संदेश

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कौन कहता है ? कवि सम्मेलन के दिन लद गए .. आम दिनों की तरह मैं दफ्तर में ही था। जयपुर शहर के बिड़ला ऑडिटोरियम में कवि सम्मेलन का आयोजन हो रहा था। मैं जाना चाहता था कवि सम्मेलन में लेकिन पास का जुगाड़ हो नहीं पाया था। ईमानदारी से कहूं तो पास के लिए मैंने कोशिश भी नहीं की थी। लेकिन दिल में इच्छा थी कि चलकर गोपाल दास नीरज को सुना जाए। उनसे साक्षात रूबरू हुआ जाए और जिनकी कविताओं और गीतों का पाठ बचपन में किया करते थे। खुद उनकी आवाज में कविता पाठ सुना जाए। शाम के पांच बज रहे थे। मेरी शिफ्ट खत्म होने वाली थी। लिहाजा कवि सम्मेलन में जाने का मेरे पास अच्छा मौका था। मैंने पास के लिए अपने साथी सहकर्मी से कहा, और बंदोबस्त हो गया। आधे घंटे बाद मैं निकल चुका था गोपाल दास नीरज को सुनने के लिए... पहली बार एक श्रोता के तौर पर कवि सम्मेलन में शिरकत करने जा रहा था। इससे पहले कभी बिड़ला ऑडिटोरियम भी नहीं आया था। इसलिए ऑटो वाले को बोला कि भइया थोड़ा तेज चलो। ऑटोचालक भी जवान था और मेरे प्रेरित करने से उसने गियर दबाया और 5 बजकर 45 मिनट पर मैं बिड़ला ऑडिटोरियम में था। भव्य बिड़ला ऑडिटोरियम

तूफान अभी थमा नहीं हैं...

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कंगारूओं के खिलाफ भारतीय टीम ने भले ही पहली जीत हासिल कर ली हो। लेकिन साल की पहली जीत से पहले उठ रहे सवालों का जवाब मिलना अभी बाकी हैं। लगातार चार टेस्ट और एक टी-20 मैच में मिली हार के बाद उठा तूफान अभी थमा नहीं हैं। टीम इंडिया को मिली जीत की चवन्नी से खुश इंडियन मीडिया के पब्लिसिटी का ढोल पीटने से सवालों की गूंज थम नहीं जाएगी। एक जीत और टीम इंडिया की सारी परेशानी दूर...क्या किसी को याद है कि इस  जीत से पहले सहवाग को क्या परेशानी थी, गंभीर की तकनीक में क्या खामी थी ? धोनी की कप्तानी चतुराई भरी थी या नहीं...क्या वो अपने गेंदबाजों का बेहतर उपयोग कर पा रहे थे ? क्या सहवाग से उनका छत्तीस का आकड़ा नहीं था ? नहीं...तुम बेवकूफ हो..टीम इंडिया के साथ कोई समस्या नहीं है...जीत का मीटर चालू आहे.. लेकिन भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम से छनकर आ रही खबरों पर गौर फरमाएं तो इस टीम के साथ कुछ तो गड़बड़ हैं। आस्ट्रेलिया के खिलाफ टी-20 सीरीज शुरू होने से पहले धोनी ने खुलेआम यह कर चौंका दिया है कि अगर कोई टीम की कप्तानी संभालना चाहता हैं तो आगे आएं। यानि कहीं आग हैं तभी धुआं उठा हैं। अब सवाल यह है कि क

...स्साला बड़ा बीहड़ हैं

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हजार शब्दों का ये टुकड़ा मुकुल आनंद की अग्निपथ की रीमेक, करन मल्होत्रा और करन जौहर की अग्निपथ को देखने के दौरान उभरी भावनाओं को रेखांकित करता हैं। हां.. ये फिल्म रिव्यू नहीं हैं। रात के साढ़े आठ बज रहे थे। तीन चार दोस्तों के बीच गप्पेबाजी का प्लान बन ही रहा था कि पत्रकार मित्र भाई जी अपने कमरे से दौड़ते हुए आए। देखा तो उनके पीछे राणा साहब भी हाथ पांव भांजते नजर आए। स्वप्नल ने आते ही ऐलान किया, कौन-कौन चलेगा अग्निपथ देखने। नाइट शो रात के दस बजे से 2 बजे तक जल्दी से हां या ना कहो..पत्रकार बंधु को जल्दी थी सो हमने भी जवाब देने में कोई देर नहीं लगाई। राजस्थान पत्रिका के पुल आउट जस्ट जयपुर को पलटकर शो का टाइम निश्चित किया गया और तीन साथियों का दल अग्निपथ के लिए पड़ा। तीन किलोमीटर दूर ग्लोबलाइजेशन के बाद सिनेमा हॉल का विकसित रुप इंटरटेनमेंट पैराडाइज के रुप में खड़ा हैं। गुलाबी शहर के मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखने के लिए अपन पहली बार पधारे थे। शो शुरू होने में अभी एक घंटा बाकी था। राणा साहब ने कहा कि चलिए घूमते हैं देखा जाए पैराडाइज की चौहद्दी क्या हैं। राणा साहब के साथ हम चलते आए और
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bbc world news per is video ke prasaran ke bad. pakistan me bbc world news service per pabandi laga di gayee..aap bhi dekhiye ye documentry..
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आईआईएमसी .... 
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वर्ल्ड कप फाइनल का यह वीडियो आपको उस ऐतिहासिक पल को दोबारा जीने का एहसास देगा। देखिए तो...
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