Afghanistan Crisis: 20 साल... अफगानिस्तान को नेहरू ना मिलें...

काबुल एयरपोर्ट से आ रहे वीडियो दिल दहलाने वाले हैं. लोग रनवे पर विमान के आगे भाग रहे हैं. विमान के पहियों में लटककर विदेश भाग जाना चाहते हैं. अपने पीछे बच्चों और महिलाओं को छोड़कर... जबकि तालिबानी क्रूरता का खतरा अफगानी महिलाओं को ही सबसे ज्यादा है. कौन इस हालात के लिए जिम्मेदार है कि एक आदमी सब कुछ छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए भाग जाना चाहता है.


बीस साल मिले थे, इन लोगों को, जो आज भाग रहे हैं. ये अपना मुस्तकबिल लिख रहे थे. लेकिन, ऐसा नहीं हो पाया. बीते स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री का भाषण सुन रहा था, उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुए पहले गांधी, सुभाष और पटेल का नाम लिया. दो लाइन बाद नेहरू का नाम लिया. साइड में अफगानिस्तान का मसला चल रहा था. अशरफ गनी की एक खबर बनाते हुए नेहरू का नाम अटका, क्या अफगानिस्तान को नेहरू मिल गए होते तो स्थिति ऐसी ही होती.

क्या अफगानिस्तान के पास अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए संसाधन नहीं थे? खबरें आईं कि तालिबान का मुकाबला करने वाले सैनिकों के पास खाने को नहीं थे और चिप्स के भरोसे उन्हीं दिन काटना पड़ रहा था. क्या इतने खराब थे हालात? आखिर स्थिति ऐसी थी तो अफगानिस्तान के शासकों ने पिछले 20 सालों में क्या किया? सोचिए? एक मुल्क को गढ़ना आसान नहीं होता है. नेहरू को गालियां देने वाले लोगों को अफगानिस्तान के हालात देखने चाहिए.

सोशल मीडिया पर तैरते ये वीडियो एक मुल्क, उसकी लीडरशिप और वहां के लोगों की असफलता है, जिसका परिणाम ये है कि लोग किसी भी तरह तालिबान के डर से भाग जाना चाहते हैं. तालिबान इनके ही बीच का है. इनमें से ही कितने लोग काबुल की सड़कों पर तालिबान के साथ फोटो खिंचा रहे हैं. सेल्फी ले रहे हैं. कुछ लोग भाग जाना चाहते हैं. नेहरू ने कब तक शासन किया. 1947 से 1964 तक. 17 साल और हिंदुस्तान में ना जाने कितनी चीजें उन्होंने बना दीं.

आप कहेंगे भारत के हालात अलग थे. नहीं, भारत के हालात अलग नहीं थे. हमने युद्ध लड़े. सूखा देखा. दंगे देखें. विभाजन का दंश देखा. लेकिन, मुल्क खड़ा हुआ. धार्मिक नफरत को मात दी गई. सेना भी खड़ी हुई. उसी सेना ने 7 साल बाद 1971 की जंग जीत ली. एक मुल्क को खड़ा करने के लिए, अपने लोगों को रोटी देने के लिए 20 साल काफी होते हैं.
लेकिन अफगानिस्तान ऐसा नहीं कर पाया.

अफगानिस्तान का ऐसा कोई कोना नहीं था, जहां भारत का निवेश नहीं था. भारत ने रोड, सड़क और बांध से लेकर क्या-क्या नहीं अफगानिस्तान में बनाया. लेकिन, अफगानिस्तान कहां चूक गया... अफगानिस्तान के हालात परेशान करने वाले हैं. एक नागरिक के तौर पर, एक इंसान के तौर पर... खुद को काबुल में फंसे एक नागरिक के तौर पर रखकर देखिए... कहां चूक गया अफगानिस्तान...?

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