आत्मशोधन, आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण।

आज के समय में  गाँधी के आदर्श और उनके मूल्यों की जरूरत हर किसी को हो रही हैं। देश में बढ़ती हिंसा और अमीर गरीब के बीच बढती खाई ने गाँधी के बताये रास्तों पर चलने वालों के माथे पर शिकन की लकीरें खींच दी हैं। आज गाँधी के ग्राम स्वराज की कल्पना का दूर- दूर तक कोई निशान दिखाई नहीं देता।
               आज देश की सत्ता कुछ चंद गिने चुने उद्योगपतियों और राजनेताओं के हाथों का खिलौना बनकर रह गयी है। गाँधी के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर उनके समाधिस्थल राजघाट पर फूल चढ़ाने वालों की कोई कमी नहीं है। लेकिन फूल चढ़ाने वालों को गाँधी के विचारों , मूल्यों और सपनों से कोई लगाव नहीं है। इसका कारण बहुत कुछ है, लेकिन ये तो कहा जा सकता है की आज के सत्ताधीशों की पीढ़ी ने गाँधी के विचारों और मूल्यों से तौबा कर ली है।
              गाँधी को समझने के लिए मात्र तीन चीज़ें ही काफी है। आत्मशोधन, आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण। अगर आप ने इन तीनों को अपने जेहन में उतार लिया तो समझिये आप ने गाँधी को समझ लिया। अगर हम गाँधी द्वारा किए गए कार्यो का अवलोकन करे तो गाँधी के व्यक्तित्व में ये तीनों चीज़ें साफ दिखती हैं । गाँधी को हमने राष्ट्रपिता का दर्जा तो दे दिया। लेकिन उनके बताये मूल्यों को अपना ना सकें।
             इस देश को चलाने वाले लोगों ने गाँधी के आत्मशोधन, आत्मनिरीक्षण और आत्मपरीक्षण को अपनाया होता तो आज देश में भ्रष्टाचार का बोलबाला नहीं होता।  सत्ता पर लोगों का मनमानापन  नहीं चलता।  देश के हर व्यक्ति को उसका हक मिल पाता और समुदायों के बीच इतनी खाई ना होती। जब देश की जनता आपको सत्ता की बागडोर सौपती है तब आपकी यह जिम्मेदारी बन जाती है की आप देश की जनता के प्रति जिम्मेदार हों। आत्मशोधन इसमें आपकी मदद करता है। इसकी मदद से आकंक्षाओं, लालसा और स्वार्थ पर नजर रखते हैं। इसकी वजह से आप अनैतिक कार्यो से बचते हैं। और खुद में सुधार करके अपने व्यक्तित्व को उँचा उठाते हैं।
                आत्मशोधन के बाद व्यक्ति को आत्मपरीक्षण की मदद से अपने व्यक्तित्व को मापते रहना चाहिए। इससे  व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व की खामियों का पता लगातार चलता रहता हैं। जिससे उसे सुधार की दिशां में आगे बढ़ने में सहूलियत रहती है। आत्मपरीक्षण व्यक्ति के विश्वास को मजबूत बनाता है साथ ही असत्य और भय से मुक्त रखता हैं। आज के सत्ताधीशों के व्यक्तित्व में इन तीनों चीज़ों की घनघोर कमी दिखाई पड़ती हैं। शायद इन लोगों ने स्वार्थ, अहंकार और गैर जिम्मेंदारी का आवरण ओढ़ना ही बेहतर समझा है। ताकि दूसरों के हिस्सें को आसानी  से पचाया जा सके।
                 गाँधी ने कहा था की सत्य मेरे लिए सहज था। बाकी चीज़ें मैंने प्रयत्नपूर्वक प्राप्त किया। जैसे ब्रह्मचर्य, सत्य बालक मात्र के सहज होता है। एक बालक को बाकी चीजें असहज बना देती हैं। आज भारतीय प्रशासन में सत्यता  कि कोई जगह नहीं है। जनता को आज मुर्ख बनाया जा रहा है। चेहरे पर सत्य का आवरण ओढ़े लोगों की सच्चाई राडिया टेप से सामने आ रही है।
               सत्य को देखने में गाँधी को उनकी भाषा, संस्कृति और अस्तित्व ने काफी मदद की, लेकिन जब भाषा, संस्कृति और अस्तित्व ही बदल जाये तो आप क्या करेगें। फिर सत्य को कैसे देख पायेगें। आज यही हो रहा है। सत्ता में विराजमान लोगों को  इस देश के पिछड़ों, गरीबों और आदिवासियों से जुड़ी समस्याएं नहीं दिख पा रही हैं। क्यों की इन्होंने तो अपनी संस्कृति को ही भुला दिया हैं। इसलिए  किसी व्यक्ति के लिए भाषा, संस्कृति और अस्तित्व का महत्वपूर्ण होना उचित हों जाता है। किसी दूसरी भाषा और संस्कृति की अपेक्षा।
               गाँधी की नौका दो श्रध्दा में चली। पहला यह की हर किसी में सत्य और अच्छाई विद्यमान हैं। और दूसरा यह की विश्व, सदैव कल्याण की दिशा में आगे बढ़ता हैं। आज के आलोचक जो गाँधी के बारे में लिखते हैं।  उन चीज़ों का जिक्र गाँधी ने अपनी आत्मकथा में किया हैं। गाँधी हाथ जोड़कर बैठने वालों में से नहीं थें। उन्होंने ने चुनौतियों  को स्वीकार किया। अपने जीवन में गाँधी हर परिस्तिथि को चुनौती देने के लिए तैयार थें। सत्य को वो अतीत से देखते थे।
आज हम गाँधी के मूल्यों, सपनों और आदर्शों की बात किताबों तक ही छोड़ देते है।
               अगर हम उन्हें सच्ची श्रध्दांजलि देना चाहते है तो उनके बताये रास्तों पर चलना होगा। लोगों के प्रति ईमानदार होना होगा। ना की दूसरे के हितों को ताक पर रखकर अपने लिए हरम का निर्माण किया जाय।  
                                                              प्रवक्ता. काम पर प्रकाशित
                                                                  ९ फरवरी 2011 

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