Where to find your Love?

प्यार क्या है? ये सवाल मुझे हमेशा परेशान करता रहा है। लेकिन ये समझ पाना आसान नहीं है। प्यार को हम कहां-कहां नहीं ढूंढ़ते हैं, लेकिन आपने सोचा है कि आपको प्यार अपना प्यार कहां और कैसे मिला. दरअसल प्यार का कोई दो रूप नहीं होता है। ये ना तो दैवीय होता है और ना ही मानवीय प्रवृतियों के हिसाब से एकतरफा, दार्शनिक और व्यक्तिगत... प्रेम में स्त्री और पुरुष का मिलन नहीं है, तो फिर उनका रिश्ता चाहे वो मानवीय या पारलौकिक ही क्यों न हो... लेकिन वो प्यार नहीं हो सकता. प्रेम व्यक्ति को पूर्ण बनाता है और आपका पार्टनर आपकी पूर्णता में शेष रही चीजों को भरता है. इसलिए उसका साथ और लाड़ जताना आपको अच्छा लगता है। उसकी हंसी ठिठोलिया, शरारतें और रिझाने की कलाओं पर आप फिदा होते हैं... उसके साथ आपका अपनापन बढ़ता जाता है। आप एक दूसरे को ढूंढ़ने लगते हैं और एक दूसरे के लिए जीने लगते हैं... लेकिन सबसे अहम सवाल है कि आपके हिस्से का प्यार कहां है... कैसे अपने प्यार का पता लगाया जाए और कैसे उसे ढूँढ़ा जाए तो उसका एक सीधा सा प्राकृतिक नियम है। आप का प्यार आपके आस पास ही है। वो लोग बहुत भोले और कमजोर होते हैं, जो सिनेमा के पर्दे पर किसी नायिका को देख आहें भरने लगते हैं और जान देने लगते हैं। दरअसल, आप ये देखिए कि आप की लाइफ में कितने लोग हैं. आपके दोस्त, सगे सम्बन्धी और आपका व्यक्तिगत सर्किल... आपका साथी... इन्हीं में है, वो आपकी दोस्त हो सकती है, आपकी परिचित हो सकती है. हमें प्यार उसी व्यक्ति या साथी से होता है, जिसने आपका सम्पर्क होता है। बातचीत होती है। आप मिलते हैं। साथ उठते बैठते है। डेट पर जाने और डेट करने की थिसिस यही से निकली है। आप एक दूसरे का ख्याल करते हुए एक दूसरे के नहीं हो सकते बल्कि एक से बात करना होगा... अपना सुख दुख सोच विचार साझा करना होगा... आपकी आवृति जिससे भी मिली... वही आपका प्यार होगा.… वही हासिल होगा. किसी से भी बात व्यवहार में सयंमित रहे... सम्मान दें और दूसरों का ख्याल रखें। आप अपना व्यवहार अच्छा रखेंगे तो हर कोई आप से बात करना चाहेगा... आज के लिए बस इतना ही... अलविदा... अगली पोस्ट तक

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