Let them sing..I Support Pragash (बोल कि लब आजाद है तेरे..)
सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों का नाचना गाना अगर इस्लाम की तौहीन है तो कश्मीरियों के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। जब उनके मौलिक अधिकारों पर फतवा जारी होने लगे। कश्मीर में लोकतांत्रिक संस्थाओं के जड़ों में मट्ठा डालने वाली ताकतों का पुरजोर मुखालफत करने की जरुरत है। प्रगतिशील समाज को बोलना होगा, अपने बच्चों के लिए..बेहतर समाज के लिए.. इन फतवाधारियों को सर उठाने का मौका ना दो.. बोल कि लब आजाद दै तेरे...
लेकिन इन सबके बीच दुखद बात ये है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ्ती ने खानापूर्ति करके छोड़ दिया। हर कश्मीरी स्वतंत्र है नाचने और गाने के लिए..लेकिन खुले तौर ताल ठोंकर कोई नहीं कठमुल्लाओं को चुनौती देने..जो लोग प्रगाश का समर्थन कर रहे है वो कश्मीर के बाहर के हैं। उन लड़कियों के समर्थन में कश्मीर के भीतर से उठने वाली आवाजें बेहद कमजोर है। या फिर सुनाई ही नहीं देती। ये खामोशी फतवों के असर को गाढ़ा करती है।
कश्मीर से ताल्लुक रखने वाली कोई भी सामाजिक संस्था प्रगाश के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद करती सुनाई नहीं देती। अफसोस की बात तो ये है कि अगर एक कश्मीरी अपने हक के लिए लडऩे के बजाय फतवों से डरता है तो घाटी में हालात बेहद खराब है। जहां एक आम कश्मीरी लड़की के नाचने और गाने पर फतवा जारी कर दिया जाता है।
वहीं, उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को इसी मुद्दे पर एक निजी टेलीविजन चैलन से बात करना भी उचित नहीं समझा। उमर ट्वीट तो करते रहे लेकिन सार्वजनिक मंच पर आकर कश्मीरियों के हक में खड़े होना ठीक नहीं समझा। बड़े नेता है इसलिए ट्विटर पर संदेश टाइप करते रहे। लेकिन जरुरत इस बात कि है कि आम कश्मीरियों को यह अहसास दिलाया जाए कि उनके मौलिक अधिकारों पर कोई फतवा जारी नहीं कर सकता। और जो ऐसा करेगा उसे इसकी सजा भुगतनी होगी।
सोमवार को टाइम्स नाऊ पर जो फुटेज चलाया जा रहा था। उसमें ये साफ दिखता है कि कुछ असामाजिक तत्व मंच पर आकर उन लड़कियों को धमकाते है। साथ ही प्रगाश के सदस्यों को ऑनलाइन माध्यमों से भी धमकियां जारी की गई। ऐसे में ये सवाल उठता है कि ये कैसा धर्म और समाज है कि लड़कियों के नाचने और गाने से उसकी चूलें हिलने लगती है।
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