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Dangal Movie; एक बेटी का अपने नेशनल चैंपियन पहलवान बाप को पटक देना

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आमिर खान की फिल्म दंगल फोगट बहनों के संघर्ष और सफलता की कहानी से ज्यादा महावीर फोगट के अंतर्द्वंद की कहानी है , जो एक पिता , कोच और खिलाड़ी के रूप में अपनी इच्छाओं , असफलताओं , कामयाबी और सपने को पूरा करने के लिए स्वयं से ही लड़ रहा है। इंटरवल के बाद का वो दृश्य मस्तिष्क में घूम रहा है , जब गीता एनएसए से लौटती है और अपने पिता के अखाड़े में अपनी बहन को दांव पेंच समझा रही होती है। उसे नहीं पता होता है कि फोगट उसे दूर से देख रहे हैं वो तपाक से आते हैं और कहते हैं कि मैं भी तो जरा तुम्हारे दांव देखूं..   यहां बाप और बेटी के बीच मल्लयुद्ध होता है। यहां एक कोच अपने ही प्लेयर को गलत साबित करना चाह रहा है , जिसे उसने बड़ी लगन से तराशा है , उसे इस बात का दुख है कि कुछ महीने दूसरे से दांव पेंच सीखने वाली शिष्या स्वयं को उसके सामने बेहतर कह रही है और उसके दांव को कमजोर बता रही है। यहां आमिर का कैरेक्टर एक कोच के रूप में अपनी श्रेष्ठता के लिए लड़ता है , लेकिन गीता से पटखनी खाने के बाद जमीन से कोच के साथ एक हारा हुआ बाप भी उठता है। उसके अहं को चोट पहुंचती है और अपनी बेटी के साथ उसकी बात...

निजी अनुभव: बोलते ही कहां है हम।

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तस्वीरः गूगल जिसे देखो वही लोन दे रहा है। बैंक वाले, इन्वेस्टमेंट वाले और फलां फलां। ना जाने कौन-कौन। कोई सैलरी पर दे रहा है। कोई प्रॉपर्टी पर दे रहा है। कोई बीमा पर दे रहा है। कोई कार लोन दे रहा है। कोई व्हीकल लोन दे रहा है। कोई बीमा बेच रहा है। सब बेचना ही चाह रहे हैं। दिन भर मोबाइल पर मैसेज और कॉल्स आती रहती हैं। सब बेच ही रहे हैं। लोन दे ही रहे हैं। एक मोहतरमा आज मिली तो पहले प्यार से बतियायीं और फिर बोली अगर किसी को लोन लेना हो तो बताइएगा। हम वेल्थ इनवेस्टमेंट से हैं। करोड़ों का लोन देते हैं। प्रॉपर्टी के अगेंस्ट, भारी मशीन्स के लिए। बड़ी कंपनियों के लिए। हम सुनते रहे। मन किया कह दे हमको भी लोन चाहिए। दे दीजिए। लेकिन हमारे पास प्रॉपर्टी नहीं है। जमीन नहीं। मशीन नहीं है। हम बड़ी पार्टी नहीं है। लेकिन मेरे पास एक दिल है। अच्छा भला बुरा सोचता है। कविताएं सुनाता है। दर्द पर मरहम लगाता है। अकेले में लोरी सुनाता है। कुछ बोलता नहीं, सिर्फ सुनता है और महसूसता है। कहिए क्या देंगी आप मेरे दिल के अगेंस्ट लोन। एक करोड़। लेकिन हम ना बोले। कसम से हम ना बोले.. क्योंकि जब लोन का बाजार खत्म...

निजी डायरी: सबसे मुश्किल होता है अपने पिता को समझा पाना।

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शराब पीकर सड़क पर गिरे पिता के घाव पोंछता बेटा। तस्वीरः गूगल सबसे मुश्किल होता है अपने पिता को समझा पाना। जब भी कुछ कहो, उनका एक ही जवाब है। सब समझा के थक गए अब तुम ही बचे हो। उन्हें नहीं पता क्या होता है, जब वो शराब पीकर सड़कों पर गिर जाते हैं। घायल हो जाते हैं और राह चलते लोग उन्हें पकड़कर घर लाते हैं। कौन समझाए उन्हें। पूरा मोहल्ला समझा के थक गया है। सबको एक ही जवाब कि सब समझा के थक गए अब तुम्हीं बाकी हो। कौन समझाए मेरे पिता को। 

कौड़ियों के भाव बिक रही प्याज: जो रो नहीं पाएंगे वो झूल जाएंगे फंदे से!

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Courtesy_Onion_Google images उत्तर भारत में इस समय प्याज की फसल खेतों से मंडी तक पहुंच रही है, लेकिन किसान को कीमत नहीं मिल रही। तीन से चार रुपये किलो का भाव जा रहा है। किसान को दाम नहीं मिल रहा है। वो हताश है, लेकिन सोचिए कि कौन हैं ये लोग जो टन के टन अभी प्याज खरीद रहे हैं ? ये कटु सत्य है कि जो खरीद रहे हैं उनकी चांदी है। बहुत सारे किसान ऐसे हैं जो प्याज को स्टोर करने की स्थिति में नहीं है। उनके पास पैसा नहीं है। फसल उगाने के लिए जो कर्ज लिया था उसे भरना है, ऐसे में उसे पैसा चाहिए, लेकिन प्याज की कीमत नहीं मिल पा रही है। मंडी में प्याज की कीमत तीन से चार रुपया प्रति किलो।  दूसरी ओर बिचौलिये भी सस्ते में प्याज खरीद कर स्टोर करेंगे और जैसे ही उत्तर भारत के राज्यों में बरसात शुरू होगी, प्याज की कीमत चढ़नी शुरू होगी। और इतनी रफ्तार से चढ़ेगी कि आम आदमी कहेगा... ‘ प्याज हमेशा से ही महंगी थी ’ । उसे पता नहीं चलेगा कि इसी प्याज को किसान मई के महीने में 3 रुपया किलो के हिसाब से बेचकर हताश है।  वो बिचौलिए जो प्याज को कौड़ियों के दाम खरीदे हैं। बरसात में 80 से 100...

TRAVELOGUE : सहजता और अपनेपन का शहर कोलकाता

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Courtesy_Kolkata_google images संतरागांछी रेलवे स्टेशन.. कोलकाता अब भी तीस मिनट दूर है। गीताजंलि एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म पर आकर खड़ी हुई और हम तीन उतर पड़े। गर्मी से बेहाल तीनों लोगों ने पानी पिया और बोतल भरा.. तब तक दूसरे प्लेटफॉर्म पर लोकल ट्रेन आ गई। लोकल ट्रेन की रफ्तार सामान्य से ज्यादा थी। बाकी के दोनों दोस्तों ने कहा कि ट्रेन यहां नहीं रूकेगी आगे प्लेटफॉर्म पर रूकेगी। चूंकि गीतांजलि एक्सप्रेस में हमारी बोगी पीछे थी, इसलिए हम मेन प्लेटफॉर्म से पीछे थे। लोकल ट्रेन तेजी से चली जा रही थी, मैंने कहा छोड़ेगे नहीं, इसी से चलेंगे और तीनों ने दौड़ लगा दी। लोकल ट्रेन के पीछे-पीछे दौड़ते रहे। ट्रेन महज कुछ सेकेंड रूकी और चल दी। हम लोगों ने करीब सात से आठ सौ मीटर की दौड़ लगाई और ट्रेन के रफ्तार पकड़ने से कुछ सेकेंड पहले घुस गए। मैं महिला बोगी में हांफते हुए घुसा और बाकी के दोस्त अगली बोगी में। बहरहाल, लोकल चल पड़ी और कुछ समय बाद हम हावड़ा के भीड़ भरे एक व्यस्त प्लेटफॉर्म पर थे। जोरों की भूख लगी थी हमें हालांकि जेब इजाजत नहीं दे रही थी रेलवे स्टेशन पर कुछ खरीद खाया जाए, लेकिन गर्म...

मां के नाम

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Courtesy_Google Images एक जवान लड़का सबसे ज्यादा अपनी मां को महसूसता है क्योंकि.. मां अब नहीं है उसकी दुनिया में अकेले है वो पूरी भागदौड़ में जब वह भागना सीख रहा था उसकी मां चली गई वह बिछड़ गया अपनी मां से दुनिया के झमेले में वह महसूसता है ढूंढ़ता है मां को अकेलेपन में दुनियादारी के बोझ से फारिग होकर मां के आंचल में छुप जाने को जी भरकर रो लेने को कि वो इतना तन्हा क्यूं है।।

Happy Mothers Day Babu..

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Courtesy_Google बाबू !! मुझे भी नहीं पता था कि आज मदर्स डे है। उन्हें भी नहीं पता होगा। वो फेसबुक पर नहीं है। हर रोज वो शाम को ही फोन करते हैं.. लेकिन आज उन्होंने सुबह ही फोन किया और पूछा तुम ठीक हो न.. तबीयत ठीक है ना। पेट में दर्द तो नहीं हो रहा। मैंने कहा, सब ठीक है। उनकी आवाज में एक नरमी थी, ख्याल और एहसास था। मैंने कल शाम उनसे झूठ बोला था.. पिछली शाम को मैं कोलकाता में था। सुबह चार बजे लौटा था और सोया था.. लेकिन हृदय तो जागा ही था..एक आवाज सुनाई दी.. कितनी चिंता करते हैं तुम्हारी ! घर से बाहर दूसरे शहर की इस सुबह आंखें भींग गई। शाम को फेसबुक नोटिफिकेशन्स से पता चला.. आज मदर्स डे है। पिछले 16 सालों से बाबू.. मां की भी भूमिका जी रहे हैं। हैप्पी मदर्स डे बाबू।।   Intestinal Tuberculosis Wali kahaniyan - 6