा के थपेड़ों से..टकराकर चंद नज्मों के साथ गुलाब का एक सूखा फूल अपनी गर्माहट बचाए हुए था मानसून के लिए.. कागज के निचले छोर पर डॉट डॉट करके ...लिखा था वाक्यांश के एक शब्द बताओ जिसकी उपमा ना दी जा सके लंबे वक्त से हवा में खामोशी तैर रही है कोई जवाब ना आया. मानसून की ओर से.. 24.03.2013

क्रिकेट की आत्मा बचाने और बेचने का ‘टेस्ट’

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courtesy_google पटौदी मेमोरियल लेक्चर के दौरान बोलते हुए सुनील गावस्कर ने कहा, ‘ ग्लोबल स्तर पर क्रिकेट के प्रसार के लिए टी-20 और वनडे उचित फॉर्मेट है। लेकिन हमें क्रिकेट की आत्मा टेस्ट को बचाना होगा। ‘ गावस्कर ने टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए जो समाधान बताए उनमें सबसे प्रमुख था स्पोर्टिंग विकेट तैयार करना। लेकिन क्या स्पोर्टिंग विकेट तैयार करने से ही टेस्ट क्रिकेट की चुनौतियों का हल मिल जाएगा। लिटिल मास्टर के इस बयान को गहराई से समझा जाए तो टेस्ट क्रिकेट के सामने खड़ी चुनौतियों के कई चेहरे उभर कर आते है और उनमें सबसे महत्वपूर्ण है बाजार का हाथ, किसके साथ ? कहते है, किसी भी वस्तु की कीमत मार्केट में उसकी मांग से तय होती है। ठीक यही चीज टेस्ट क्रिकेट, वनडे और टी-20 पर भी लागू होती है। वर्तमान में शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां भारत की तरह बाजार ने क्रिकेट को मार्केटिंग, प्रमोशन और बेचने के लिए इस्तेमाल किया हो। गावस्कर अपने पूरे लेक्चर के दौरान टेस्ट, वनडे और टी-20 के इस आर्थिक पहलू पर नहीं बोलते। क्योंकि वह भी किसी ना किसी टेलीविजन चैनल के साथ जुड़ें हैं। आइए, टेस्ट, वनडे