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लावारिस सपने

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मैं जानता हूं उन सबकी तरह  जो तुमसे..  पहले मिले थे मुझे जो मुझे अपना कहते थे तुमने भी मेरा बढ़िया  उपयोग किया है और जब मैंने तुम्हें पहचाना  मेरी आंखों में  लावारिस पड़े थे  मेरे सपने

मैं तैरना चाहता हूं.

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courtesy: google  लड़कपन में जब मैं तैरना नहीं जानता था गंगा के कोल में सीखता था तमाम कोशिशों के बाद जब सब बेचैन हो जाते एक सुर में कहते तू ये जलभंवरा पी ले तैरना सीख जाएंगा जैसे ये भागता है पानी की सतह पर.. जवानी में मैं बह रहा हूं अनोखे बहाव में जो मुझसे शुरू होता है मेरे भीतर से उठता है खुशी का एक भाव चेहरे पर गंभीरता लिए मन में छा जाता है तुम्हारा नाम अंतः मस्तिष्क में टकराता है लेकिन मैं सिर्फ बहना नहीं चाहता तैरना चाहता हूं बावजूद इसके कि लड़कपन में सीख नहीं पाया तैरना.. गंगा के बहाव की तरह मैं तैरना चाहता हूं तुम्हारे आकर्षण में चहकते अंर्तमन में गूंजती तुम्हारी प्रतिध्वनियों के बीच स्थिर होकर लहरों पर दौड़ते भंवरे की तरह जिसके बहाव का वेग नियंत्रित और अनियंत्रित होता है बिना बताए तुम्हें... मैं तैरना चाहता हूं..

हेयरक्लिप

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तुम्हारे बालों में टंगा हेयरक्लिप होना चाहता हूं.                   (January 2013)

गाजीपुर

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...गाजीपुर के पुराने किले में अब एक स्कूल है, जहां गंगा की लहरों की आवाज तो आती, लेकिन इतिहास के गुनगुनाने या ठंडी सांसें लेने की आवाज नहीं आती। किले की दीवारों पर अब कोई पहरेदार नहीं घूमता, न ही उन तक कोई विद्यार्थी ही आता है, जो डूबते सूरज की रोशनी में चमचमाती हुई गंगा से कुछ कहे या सुने।  गंदले पानी की इस महान धारा को न जाने कितनी कहानियां याद होंगी। परंतु मांएं तो जिनों, परियों, भूतों और डाकुओं की कहानियों में मगन हैं और गंगा के किनारे न जाने कब से मेल्हते हुए इस शहर को इसका ख्याल भी नहीं आता कि गंगा के पाठशाले में बैठकर अपने पुरखों की कहानियां सुनें।  यह असंभव नहीं कि अगर अब भी इस किले की पुरानी दीवार पर कोई आ बैठे और अपनी आंखें बंद कर ले, तो उस पार के गांव और मैदान और खेत घने जंगलों में बदल जाएं और तपोवन में ऋषियों की कुटियां दिखाई देने लगें। और वह देखे कि अयोध्या के दो राजकुमार कंधे से कमानें लटकाये तपोवन के पवित्र सन्नाटे की रक्षा कर रहे हैं।  लेकिन इन दीवारों पर कोई बैठता ही नहीं। क्योंकि जब इन पर बैठने की उम्र आती है , तो गजभर की छातियों व...

19 बरस पहले भी एक भंवरी के साथ हुआ था गैंग रेप, आज भी लड़ रही है न्याय के लिए

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जयपुर. भंवरी देवी के कारण आज पूरी राजस्थान सरकार मुसीबत में है तो बरसों पहले एक और भंवरी देवी के कारण राजस्थान सरकार की पूरी दुनिया में बदनामी हो चुकी है। यह भंवरी देवी आज भी न्याय के लिए लड़ रही हैं। 19 साल पहले खुद पर हुए जुल्म के लिए भले ही भंवरी देवी को न्याय नहीं मिला हो, लेकिन वह लोगों को न्याय दिलाने के लिए लगातार लड़ रही हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर से 52 किलोमीटर दूर भटेरी गांव की भंवरी देवी के साथ 22 सितंबर 1992 को गांव के ही गुर्जरों ने सामूहिक बलात्कार किया। लेकिन आज तक उसे अंतिम इंसाफ नहीं मिल पाया। जबकि पांच आरोपियों में से तीन की मौत हो चुकी है। भंवरी कहती हैं, ‘भले ही कितने साल बीत गए हों, लेकिन मैं अंतिम सांस तक लड़ती रहूंगी। मैं नहीं चाहती हूं कि अब और कोई महिला मेरी तरह न्याय के इंतजार में भटके। मैं तो बस इतना चाहती हूं इस तरह की दुर्घटना से आहत स्त्री को तुरंत न्याय मिले। सरकार कानून तो बहुत बनाती हे लेकिन उसका पालन भी करे। यदि पालन नहीं कर सकती, तो उसे कानून बनाना बंद कर देना चाहिए।’ भंवरी का बड़ा बेटा कई साल पहले अपनी पत्नी के साथ गांव छोड़कर चला गया, क्योंक...

तुम्हारी दो आंखे..

हमें यूं छोड़कर तुम्हारा दूसरे शहर चले जाना जैसे हवामहल के झरोंखो पर किसी ने पर्दा डाल दिया हो मैं लाल बत्ती के उस पार बुत बना..ठिठका हूं ढूंढ़ते हुए तुम्हारी दो आंखे.. 16.12.2012

कमरे की बत्तियां

मेरी उदासियों का साया तुम पर ना हो. लो, मैंने कमरे की बत्तियां बुझा दी.. तुम्हारी अपनी महफिलों में.. गैरों की आवाजाही है..  मेरे आने से.. जलवों की रोशनाई कम हुई..  ये बताओ.. उदास रातों के लिए  तुमने कीमत क्या चुकाई.. 16.12.2012