तूफान अभी थमा नहीं हैं...
कंगारूओं
के खिलाफ भारतीय टीम ने भले ही पहली जीत हासिल कर ली हो। लेकिन साल की पहली जीत से
पहले उठ रहे सवालों का जवाब मिलना अभी बाकी हैं। लगातार चार टेस्ट और एक टी-20 मैच
में मिली हार के बाद उठा तूफान अभी थमा नहीं हैं। टीम इंडिया को मिली जीत की
चवन्नी से खुश इंडियन मीडिया के पब्लिसिटी का ढोल पीटने से सवालों की गूंज थम नहीं
जाएगी।
एक जीत और टीम इंडिया की सारी परेशानी
दूर...क्या किसी को याद है कि इस जीत से
पहले सहवाग को क्या परेशानी थी, गंभीर की तकनीक में क्या खामी थी ? धोनी की कप्तानी चतुराई भरी थी या नहीं...क्या
वो अपने गेंदबाजों का बेहतर उपयोग कर पा रहे थे ? क्या सहवाग
से उनका छत्तीस का आकड़ा नहीं था ? नहीं...तुम बेवकूफ
हो..टीम इंडिया के साथ कोई समस्या नहीं है...जीत का मीटर चालू आहे..
लेकिन
भारतीय टीम के ड्रेसिंग रूम से छनकर आ रही खबरों पर गौर फरमाएं तो इस टीम के साथ
कुछ तो गड़बड़ हैं। आस्ट्रेलिया के खिलाफ टी-20 सीरीज शुरू होने से पहले धोनी ने
खुलेआम यह कर चौंका दिया है कि अगर कोई टीम की कप्तानी संभालना चाहता हैं तो आगे
आएं। यानि कहीं आग हैं तभी धुआं उठा हैं। अब सवाल यह है कि क्या टीम इंडिया के
खिलाड़ियों में गुटबाजी चल रही हैं। क्या टीम के कुछ खिलाड़ी धोनी को कप्तान के
रुप में नहीं देखना चाहते, या लगातार हार के बाद चयनकर्ताओं ने धोनी पर कप्तानी
छोड़ने को लेकर दबाव बना दिया हैं।
ऑस्ट्रेलिया
के हाथों लगातार दो टेस्ट मैचों में मिली हार के बाद पर्थ टेस्ट से पहले स्थानीय
अखबारों में धोनी और वीरेन्द्र सहवाग के बीच मनमुटाव की खबरें भी आई हैं। जिसके
बाद टीम में गुटबाजी के सवालों को कई खिलाड़ियों ने नो कमेंट कहकर टाल दिया या फिर
इसका खंडन किया। अगर ऑस्ट्रेलियाई अखबारों पर थोड़ा सा भी विश्वास करें तो मामला
खुलकर सामने आता हैं।
याद
कीजिए 2007 का जिम्बाब्वे दौरा जब सौरव गांगुली की कप्तानी में टीम इंडिया में दो
फाड़ की खबरें सरेआम हुई थी। जब ग्रेग चैपल के एक लीक ईमेल ने पूरा मामला खोल दिया
था। गांगुली, युवराज सिंह और हरभजन सिंह विंडम फॉल देखने चले गए थे और राहुल
द्रविड़, ग्रेग चैपल और बाकी टीम मैनेजमेंट के साथ टीम के होटल। यहां भी वहीं हुआ।
लेकिन मामला खुलकर सामने नहीं आ पाया रहा है। लेकिन तब ग्रेग चैपल का ई-मेल लीक
होने के कारण सबकुछ तार तार हो गया था।
एडीलेड
टेस्ट में हार के बाद सहवाग के बयान पर गौर फरमाएं, सहवाग ने कहा कि हम अब भी
विश्व चैंपियन हैं और हमें बुरे दौर में मीडिया का साथ चाहिए। सहवाग का ये बयान एक
कप्तान के रुप में उनकी महत्वाकांक्षा को दर्शाता हैं। सही अर्थों में उन्हें
छोड़कर कप्तान की दौड़ में धोनी को चुनौती देने वाला अभी कोई और नहीं हैं।
कप्तान
धोनी के बयान और आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला के बयानों पर गौर फरमाएं तो इस बात
के संकेत मिल रहे हैं कि मामला गंभीर हैं। एक साल पहले वनडे वर्ल्ड कप का खिताब
जीतने वाला कप्तान अचानक ऐसे निराशावादी बयान क्यूं देने लगा। एक साल पहले यहीं
धोनी विश्व के सबसे प्रतिभाशाली कप्तानों में शुमार किए जाते थे।
अब,
सवाल ये है कि अगर ऐसा है तो फिर इसके काऱण क्या हैं। क्या वजह है कि एक विश्व
विजेता कप्तान के साथ खुद उसकी टीम और खिलाड़ी खुलकर खड़ा नहीं हो पा रहे हैं। ये
कहा जा सकता हैं कि इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में मिली करारी हार को पचा पाना
चयनकर्ताओं और बोर्ड के मुश्किल साबित हो रहा हो। लेकिन धोनी को ये क्यूं कहना पड़
रहा हैं कि अगर कोई खिलाड़ी टीम की कमान संभालना चाहता हैं तो वो सामने आए ।
बीसीसाआई के पास इतनी ताकत हैं कि वो धोनी से जब चाहे कप्तानी छीन ले। आईपीएल
चेयरमैन राजीव शुक्ला ने धोनी के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर कोई
खिलाड़ी कप्तानी छोड़ना चाहता हैं तो उसे बीसीसीआई को लिखित में देना होता हैं। तब
जाकर बोर्ड उसके बारे में कोई फैसला होता हैं।
शुक्ला
के बयान से एक बात स्पष्ट हो गई है कि बोर्ड धोनी के बयान को बहुत ज्यादा तवज्जो
नहीं देना चाहता और वो जब चाहेगा धोनी को कप्तान के पद से हटा सकता हैं। इंग्लैंड
दौरे पर टेस्ट सीरीज में मिली हार के बाद धोनी ने कहा था कि टीम के खिलाड़ियों के
चोटिल होने की वजह से टीम का प्रदर्शन प्रभावित हो रहा हैं। लेकिन आस्ट्रेलिया
दौरे के बाद धोनी यह कहते फिर रहे हैं कि चयनकर्ता उनकी नहीं सुनते उन्हें टीम चयन
में अपनी राय लिखकर भेजनी पड़ती हैं। लेकिन जब टीम का चयन होता हैं और खिलाड़ी
चुनकर आते हैं तो उनके मांगे हुए खिलाड़ियों का नाम नहीं होता हैं। यानि
चयनकर्ताओं के साथ धोनी के आंकड़े बैठ नहीं रहे हैं। चयनकर्ता उनकी राय को महत्व
नहीं दे रहे हैं।
धोनी
का ये बयान इस बात की तस्दीक करता है कि या तो वो अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार
हैं और दूसरों की राह में उनकी ईमानदारी, बाधा और परेशानी खड़ी कर रही हैं। टीम की
हार से चिंतित धोनी को ट्रैक पर लौटने के लिए चयनकर्ता उनके पसंदीदा खिलाड़ियों को
मौका नहीं दे रहे हैं और यहीं वजह है कि धोनी बेहद निराश दिखाई दे रहे हैं। लिहाजा
एक निराश कप्तान के नेतृत्व में टीम इंडिया के लिए सफलता हासिल करना मुश्किल साबित
हो रहा हैं।
अब
देखना ये है कि ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में मिली हार के बाद चयनकर्ता क्या कदम
उठाते हैं। क्या इस हार की कीमत धोनी को टेस्ट कप्तानी की बलि देकर चुकानी होगी।
क्या वो खिलाड़ी सामने आएगा, जिसको सामने आने के लिए धोनी खुद आवाज लगा चुके हैं।
या फिर टीम इंडिया की एक दो विजय का ढोल पीटकर मामले को दफन कर दिया जाएगा।
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