मेरी रूह

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मेरी रूह
तुम्हारा आना
जैसे उठती है बांसुरी की सुरीली तान
जैसे बजता है मन्दिर का घंटा
जैसे होती है मस्जिद में अज़ान

मेरी रूह
तुम्हारा साथ
जैसे माथे पे लगा हो नजर का टीका
जैसे हुस्ना की आंखों में हो काज़ल
जैसे सावन की घटा में बरसे हो बादल

तुम्हारी बातें
जैसे बजने लगे हो सातों सुर
जैसे फलक पे उतरा हो इंद्रधनुष
जैसे कानों में घुला हो अमृत का रस

तुम्हारा स्पर्श
जैसे छूती हो तुम अपने झुमके
जैसे लगाती हो आंखों में सुरमे
जैसे लगा हो घाव पे मलहम

मेरी रूह
तुम्हारा होना,
मेरी साँसों का चलना है
धमनियों का दौड़ना है
मौसम का खुशगंवार होना है
जिंदा रहने की वजह होना है

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