रख दो मेरे होठों पर अपने होंठ

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मुझे तलब लगी है
तुम्हारे होठों की नमी चखने की
पर इस पुरवाई में
तुम अपने कमरे में कैद हो
रात के तीसरे पहर
मेरी आँखों में नींद के बजाय
तुम्हारा चेहरा है
मैं अपना दर्द कहूं तो कैसे
मैंने तुम्हें इत्तला नहीं की है
लेकिन तुम्हें आभास तो है
एकतरफा बह रही पुरवाई से सूख रहा गला
तुम्हें कैसे फोन करूँ
तुम्हारी नींद में खलल कैसे डालूं
तुम्हारी सांसें गिनना चाहूं अभी
तुम्हारे हाथों की नमी में
सोना चाहूं
तुम्हें कैसे जगाऊँ
नींद के एक्सटेंशन में
मैं तन्हा जगा हूँ
तुम्हारे फोन नम्बर का उच्चारण करते
गले में पड़ रहा है सूखा
जैसे मार्च में ही तप रहा जेठ का सूरज
पड़पड़ा रहे होंठ, उधड़ रही चमड़ी
सोचता हूँ दौड़ पड़ूं तुम्हारी सड़क की ओर
और तुम भी चली आओ मॉर्निंग वॉक करते
और रख दो मेरे होठों पर अपने होंठ
ताकि तर जाये मेरा गला
ठंडी पड़ जाए मेरी रूह
शुकराने में
मैं चूम लूं तुम्हारी पलकें
और भर लूं तुम्हें अँकवार में
जैसे एक दूसरे से चिपट जाती हैं
बन्द आंख की पलकें

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