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..और अंत में खुद के लिए खेलते सचिन

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courtesy_google चेन्नई के चेपक स्टेडियम में धोनी ब्रिगेड कंगारुओं के खिलाफ एक इकाई के रूप में खेलती नजर आई। इसमें कोई शक नहीं कि अपने घर में टीम का प्रदर्शन प्रभावशाली रहा। लेकिन इसी मैच में एक शख्स खुद के लिए खेलता नजर आया। ढाई दशक से ज्यादा समय तक करोड़ों लोगों के लिए खेलने वाले सचिन रमेश तेंदुलकर आज खुद को साबित करने के लिए खेल रहे है। मजेदार बात ये है कि उन्हें स्वयं के बनाए मानकों को लांघना है या फिर उनकी चमक पिछले के बराबर रखनी है। मेरी स्मृतियों में जो पहला वाकया दर्ज है वह 1999 में इंग्लैंड में चल रहे विश्वकप टूर्नामेंट का है। भारतीय टीम अपने दोनों शुरूआती मैच दक्षिण अफ्रीका और जिंबाब्वे से हार चुकी थी। उस समय मोहल्ले के चौक पर रखे एक रेडियो पर चालीस कान केन्द्रित होते। लेकिन उस दिन सब यहीं अफसोस जता रहे थे कि काश सचिन इस समय टीम में होते, तो हमारी उम्मीदें और जवां होती। गौरतलब है कि पिता के निधन के चलते सचिन टीम में नहीं थे। केन्या के खिलाफ सचिन टीम में लौटे और शानदार शतक से अपने चाहने वालों की उम्मीदें को पंख लगा दिए। लेकिन आज सचिन यह साबित करना चाह रहे है

तुम्हारी उपस्थिति बनी रही..

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हमारे प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए  मेरी कविताओं का  कविता होना  या पेंटिंग्स का  पेंटिंग्स होना  कितना जरुरी है? तुम्हें मालूम है क्या या अनजान बनती हो सबकुछ बतिया कर भी तटस्थ भाव से  मैं क्या कहूं कैसे परिभाषित करूं कि तुम्हारी असहमतियों के बावजूद  मैंने एक नापाक हरकत की है अपने दिलो दिमाग में  तुम्हारी एक तस्वीर बनाई है यह तुम्हारी तरह दिखती है इसलिए पलकों के बंद दरवाजे में छुपा रखा है  सपनों के गलियारे में इसकी पेंटिंग लगा रखी है हर रोज आधी रात को  तुम्हारे कैनवास के साए में इंतजार करता हूं कि  तुम आओगी मेरी अंगुलियां चटकाने  और हथेलियों को थामने  जो थकती नहीं है  तुम्हारे बालों को संवारते  रंगों से तुम्हारा श्रृंगार करते  सोचता हूं  चांद की चोरी-चोरी  कभी तो तुम आओगी  सपनों के गलियारे में  पलकों के बंद किवाड़ खोलकर  मेरी बनाई पेंटिंग्स निहारने.. उस दिन, तुमसे नजरें मिलाऊंगा तुम्हारे रेशमी बालों में  अपने हाथों से रंग लगाऊंगा और तुम्हें अपने हाथों से आहिस्ता अपने सिरहाने बिठाऊंगा ताकि जब तुम्ह

उलझी नींद

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बरसात रात ख्वाब शहर और चांद भी  सब कुछ वहीं है लेकिन नींद अब भी उस चेहरे में उलझी है जो आजकल आंखों पर तारी है. 23.02.2013

SHORT STORY (लघु कथा): बेदाग रोटियां

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तवे से उतरती रोटियों पर जलने की कोई चित्ती ना थीं, मैंने जला हुआ सरकंडा उठाया और हर रोटी को टीका लगा दिया। इससे पहले कि वो कुछ कहती..मैं खुद ही बोल पड़ा, सबमें तुम्हारा अक्स नजर आता है..मैं नहीं चाहता इन बेदाग रोटियों को नजर लग जाएं.. 17.02.2013

सपने बुढ़ाती आंखों के

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व्यापारी हां, यहीं लिखा था सौदागर का अर्थ  भाषा कि किताबों में  फिर सपनों के सौदागर का मतलब सपने खरीदने और बेचने वाला वो बेचता है सबकुछ  रोटी से लेकर अंगिया तक  किताबों से लेकर  सपनों तक...सबकुछ  सपनों का खरीदना और बेचना उनके लिए धंधा है लेकिन तुम मत फंसना  इनके मायाजाल में ये तुम्हारे संघर्षों को खरीद लेंगे प्लास्टिक नुमा खिलौनों को नचाकर फिर तुम्हारे सपने  'प्रॉडक्ट' बन जाएंगे और उन उत्पादों को बेचने के लिए  तुम्हारे सपनों का हवाला देंगे अपने मुताबिक चाहे वो कितने ही कोरे और भावनात्मक हो उन्हें सिर्फ कीमत चाहिए  तुम्हारे सपनों की जो अब उत्पाद है  उनके लिए और उत्पादों को बेचना ही सौदागरों का काम है चाहे क्यों ना वो  तुम्हारे सपने ही खरीदे कब समझोगे तुम  तुम्हारी  सूखी आंखों का सपना उत्पाद नहीं है कि उसे बेच डालो  तुम सपना समझ के  झोपड़ पट्टी को बेच डालों सपनों के महल के लिए  फिर वहां खड़ी होगी कोई एंटालिका  और सपनों की कीमत  तुम्हें बेघर बना गई होगी क्योंकि एंटालिका की कीमत  तय करने वाल

AMAVAS KA MELA अमावस का मेला

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10 फरवरी को इलाहाबाद की सड़कों पर जाम में फंसी बड़ी दीदी का फोन आया, तो खबर मिली कि मेरे घरवाले कुंभ में श्रद्धा की डुबकी लगा चुके हैं। फिर अचानक दिमाग में कौंधा कि आज मौनी अमावस्या है..लेकिन मैं तो चूक गया, अगर कुंभ जाने का मौका मिला होता, तो कुछ लिखा जाता। लेकिन अफसोस जा नहीं पाएं.. फिर याद आया कि अरे, अपने राणा जी यानि अविनाश के मोबाइल में तो वो कुंभ वाली कैलाश गौतम की कविता है ना, क्यों ना उसे दियारा पर फैलाया जाए उन लोगों के लिए जो यहां आते है और अपने पदचाप छोड़ जाते हैं।  आइए, क्यों ना मौनी अमावस्या के दिन कुंभ में मची गहमागहमी को इलाहाबाद के मशहूर रेडियो प्रस्तोता और कवि कैलाश गौतम की नजर से देंखे.. हर हर गंगे.. ई भक्ति के रंग में रंगल गाँव देखा धरम में करम में सनल गाँव देखा अगल में बगल में सगल गाँव देखा अमवसा नहाये चलल गाँव देखा.. एहू हाथे झोरा, ओहू हाथे झोरा अ कान्ही पे बोरी, कपारे पे बोरा अ कमरी में केहू, रजाई में केहू अ कथरी में केहू, दुलाई में केहू अ आजी रंगावत हईं गोड़ देखा हँसत ह‍उवैं बब्बा तनी जोड़ देखा घ

Let them sing..I Support Pragash (बोल कि लब आजाद है तेरे..)

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बोल कि लब आजाद है तेरे..बोल कि जुबां तेरी है...क्या गाना, डांस करना और सार्वजनिक स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति मुस्लिम महिलाओं के लिए वर्जित है? क्या इस्लाम महिलाओं को इस बात की आजादी नहीं देता? क्या इस्लाम आबिदा परवीन, नूरजहां, रेशमा, बेगम अख्तर के लिए अलग है? कश्मीर की उन लड़कियों के लिए दूसरा इस्लाम है? जिनके खिलाफ फतवा जारी किया है तथाकथित इस्लाम के पहरेदारों ने। मोहम्मद साहब भी बहुत खुश होंगे उनकी इस इस्लाम परस्ती पर? सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों का नाचना गाना अगर इस्लाम की तौहीन है तो कश्मीरियों के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। जब उनके मौलिक अधिकारों पर फतवा जारी होने लगे। कश्मीर में लोकतांत्रिक संस्थाओं के जड़ों में मट्ठा डालने वाली ताकतों का पुरजोर मुखालफत करने की जरुरत है। प्रगतिशील समाज को बोलना होगा, अपने बच्चों के लिए..बेहतर समाज के लिए.. इन फतवाधारियों को सर उठाने का मौका ना दो.. बोल कि लब आजाद दै तेरे... लेकिन इन सबके बीच दुखद बात ये है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ्ती ने खानापूर्ति करके छोड़ दिया। हर कश्मीरी स्वतंत्र है नाचने और गान