मेरी रूह
Image_Nandlal मेरी रूह तुम्हारा आना जैसे उठती है बांसुरी की सुरीली तान जैसे बजता है मन्दिर का घंटा जैसे होती है मस्जिद में अज़ान मेरी रूह तुम्हारा साथ जैसे माथे पे लगा हो नजर का टीका जैसे हुस्ना की आंखों में हो काज़ल जैसे सावन की घटा में बरसे हो बादल तुम्हारी बातें जैसे बजने लगे हो सातों सुर जैसे फलक पे उतरा हो इंद्रधनुष जैसे कानों में घुला हो अमृत का रस तुम्हारा स्पर्श जैसे छूती हो तुम अपने झुमके जैसे लगाती हो आंखों में सुरमे जैसे लगा हो घाव पे मलहम मेरी रूह तुम्हारा होना, मेरी साँसों का चलना है धमनियों का दौड़ना है मौसम का खुशगंवार होना है जिंदा रहने की वजह होना है