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मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको

(कोई छह साल पहले लखनऊ के अख़बार अमृत प्रभात के साप्ताहिक संस्करण में अदम गोंडवी उर्फ़ रामनाथ सिंह की एक बहुत लम्बी कविता छपी थी : ``मैं चमारों की गली में ले चलूंगा आपको´´। उस कविता की पहली पंक्ति भी यही थी। एक सच्ची घटना पर आधारित यह कविता जमींदारी उत्पीड़न और आतंक की एक भीषण तस्वीर बनाती थी और उसमें बलात्कार की शिकार हरिजन युवती को `नई मोनालिसा´ कहा गया था। एक रचनात्मक गुस्से और आवेग से भरी इस कविता को पढ़ते हुए लगता था जैसे कोई कहानी या उपन्यास पढ़ रहे हों। कहानी में पद्य या कविता अकसर मिलती है - और अकसर वही कहानियां प्रभावशाली कही जाती रही हैं जिनमें कविता की सी सघनता हो - लेकिन कविता में एक सीधी-सच्ची गैरआधुनिकतावादी ढंग की कहानी शायद पहली बार इस तरह प्रकट हुई थी। यह अदम की पहली प्रकाशित कविता थी। अदम के कस्बे गोंडा में जबरदस्त खलबली हुई और जमींदार और स्थानीय हुक्मरान बौखलाकर अदम को सबक सिखाने की तजवीव करने लगे -  मंगलेश डबराल,  १९८८- "धरती की सतह पर " की भूमिका से ) आइए महसूस करिए जिन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको जिस गली में भुखमरी की यातन

अखबार की कतरनें

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मेरठ से प्रकाशित हिंदी दैनिक जनवाणी में...

चाय का एक कप

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courtesy_Google हर सुबह तुम्हें अपने हाथों की चाय पिलाना और बगल वाली खाली कुर्सी पर तुम्हारा इंतजार करना छूट गया है. और सुबह सुबह तुम्हारे भीगे बालों से टपकती उन बूंदों के बहाने तुम्हें छूना भी.. उबासियों के साथ महसूस करता हूं कि ढेर सारे लोगों से बेहतर चाय बनाने का नुस्खा मेरे पास है. और ये भी कि मैं खाना बनाने की बेस्टसेलर किताबें लिख सकता हूं. हमारे दरम्यान हजारों किलोमीटर की दूरी पनप आई है और इस दौरान मैंने हजारों कप चाय पी होगी. लेकिन उस स्वाद और मजे का अनुभव ना हुआ. जो तुम्हारे साथ बैठकर पीने में आता था. यहीं कमी चाय का एक कप बनाने के लिए मुझे बेचैन कर रही है. बिना तुम्हारे किचन के. लेकिन क्या वाकई मैं चाय के एक कप के लिए बेचैन हूं या तुम्हारे साथ मिलने वाले उस स्वाद और आनंद के लिए.. 12.06.2013

ब्लॉग डायरीः अंगुलियों को कलम से आलिंगनबद्ध होना पसंद नहीं

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courtesy_google इस शहर में आए हुए मुझे दो महीने से ज्यादा हो गए. लेकिन मेरा मन ना तो ऑफिस के काम में लगता है, ना उस कमरे में जहां मैं रहता हूं. हालांकि एक बल्ब की रोशनी मेरी तन्हाइयों को रोशन करने की फिराक में लगी रहती है. मैं डूबता रहता हूं..अपने भूत और भविष्य के क्रिया कलापों को लेकर, तो कभी किसी अमूर्त काया से कविता के मार्फत अपने प्रेम का इजहार करता हूं. 2. एक खूंटी के जरिए दीवार के सहारे लटकी बल्ब की रोशनी मेरे सोने तक जगी रहती है. सिर्फ इसीलिए कि मैं एक बार उसकी तरफ नजरें उठा कर देख लूं. लेकिन अकेलेपन से आजिज होकर जब मैं खुद से छुटकारा पाने कोशिश करता हूं. मेरी आंखें, मस्तिष्क को नियंत्रित करने लगती है. ऐसे में उस रोशनी से आंखें मिला पाना संभव नहीं हो पाता और वो रोशनी अगली रात के इंतजार में अपनी आंखें बंद कर लेती है.  इससे पहले कलम, मस्तिष्क के साथ कदम ताल करती थीं और वाक्यों में एक लय बनी रहती थीं. लेकिन जब से अगुंलियां की-बोर्ड पर थिरकने लगी है. मस्तिष्क का नियंत्रण भी की-बोर्ड के हाथ में चला गया है. और जब ये अंगुलियां कलम थामती है तो मस्तिष्क, कलम से पीछा छुड़ान

नोट्सः तेरे काबिल होने के लिए, मुझे कितने इम्तहान देने होंगे.

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लोग बाजार में अपने हमशक्ल ढूंढ़ लेते हैं. जब पूरी दुनिया उदास लगे, कविता में डूब जाया करो. तमाम चाहने वालों के बावजूद मैं अकेला पड़ जाता हूं.  मुझे माफ करना, मेरे चाहने वालों, मैं किसी और को चाहता हूं.  कुछ लोग मेरे अपने है, मांग मत लेना उन्हें..मना नहीं कर पाऊंगा. तेरे काबिल होने के लिए, मुझे कितने इम्तहान देने होंगे.  15.05.2013

मैं कविता से प्रेम करता हूं.

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courtesy_google मैं कविता से प्रेम करता हूं. ...और तुम्हारे पास कविता की भावनाएं हैं भाव, कविता के लिए आत्मा की तरह है.. इसी धागे के दो सिरे हैं हम तुम और तुम तो जानती हो.. भाव के बिना कविता अधूरी है.. मेरे जीवन में तुम्हारा होना ही कविता का होना है.. ताकि मैं प्रेम करता रहूं ..............कविता से 05.05.2013

सूरज, तुमसे मुंह दिखाई नहीं लेगा

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एक अमूर्त काया ही है मेरी प्रेयसी जिसे प्रेम करता हूं जब रोती है.  सारा जहां कहता है  बारिश हो रही है.. जब हंसती है  दुनिया वाले  दिन को खुशगवार कहते है और जब संवरती है तो  उस रात को  पूर्णिमा का नाम देते है. एक अमूर्त काया ही है मेरी प्रेयसी  उसके रोने, हंसने, और संवरने से  निढाल होते है..दुनिया वाले देखने के बजाय  महसूस करना रोने, हंसने और संवरने से  जो साकार होती है  वहीं है मेरी प्रेयसी  नजर आये, तो  मेरा जिक्र करना  सूरज, तुमसे मुंह दिखाई नहीं लेगा 03.05.2013