निजी अनुभव: बोलते ही कहां है हम।
तस्वीरः गूगल |
हम सुनते रहे। मन किया कह दे हमको भी लोन चाहिए। दे दीजिए। लेकिन हमारे पास प्रॉपर्टी नहीं है। जमीन नहीं। मशीन नहीं है। हम बड़ी पार्टी नहीं है। लेकिन मेरे पास एक दिल है। अच्छा भला बुरा सोचता है। कविताएं सुनाता है। दर्द पर मरहम लगाता है। अकेले में लोरी सुनाता है। कुछ बोलता नहीं, सिर्फ सुनता है और महसूसता है। कहिए क्या देंगी आप मेरे दिल के अगेंस्ट लोन। एक करोड़। लेकिन हम ना बोले। कसम से हम ना बोले.. क्योंकि जब लोन का बाजार खत्म हो जाएगा तो सिर्फ कविताएं बचेंगी। हम बस उन्हें देखते रहे। लोन..लोन.. लोन..लोन..लोन..लोन.. लोन..लोन.. लोन.. लोन..लोन..लोन..लोन..लोन..लोन.. सनते रहे।
बोलते ही कहा है हम.. कुछ देने वाली सुंदरियों को बस देखते रहते हैं। चाहे वह लोन ही क्यों ना बांटती फिर रही हो। बोल दिए होते तो क्या से क्या ना हो गया होता। बोलते ही कहां है हम।
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