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इस राष्ट्रवाद के आगे आप का सिदांन्तवाद कहीं नहीं ठहरता।

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  आईआईएमसी में इस साल जब से सामयिक चर्चाओं क़ि शुरुआत हुई है। एक चीज़ बार बार सुनने में आ रही है क़ि राष्ट्र का कोई औचित्य नहीं होता। मानता हूँ उनकी बात को   जो राजनीतिक किताबों में भी लिखी है। ऐसा नहीं है क़ि मेरे भाई - बंधू उसे दुसरे अर्थों में स्वीकारते है। लेकिन वो इसे पूरी तरह खारिज कर देते है।               एक नागरिक क़ि पहचान उसके निवास स्थान से, उसके परिवेश से और उसके देश क़ि सीमाओं से होती है। वो किस इस देश का नागरिक है। आप उनसे पूछिये जिनके साथ  किसी देश का नाम जुड़ा नहीं है।  उन शरणार्थियों से पूछिये जिन्हें  कोई देश अपना नागरिक स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कुछ लोग इसी  देश में रहते है। यही का खाते है, फिर भारत क़ि सीमाओं को नहीं मानतें। मै जानना चाहता हूँ क़ि उनके लिए भारत का मतलब क्या है। क्या वो यही चाहते है क़ि हिंदुस्तान क़ि कोई सीमा  ना हों। उसे एक राष्ट्र क़ि मान्यता ना हों।             बात अरुंधती रॉय से शुरू हुई थी। उन्हें गिरफ्तार किये जाने के उस आदेश से जिसमें कोर्ट ने उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज कर गिरफ्तार करने को कहा था।  कुछ लोगों ने उनका पक्ष ल

गांधी को गोली लगते जिन्होंने देखा था, उन्‍हें सुनिए

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वह भी एक दिन था।” वे क्षण भर रुके। फिर थोड़ी दूर चलकर बताया,” गांधीजी को जब गोली लगी तो मैं इस स्थान (10 से 12 फुट की दूरी) पर था।” यह बात केडी मदान कह रहे थे। सहसा इसपर आपको यकीन न हो। पर उन्हें सुनने के बाद वह पूरा दृश्य सभी के सामने नाचने लगता है। ऐसा ही उस समय हुआ, जब गांधी स्मृति केंद्र के मैदान पर बुजुर्ग केडीमदान आंखों देखा हाल सुना रहे थे। मदान उन दो लोगों में हैं, जिन्होंने गांधी को करीब से गोली लगते देखा था और संयोग से हमारी जानकारी में हैं। उन दिनों मदान वहां ऑल इंडिया रेडियो की तरफ से गांधी के भाषण को रिकार्ड करने रोजाना जाते थे। उन्होंने कहा कि 30 जनवरी की वह एक सामान्य शाम थी। गांधीजी प्रार्थना स्थल पर अपनी जगह पहुंचने ही वाले थे कि एक तेज आवाज आयी। मुझे लगा कि कोई पटाखा छूटा है। कुछ और सोच पाता कि दूसरी आवाज सुनाई दी। थोड़ा आगे पहुंचा, तबतक तीसरी बार आवाज आयी। वहां मैंने पाया कि जमीन पर गिरे गांधीजी को एक व्यक्ति उठा रहा है, जबकि गोली चलाने वाले को वहां मौजूद कुछेक लोग पकड़े हुए हैं। हालांकि, वह व्यक्ति पूरी तरह शांत और स्थिर था।” दरअसल घटना के 62 साल बाद मदान उस काल

जनता के पैसे के दुरूपयोग पर चुप्पी, क्यों..?

हालियॉ रिलीज फिल्म 'नाँकआउट' का एक चरित्र कहता है। ' क्या तुम्हें पता है कि हजार रुपए का नोट ' गुलाबी क्यों होता हैं'। क्यों कि वह देश की जनता के खून से रंगा होता है। लेकिन शायद कांग्रेसियों को इस बात का इल्म नहीं हैं कि उनके पालतू पैसाखोरों ने जिस पैसों से अपनी सेहत और मालदार बनाई है, वो पैसा भी खून पसीने से कमाया हुआ था। देश के नामी गिरामी खानदान के राजकुमार और भविष्य की प्रधानमंत्री कुर्सी पर नजर गङाए 'युवराज' को ये दोहराना आता है कि 'केन्द्र का एक रुपया आम आदमी के पास पन्द्रह पैसे के रूप में पहुँचता हैं। लेकिन ये नजर नहीं आता कि उन्हीं के नाँक के नीचे उनके पालतुओं नें करोंङों पचा डाले। पता भी कैसे चले जब आँखों पर गांधारी की तरह पट्टी बंधी हो और कान बहरे बन गए हो। यही गांधी परिवार है,जिसका पसंदीदा डॉयलॉग है 'आम आदमी का हाथ, कांग्रेस के साथ' लेकिन मैं इसको इस तरह देख रहा हूँ कि 'आम आदमी का पॉकेट,कांग्रेस के हाथ'। विकास और पारदर्शिता के बल पर युवाओं को भ्रष्ट राजनीति की काल कोठरी में खींच लाने का दंभ भरने वाले युवराज को अपने पैसाखोर

हिंदी पखवाडा

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लो भाइयो,आ गया हिंदी पखवाडा (1sep से 15sep ) तक ,लेकिन समझ में नहीं आता क़ि जब सारे उच्च वर्ग के लोग अंग्रेजियत के पल्लू से चिपके हों तो कितनी प्रासंगिकता रह जाती है इन आयोजनों की,क्या आप मुझे बतायेगे की ये पखवाड़ा हिंदी को श्रदांजलि देने लिए आयोजित किया  जाता  है या जन्म दिवस मनाने के लिए... इस समय  अगर आप दिल्ली के किसी इलाके  में सरकारी कार्यालयों के बगल से गुजरते होगे तो इस पखवाड़े को मनाने के लिए सरकारी अनुरोध लटका हुआ दिख जायेगा .पता नहीं कितने लोग इसका पालन करते होंगे,लेकिन एक बात तो तय है की हममें  से हर कोई अपनी मातृभाषा को उसका सम्मान  देने में असमर्थ है, चाहे वो इस देश का पीएम हों या प्रेसिडेंट , इस देश के नेतागण जब भी किसी को संबोधित करते है तो अधिकतर अंग्रेजी में ही करते है मानो उन्हें हिंदी आती नहीं या देश की जनता समझती नहीं, इस  देश में एक  वर्ग ऐसा भी हैं जो सार्वजनिक स्थानों पर गिटिर- पिटिर अंग्रेजी बोलकर खुद को एन आर आई साबित करता है और हिंदी बोलने वालों को इस नज़र से देखता है मानो वो नाली का कीड़ा हों....... शर्म आनी चाहिए उन लोगो को जो पूरे साल अंग्रेजियत झाड़ते 

मेरे कारनामों में तुम खुबसूरत हो

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मेरे कारनामों में तुम खुबसूरत हो नए ज़माने की मिसाल हो सांचे में ढली मूरत हो, कोई करे कल्पना हुस्न क़ि तो वो बस तुम हो , किसी क़ि यादों में बसने वाली नाजनीन तुम हो एक युवा के सपनों में आने वाली हसीं तुम हो गुलशन में खिलने वाली हर कली, सिर्फ तुम हो फिजां में बिखरने वाली महक भी तुम हो ये क्या है, हर नाचीज़ तुम हो, तुम हो तो रंगत है, रंगत क़ि जरूरत हर मौसम को है हर हुस्न को है, ये हर नौजवान क़ि जरूरत है जीवन का चरम भी तुम हो, उम्र का शिखर भी तुम हो प्यार का मौसम भी तुम हो, तुम तो बस जवान हों, बुढ़ापे क़ि जलन हो बुढ़ापे से पहले, तुम मेरी जवानी हो. आमीन.

जीना, कमाल है

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चारों तरफ मुश्किल हालात है  मरकर भी जीना कमाल है, ना रहे दुनिया में तो क्या गम है  यारों  के दिल में जिन्दा रहना क्या कम है, हमने तो यही चाहा, जिन्दा भी रहे तो ,याद रहे यादों में मेरा नाम रहे, मरकर भी जिन्दा नाम रहे, कोई शिकवा खुदा से करे, दुआ हमे भी मिले चाहे जीने के लिए  जिन्दगी और उम्र ना रहे, किसी की दुआओं का असर तो होगा खुदा कभी तो मेहरबान होगा, एक पल अपने साथ होगा जीने के लिए किसी का आशीर्वाद तो होगा...  धन्यवाद .......

और वो बच्चा ......

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१२ अगस्त का दिन,कक्षाये ख़त्म हो चुकी थी....शाम के लगभग सात बजने वाले थे, मै और मेरा दोस्त अमित कैम्पस से निकलकर पैदल ही बेर सराय पहुंचे..रास्ते में ही हम कुछ खाने के बारे में बात कर रहे थे.. सोचा था हमने क़ि  बेर सराय पहुंचकर कुछ खाया जायेगा ..बेर सराय पहुँचने के बाद हम  दोनों में मोमोज खाने पर सहमती बनी...और फिर हम दोनों मोमोज स्टाल पर पहुंचे.....मोमोज वाले से हमने हाफ  प्लेट मोमोज देने को कहा ,हाफ प्लेट लेने के बाद ज्यो हीं,हमने एक टुकड़ा मुंह में रखा ...एक बच्चा दौड़ता हुआ आया और अपने हाथ उसने हमारी तरफ बढ़ा दिए ..इस उम्मीद में क़ि कुछ मिल जायेगा लेकिन ...हम दोनों ने उसकी तरफ ना तो देखा और ना उसे कुछ दे सके और ना ही कुछ कह सके, क्यों क़ि लालच ने हमे भी आ घेरा था ..और हम दो लोंगो के बीच सिर्फ छं टुकड़े ही थे.. लेकिन कुछ सेकंडों बाद वो बच्चा फिर दौड़ता हुआ आया और हाथ फैलाके के खड़ा  हो गया ..इस बार हम उसकी तरफ देख ही रहे थे क़ि स्टाल वाले ने उसे दौड़ा लिया .. अबे साले.. आखिरी दो पीस ही बचे थे और वो बच्चा फिर इस उम्मीद में आया क़ि शायद कुछ मिल जायेगा .. शुरू  से ही मै खुद को काबू मे