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एक कमरा था। मन भर उदासियां थी, खामोशियों की शक्ल में। दराज
में रखी किताब पर लिखा था। तमन्ना तुम अब कहां हो? जीने की तमन्ना। उसने पूछ ही
लिया क्या हमारे पास एक दूसरे के लिए तमन्नाएं नहीं है। क्या हमारे पास बतियाने और
कहने को कुछ नहीं है। इतनी देर से हम खामोश क्यों है? ये किताब तुमने पढ़ी है। हां,
पढ़ी है। इसमें अमरूद की चटनी पर एक कहानी है। तुमने कभी अमरूद की चटनी खाई है।
अमरूद के पास हमेशा एक स्वाद होता है रंग होता है। तुमने कभी कुछ मांगा नहीं। कहा
नहीं। बस चलते रहे। मेरे साथ साथ। अचानक से वो उठा और कहा चलो आज तुम्हें अमरूद की
चटनी खिलाते है। दोनों किचन में घुसे। आगे पीछे। वह कई तरह की चटनी बनाना था। आम की
चटनी। इमली की चटनी। अमरूद की चटनी। धनिया की चटनी। लहसून की चटनी। मिर्च की चटनी।
तमाम अचारों की चटनी। जितनी चटनी उसकी बहनों ने उसे बनाई के खिलाई। वो सब बना लेता
था। उसके दोस्त कहते, जब खुश होता है तो चटनी बनाता है। उन्हें नहीं मालूम था कि वो
चटनी के जरिए प्यार जताता है।
कच्चा अमरूद कसैला होता है। पक्का अमरूद
मीठा। चटनी कच्चे अमरूद की बनती है। जो तीखी होती है। खाते ही मन ही साफ हो जाता
है। कानों से हवा पास होने लगती है। लोग सू सा करने लगते हैं। खामोशियां गुम हो
जाती है। लोग बोलने लगते है। दोनों किचन में लड़ने लगे। लाओ मैं काटती हूं। लहसून
मैं छील देती हूं। तुम रहने दो मैं अपने हाथों से बनाकर तुम्हें खिलाऊंगा। दोनों
खूब बोल रहे थे। जोर जोर से। किचन गुलजार था। शरारतों से। चूडियों की हल्की खनक से।
सामानों की टकराहट से। तीखे, खट्टे-मीठे स्वरूप में स्वाद आकार ले रहा था। दोनों ने
अपने रिश्ते में चटनी की नई छौंक लगा दी। एक दूसरे के लिए उनमें तमाम तमन्नाएं जाग
चुकी थी। दोनों उसी कमरे में सू सा कर रहे थे। जो कुछ देर पहले तक सन्नाटा ओढे था।
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