Lokasabha Election 2019 : Purvanchal ka kya Scene hai - 1

Lord Cornwallis tomb_Nandlal Sharma

16 मार्च 2019,
3000 की आबादी वाला एक गांव, ज्यादातर किसानों का परिवार, सवर्ण बहुल गांव और उस कोढ़ में खाज की ज्यादातर बेरोजगार सवर्ण युवा ही हैं जो गांव में बचे हैं. वरना ज्यादातर गांव छोड़ रोजी रोटी के चक्कर में शहरों में निकल गए हैं। 2017 में यूपी में योगी सरकार आने के बाद गौ वंश बचाने की आवाज खूब उठी है। लेकिन, हुआ क्या। खेतिहर परिवारों के गौ वंश सड़कों पर आ गए। आवारा जानवर बन गए और उन्हीं खेतिहर परिवारों की खेतों में खड़ी फसलों  को नुकसान पहुंचाने लगे। सुनी-सुनाई तो ये है कि गांव में 47 आवारा जानवर हो गए थे। परती टोला की ओर से निकलते हुए एक दिन तो मैंने ही आधा दर्जन से अधिक सांड़ बांस की झाड़ में बैठे देखें। लेकिन, ये सब कुछ एक कहानी के खत्म होने के बाद की पटकथा है, कहानी तो ये है कि हिंदू वाहिनी और विश्व हिंदू परिषद के नए गुर्गे गाय बचाने के नाम पर खूब मौज कर रहे हैं। गाय और हिंदुत्व के नए कार सेवकों ने 40 से ज्यादा सांड़ों को हजारों रुपये से ज्यादा में बेच कर पैसा ऐंठ लिया। इन आवारा जानवरों की कौन फिक्र करता, लेकिन जो फिक्र करने की जिम्मेदारी लिए हुए थे उन्होंने माल बना लिया। ये नए हिंदुत्व की नैतिकता है। जिन ग्रामीणों को इसका पता चला वे कुछ न बोल पाए। आखिर जब सब चौकीदार हैं तो चौकीदार की चोरी को कौन रिपोर्ट करे। 

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जिले के रेलवे स्टेशनों पर काम तो हुआ है, लेकिन ये मनोज सिन्हा के जीतने की गारंटी नहीं हैं। हल्ला तो ये भी है कि बीजेपी मनोज सिन्हा का भी टिकट काट सकती है और उन्हें चुनाव लड़ने बिहार (उन्हीं की जाति बहुल इलाके में) भेजा जा सकता है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि बीजेपी को मनोज सिन्हा का विकल्प नहीं मिलेगा, लेकिन सपा-बसपा गठबंधन के आगे उनकी नहीं चलने वाली है। सपा-बसपा का गठबंधन आगे रहने वाला है। 

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खबर ये है कि मनोज सिन्हा ने अपना ग्राफ बढ़ाने के लिए नई तरकीबें निकालीं हैं। गाजीपुर शहर में उनके प्रतिनिधियों का खुला खेल चल रहा है। जब से मनोज सिन्हा संचार मंत्री बने हैं, अपनी तरकीबों को खूब आजमा रहे हैं। हल्ला ये है कि मनोज सिन्हा ने अपनी जाति के लड़कों को तमाम प्राइवेट कंपनियों में रखवाया है। टाटा से लेकर रिलायंस तक, लेकिन चौंकाने वाली खबर ये है कि सिन्हा जी 89 दिन के लिए दर्जनों लड़कों को एक-एक पोस्ट ऑफिस में आउटसाइडरी की नौकरी करवा रहे हैं। जब मैंने एक परिचित से पूछा कि 89 दिन बाद ये लड़के कहां जाएंगे तो वे बोले कि 89 दिन बाद इनका कोई माई-बाप नहीं है। ये बेरोजगार ही हैं। बहुत करेंगे तो कोर्ट चले जायेंगे, और इस उम्मीद में रहेंगे कि इन्हें नौकरी मिल ही जाएगी। इसी बहाने मनोज सिन्हा का समर्थन करेंगे और उन्हें दोबारा जितवाएँगे ताकि वो मंत्री बन जाएं और इनकी नौकरी बहाल हो जाये। सवाल ये है ऐसा कब से हो रहा है, उन्हीं ने बताया कि कम से कम मेरी जानकारी में सौ लड़के अभी जिले के पोस्ट ऑफिस में लगे हैं और जब से सिन्हा मंत्री बने हैं तब से ही ये चल रहा है। चुनाव जीतने और मंत्री बनने का ये फॉर्मूला कितना काम करेगा... इसका रिजल्ट भी 89 दिन से पहले ही आ जायेगा।

(4) पश्चिमी यूपी की कोख से निकली भीम आर्मी का ज्वार अभी पूर्वांचल तक नहीं पहुंचा है। ग्रामीणों इलाकों में तो लोगों को पता भी नहीं है। न झंडे न बैनर...। मेरठ में भले ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भीम आर्मी के चंद्रशेखर से भेंट कर कुशलक्षेम पूछा हो, लेकिन प्रियंका गांधी की हवा अभी पूर्वाचंल के अंदरूनी कोने में नहीं महसूस हो रही। इधर मुकाबला बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन में ही मुकाबला है। प्रचार के मामले में बीजेपी का माहौल टाइट है, जबकि सपा-बसपा गठबंधन का मामला अभी हल्का है। उम्मीदवारों की घोषणा अभी नहीं हुई है लेकिन ग़ाज़ीपुर से सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार अफ़ज़ाल अंसारी हो सकते हैं? देखना ये होगा कि बसपा सुप्रीमो क्या फैसला लेती हैं। नेशनल हाइवे 24 पर अंसारी बन्धुओं के समर्थन में पोस्टर दिख रहे हैं और समर्थन कर रहे लोग मनोज सिन्हा के जाति के हैं। यानि भूमिहारों का वोट बंटा दिख रहा है। 19 मई अभी दूर है। चुनाव का शोर कानफोड़ू नहीं हुआ है, टीवी के स्टूडियो की तरह...। 

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