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SHORT STORY: कुलटा और खनगीन

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बबुआन लोगों की दबंगई का प्रतिरोध ना कर पाना उसकी मजबूरी थीं या कुछ और. लेकिन नील टीनोपाल में रंगे कुर्तों वाले बबुआनों में से कौन जनेऊ पहनता है और कौन नहीं वो गिन के बता देती. यूं भी मुहल्ले की कथित सभ्य औरतें उसे कुलटा और खनगीन जैसे शब्दों से नवाज चुकी थी. और उसे अपवाद मान पूरा गांव दूध का धुला बनता. खेती हमेशा से घाटे का सौदा रही है. वो शहर क्या गई..बस्ती में बलात्कार, छेड़छाड़ और जबरदस्ती का ग्राफ बढ़ गया. झक सफेद कुर्तों पर अब नीले धब्बे उग आए थे. 

इक कप के मिठास में

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सोचा कि इस गम को  डुबोके पी जाऊं शराब में  पीते-पीते शाम हो गई गम तैरता रहा.. मेरे ही ख्याल में  लाजवाब है..हर कला आपके अंदाज में  हर कोई घुलता है..इक कप के मिठास में  बड़ी बेसब्र है दुनिया कि कौन कातिल है यहां गर वो मिले अपने कफन में  तो..उसे भी रुला डाले दुनिया गर शाम गुजरती है मयखाने में  तो समां से पूछो  क्यूं दीवाने डूब रहे है दो घूंट शराब में  हर खिलती कली पर भौरां मेहरबान है.. कौन बताएं उन्हें कि  ये हरकत नादान है.. दिख रही है जिंदगी  उजड़ते पेड़ की तरह  हर तरफ दरारें है इसमें  टूटती शाख की तरह  तहखानों में बंद ना होगी  जिंदगी फिर इस कदर  हम ढूंढ़ते रहेंगे..चांदनी  पूर्णिमा की रात की तरह.

..कि तेरा शरमाती आंखों से मुस्कुरा देना..

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बरसों पहले लिखी हुई कुछ लाइनें.. वो लम्हें कैसे धुंधले हो जाएं मेरी यादों के शीशे में ..कि तेरा शरमाती  आंखों से मुस्कुरा देना.. ये चाहत उनकी भी थी  तैयार हम भी हुए कुछ पल की बरसात के बाद  ठंडे पड़ गए बदन के शोले  अंजान हम है.. बहारों के लौट आने तक  बिन पतझड़ के संभव नहीं  नई कोंपलों का निकलना.. हो गई.. तलब हमें गए-ए-यार की  प्याले भरे रह गए जैसे भरी मेरी आंख थी वो घूंट तड़प गई मेरी वफा से  बिखर गए हम .. उसी से लिपट के..

SHORT STORY: जो था..मधुमास था.

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अगली सुबह जब वह अपने पुराने कुर्ते में बटन टांक रहा था. दरवाजे पर दस्तक हुई..उसने आवाज दी..खुला है..और जब वह आई तो आती गई..बटन, धागे और सुई एक दूसरे के सहारे उलझे थे. उसने करीने से सुई थामा और बटन टांकने लगी..वो देखता रहा..हवा में घुल रहे प्रेम में डूबता रहा. उसके हाथ उतावले थे अपनी प्रेयसी के चेहरे को थामने के लिए..लेकिन उसने अपनी अंगुलियों को झिड़क दिया..और जब प्रेयसी ने धागे को तोड़ने के लिए कैंची मांगने के बजाय..धागे को ही अपने होंठो तक ले गई...तो उसके सीने में एक चुभन सी उठी और फिर क्या..जो था..मधुमास था. 26.04.2013

और, चांद किसी और ने देखा

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कारवां वफ़ा का निकला ..सारी रात जागते रहें हम  और, चांद किसी और ने देखा. आज सब कुछ बिकाऊ है शीशे का दिल हो.. या औरत का जिस्म  ...चौक पे उम्मीद है चलेगी जिंदगी  बसंती झोकों की तरह  पर ठहरी है ऐसे.. जैसे पांव भारी है नई दुल्हन के. नग्में लिख रहा हूं तन्हाईयों में गुनगुनाने को  तुम्हें याद कर रहा हूं और, सबकुछ भूल जाने को. रंगीन होती है..तेरी यादों की शाम टटोलता हूं वो  मिलन की रात  बहुत लोग ठहरे हैं मेरे कमरे पर  दिल लगता नहीं चर्चों में.   21 मई 2009 को लिखा था.

इक प्यास

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इक प्यास सी लगी है तुझे देखकर भीग रहा है तन बदन बारिश की बूंदों से.. लेकिन प्यास बुझती नहीं.. पिया नहीं जा रहा कुछ तुझे देखकर.. ये कैसी प्यास है जो नहीं बुझती पानी के कतरों से तड़प रहा हूं पानी पीकर भी.. तू क्या है, जो बढ़ती जा रही है प्यास तुझे देखकर.. अजीब इत्तेफाक है पसरा है पानी हर तरफ पीता जा रहा हूं कि, शायद मिट जाए तुझे देखकर.. ये बढ़ती जा रही है अनंत की तरफ ये प्यास मिटती नहीं तुझे देखकर.. आके करीब पिला दो अपने लबों से.. तेरे हाथों के स्पर्श से बना जाम.. भिगो जाएगा जिस्म को अंदर से.. ये प्यास मिट जाएगी तुझे पाकर.. तू क्या है जो किसी में जगा देती है इक प्यास और करीब आके मिटा देती है प्यास.. 28.03.2013 * मई 2008 में लिखी गई यह कविता आज मैंने अपने ब्लॉग पर पोस्ट की है. 

मैं चाहता हूं, तुझे..

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ये दिल मदहोश है, तेरे प्यार के तरन्नुम में तू मुझे संवरने दे, अपनी नजरों के आइने में. मैं चाहता हूं,  तुझे दिल की गहराइयों से अपने जेहन की दीवारों पर लिखे हैं नाम तेरे. तू मुझे जी लेने दे, अपने प्यार के साए में इक टूटे हुए दिल की दुआएं होगी, तेरे दामन में. तेरी तस्वीरों को हमने, अपनी यादों में सजाया मेरे सोने के लिए तूने अपना आंचल बिछाया. तुझे देखकर सोचता हूं, तू ख्वाब है या हकीकत मैं समर्पित हूं तेरे लिए, जिंदगी हो या मौत का निमंत्रण. 2009 में लिखी एक और कविता को 4 सालों बाद ब्लॉग पर लगाना एक अलग एहसास दे रहा है.