संदेश

शब्दों का स्वेटर

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सैंकड़ों मीटर में फैले रेलवे स्टेशन पर photo courtesy_google धूल भरी हवाओं के बाद बारिश का सिलसिला प्लेटफॉर्म पर टिमटिमाती बत्तियों की रोशनी में बादलों ने चौपाल लगाई और, धीमी रोशनी के उजियारे में रात ने स्याह चोला पहना हल्की फुहारों की हवाओं संग बहने की जिद नंगे फर्श पर सोए लोगों के पास मैली और फटी चादरें थीं चुभती हुई उदास रात में शब्दों का स्वेटर बुनना गरमाहट भरा था.. हिसार, 19 मई, 2012

मैं चलता रहा..

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ये कुछ ऐसा था जैसे, खेत की पगडंडियों पर चलना गहरे, उथले और गड्ढ़ों से भरे मेड़ पर चलना पावों में ओस की शीतलता का अहसास होना लेकिन, नाजुक दूबों की शरारत भरी चुभन ना थी हल्की फुहारों के बाद सपाट कठोर पत्थरों की तरावट में मैं चलता रहा.. दूर जुते हुए खेतों में कुछ बच्चे मिट्टी के ढेलों पर बैठे थे उनके हाथों में बांस की छिटकुन थी वे निशाना साध रहे थे चट्टान नुमा बड़े ढेलों पर कुछ भैंसे बबूल की छाल खा रही थी मैं चलता रहा... वह  पीपल का पेड़ जो बचपन में बहुत डराता था मुर्दों को पानी पिलाता था अपने गले में बंधे घंट से जिससे सूत के सहारे पानी की बूंदे टपकती टप टप टप... सर मुड़ाए पांच लोग घूम रहे थे पीपल के चारों ओर गोल गोल गोल..कुछ बुदबुदाते हुए मैं चलता रहा... वह, गांव की ड्योढ़ी पर लौटते बाढ़ का कोलाहल था क्वार की धूप में मछलियां देखकर, बच्चों का ताली बजाना महीनों भीगे हुए खेत का धूप सेंकना हर पहर के बाद गीली आंखों से दादू का लौटते बाढ़ को नापना जैसे, भीगे हुए खेत में घुटनों तक धंसते पांव को संभालकर चलना मैं चलता रहा...

सोशल एक्टिविस्ट नहीं, एंटरटेनर हूं..

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Photo Courtesy_Google मैं सोशल एक्टिविस्ट नहीं , एंटरटेनर हूं। मेरा काम लोगों का मनोरंजन करना , उन्हें हंसाना है। उनके जज्बातों तक पहुंचना है। अपने पहले एपिसोड में मैं लोगों के दिल तक पहुंचा और कन्या भ्रूण हत्या एक ब़ड़े मुद्दे के रूप में सामने आया।    फिल्म अभिनेता आमिर खान, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात के बाद जीं हां, टेलीविजन के वास्तविक रियलिटी शो सत्यमेव जयते (हां, मैं इसे एक रियलिटी शो ही मानता हूं, क्योंकि आमिर यहां खुलेआम रियलिटी बेच रहे हैं) से एक खास वर्ग के चहेते बने आमिर खान ने यहीं कहा, जब कन्या भ्रूण हत्या रोकने के सिलसिले में राजस्थान के मुख्यमंत्री से मिले ।  मेरा अंदाजा है आमिर का यह उपरोक्त बयान सुनकर कई लोगों के मुगालते दूर हो गए होंगे। जो आमिर को महानायक मान रहे थे और उम्मीद कर रहे थे अब तो देश का भला हो ही जाएगा। उनका पसंदीदा अभिनेता सामाजिक कुरीतियों से लड़ने मैदान में आ गया है। देश और समाज से कन्या भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियां मिट जाएगी। गर्भ में पल रहे भ्रूण की लिंग जांच पर विराम लग जाएगा। और ऐसा करने वालों को कड़ा से कड

पत्रकारिता की बड़ी हस्तियों का परिवारवाद

देश के कुछ प्रमुख टीवी एन्कर्स के नाम दिए गए हैं. इनमें कुछ जरूरी नाम छोड़ दिए गए हैं। यह   सूची जो मेरे हाथ लगी है इसमें इन प्रमुख पत्रकारों के निजी रिश्तों की पड़ताल की गई है. इससे यह प्रमाणित होता है कि किस तरह लोग इन टीवी एन्कर्स के रिश्तेदार होकर मीडिया में सुर्खियाँ बटोरते हैं। इसके साथ ही यह भी कि किस तरह ये एंकर्स सत्ता के इतने नजदीक पुहंच सके।   - सुज़ाना अरुंधती रॉय , प्रणव रॉय ( एनडीटीवी ) की भांजी हैं।( NDTV) - प्रणव रॉय “ काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशन्स ” के इंटरनेशनल सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं। -इसी बोर्ड के एक अन्य सदस्य हैं मुकेश अम्बानी। - प्रणव रॉय की पत्नी हैं राधिका रॉय। - राधिका रॉय , बृन्दा करात की बहन हैं। - बृन्दा करात , प्रकाश करात ( CPI) की पत्नी हैं। - प्रकाश करात चेन्नै के “ डिबेटिंग क्लब ” ग्रुप के सदस्य थे। - एन राम , पी चिदम्बरम और मैथिली शिवरामन भी इस ग्रुप के सदस्य थे। - इस ग्रुप ने एक पत्रिका शुरु की थी “ रैडिकल रीव्यू ” । -CPI(M) के एक वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी की पत्नी हैं सीमा चिश्ती। - सीमा चिश्ती इंडियन एक्सप्रेस की “ रेजिडेण्ट एडीटर ” ह

तुम्हें गढ़ना

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photo coutesy_google पता नहीं क्यों ? मैं पूरी रात जागता रहा तुम्हारी यादों की बांह थामें टहलता रहा ख्वाब सजाता रहा और तारे गिनता रहा.. वो रात का जवान होना, खिली धूपनुमा चांदनी से फरिय़ाद करना याद आता रहा.. मोहब्बत सा दिल में कुछ उठता रहा पूरी रात मैं तस्वीरें बनाता रहा.

साइकिल का पंक्चर

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photo Courtesy_googl e दिन के बारह बज रहे होंगे। जेठ का महीना था, शहर और देहात को जोड़ने के लिए गंगा के ऊपर बने तीन किलोमीटर लंबे पुल पर हवा कुछ ज्यादा ही तेज ही थी। बैरियर के नीचे साइकिल पंक्चर होने के बाद बाबू पैदल ही पुल पार करने के मूड में था। हालांकि अब उसे साइकिल को ठेलना पड़ रहा था। दरअसल उसकी साइकिल का पिछला पहिया पंक्चर हो गया था और उसके पास इतने पैसे नहीं थे वह उसे ठीक करा सके। हां ये सच हैं।  यकीन मानिए, उसका बाप उसे मात्र एक रुपया देता था। जब वह अपने कॉलेज के लिए जाता था। वह भी महीने में कभी कभार, जून 2008 में एक रुपए में क्या मिलता होगा ? आपको बता दूं उस जमाने में साइकिल का पंक्चर भी पांच रुपए में बनता था। लेकिन उसके लिए ये अमूमन रोज की ही बात थी। कभी अगला टायर पंक्चर हो जाता तो, कभी पिछला, कभी चेन खराब हो जाती तो कभी ब्रेक काम नहीं करते, यहां तक की उस साइकिल की सीट भी टूटी हुई थी। जिस पर ठीक से बैठा जा सके। लेकिन मुफलिसी से घिरे होने के बावजूद वह घबराता नहीं था। हां कभी-कभी वह चिढ़ने लगता था। उस दिन भी उसके मन में यहीं सवाल उठ रहे थे। कैसी है उसकी ये जिंदगी

दस रुपए की चूड़ी

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पूरा मुहल्ला जग उठा है कराहें सुनकर आह..आह ये बहन, अधेड़ मां और मुहल्ले की नई दुल्हन की आह है जो आज फिर मार खाई है अपने हत्यारे पति से वो रोज गांजा, शराब पीकर गला दबाता और केरोसिन छिड़कता है उसका गुनाह सिर्फ इतना भर था उसने दस रुपए की चूड़ी खरीद ली थी बिना बताए अपने हाथों के नंगेपन को दूर करने के लिए मासूम सी बच्ची दहाड़े मार रही थी जब वो उसे लहुलुहान कर रहा था हर रोज मारता और गला दबाता है पर ना जाने क्यों वह प्रतिकार नहीं करती क्यों सहती है ये जुल्म क्यों नहीं फोड़ती है उसका सर क्या इतना भी हक नहीं है उसका एक पत्नी है वो एक मां है कई सालों से झेल रही है वो ये जुल्म क्या उसके हिस्से में सिर्फ मार है क्यों अपने हक को चोरी समझ लेती है वो क्यूं हर बार चुप रह जाती है वो