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Where to find your Love?

प्यार क्या है? ये सवाल मुझे हमेशा परेशान करता रहा है। लेकिन ये समझ पाना आसान नहीं है। प्यार को हम कहां-कहां नहीं ढूंढ़ते हैं, लेकिन आपने सोचा है कि आपको प्यार अपना प्यार कहां और कैसे मिला. दरअसल प्यार का कोई दो रूप नहीं होता है। ये ना तो दैवीय होता है और ना ही मानवीय प्रवृतियों के हिसाब से एकतरफा, दार्शनिक और व्यक्तिगत... प्रेम में स्त्री और पुरुष का मिलन नहीं है, तो फिर उनका रिश्ता चाहे वो मानवीय या पारलौकिक ही क्यों न हो... लेकिन वो प्यार नहीं हो सकता. प्रेम व्यक्ति को पूर्ण बनाता है और आपका पार्टनर आपकी पूर्णता में शेष रही चीजों को भरता है. इसलिए उसका साथ और लाड़ जताना आपको अच्छा लगता है। उसकी हंसी ठिठोलिया, शरारतें और रिझाने की कलाओं पर आप फिदा होते हैं... उसके साथ आपका अपनापन बढ़ता जाता है। आप एक दूसरे को ढूंढ़ने लगते हैं और एक दूसरे के लिए जीने लगते हैं... लेकिन सबसे अहम सवाल है कि आपके हिस्से का प्यार कहां है... कैसे अपने प्यार का पता लगाया जाए और कैसे उसे ढूँढ़ा जाए तो उसका एक सीधा सा प्राकृतिक नियम है। आप का प्यार आपके आस पास ही है। वो लोग बहुत भोले और कमजोर होते हैं, जो सिनेमा के ...

तुम्हें खो देने का डर

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Image_Nandlal सोचता हूं कभी समुद्र में गहरे उतर जाऊं शांत शीतल जल में नीम अंधेरे दुनिया से छुप के तुम्हें प्यार करूँ तुम्हें निहारता रहूं तुम्हारी जुल्फों से खेलूं तुम्हारा आलिंगन करूँ और तुम्हारे माथे को चूम लूं फिर सहसा डर जाता हूँ गर समुद्र की तलहटी में उतरकर तैरना भूल गया तो क्या होगा? कहीं अपनी नाकामी से मैं तुम्हें खो ना दूं कहीं मेरी लाचारी तुम्हारी बाधा न बन जाये इस प्यार में गर लहरों की जाल में सांसें उलझ गयीं डरता हूँ समुद्र की गहराइयों में उतरने से डरता हूँ तुमसे प्यार का इजहार करने से

तुम्हें सपने में देखना

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Image_Nandlal मैं डरता हूँ तुम्हारे साथ चलते हुए डरता हूँ कि कहीं छू न जायेबदन मेरा और चौंक उठो तुम कहीं बुरा न लगे तुम्हें मेरी बातें तुमसे गुफ़्तगू में सिहरता हूं कुछ कहना चाहता हूं तुमसे लेकिन, तुम्हें खोने से डरती हैं साँसें यूं खामोशियाँ कुछ कहती हैं लेकिन बोलने से डरता हूँ कहने को बहुत है मगर कहीं बुरा न मान जाओ तुम तुम्हें खोने से डरता हूँ तुम सपने में आती हो हर रोज बेनागा, मैं आंखें खोलने से डरता हूँ हर रात कहानी लिखता हूँ लेकिन बताने से डरता हूँ चूम लेता हूँ पलकें तुम्हारी लेकिन होंठो की गुस्ताख़ी होंठो ने न मानी लिखता हूँ हर रात की कहानी

मेरी रूह

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Image_Nandlal मेरी रूह तुम्हारा आना जैसे उठती है बांसुरी की सुरीली तान जैसे बजता है मन्दिर का घंटा जैसे होती है मस्जिद में अज़ान मेरी रूह तुम्हारा साथ जैसे माथे पे लगा हो नजर का टीका जैसे हुस्ना की आंखों में हो काज़ल जैसे सावन की घटा में बरसे हो बादल तुम्हारी बातें जैसे बजने लगे हो सातों सुर जैसे फलक पे उतरा हो इंद्रधनुष जैसे कानों में घुला हो अमृत का रस तुम्हारा स्पर्श जैसे छूती हो तुम अपने झुमके जैसे लगाती हो आंखों में सुरमे जैसे लगा हो घाव पे मलहम मेरी रूह तुम्हारा होना, मेरी साँसों का चलना है धमनियों का दौड़ना है मौसम का खुशगंवार होना है जिंदा रहने की वजह होना है

तुम्हारे साये में तन्हा हूँ

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Image_Nandlal अपनी बातों में तन्हा हूँ अपनी सांसों में तन्हा हूँ अपनी कविताओं में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ चमकती धूप में तन्हा हूँ मचलती सांझ में तन्हा हूँ उड़ते बादल में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ घनी छांव में तन्हा हूँ अपनी हर्फ़ों में तन्हा हूँ चलती हवाओं में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ बुने गए हर ख्वाब में तन्हा हूँ भरी टोकरी के फूल में तन्हा हूँ गुलाबी गुलदस्तों में तन्हा हूं तुम्हारे साये में तन्हा हूँ महफ़िल की कहकशां में तन्हा हूं ढलकते जाम के बुलबुलों में तन्हा हूँ सावन की गिरती रिमझिम में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ तुम्हारे साये में तन्हा हूँ P. S. - उसके नाम, जिसकी तलाश मेरी रूह को है।

रख दो मेरे होठों पर अपने होंठ

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Image_Nandlal मुझे तलब लगी है तुम्हारे होठों की नमी चखने की पर इस पुरवाई में तुम अपने कमरे में कैद हो रात के तीसरे पहर मेरी आँखों में नींद के बजाय तुम्हारा चेहरा है मैं अपना दर्द कहूं तो कैसे मैंने तुम्हें इत्तला नहीं की है लेकिन तुम्हें आभास तो है एकतरफा बह रही पुरवाई से सूख रहा गला तुम्हें कैसे फोन करूँ तुम्हारी नींद में खलल कैसे डालूं तुम्हारी सांसें गिनना चाहूं अभी तुम्हारे हाथों की नमी में सोना चाहूं तुम्हें कैसे जगाऊँ नींद के एक्सटेंशन में मैं तन्हा जगा हूँ तुम्हारे फोन नम्बर का उच्चारण करते गले में पड़ रहा है सूखा जैसे मार्च में ही तप रहा जेठ का सूरज पड़पड़ा रहे होंठ, उधड़ रही चमड़ी सोचता हूँ दौड़ पड़ूं तुम्हारी सड़क की ओर और तुम भी चली आओ मॉर्निंग वॉक करते और रख दो मेरे होठों पर अपने होंठ ताकि तर जाये मेरा गला ठंडी पड़ जाए मेरी रूह शुकराने में मैं चूम लूं तुम्हारी पलकें और भर लूं तुम्हें अँकवार में जैसे एक दूसरे से चिपट जाती हैं बन्द आंख की पलकें

तुम्हारे उरोजों में मुंह दबाए सुबक रहा हूँ मैं

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हर सुबह  तुमसे आलिंगन होने का ज्वार मुझे विक्षिप्त कर देता है वासना के ज्वार में कांपता शरीर जंघाएँ दौड़ती हैं तुम पर वार करने को काठ हुआ शरीर चिपक जाता है बिस्तर से दीवार पर बैठी तुम हजार अंगड़ाईयाँ लेती हो फिर दीवार से उतरकर मेरे सामने खड़ी हो जाती हो निर्झर शाख की तरह ज्वार में विक्षिप्त मैं डूब जाता हूँ पसीने के दरिया में तुम्हारे उरोजों में मुंह दबाए सुबक रहा हूँ मैं तुम्हें पाने के बुखार में