शब्दों का स्वेटर
सैंकड़ों मीटर में फैले रेलवे स्टेशन पर
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धूल भरी हवाओं के बाद
बारिश का सिलसिला
प्लेटफॉर्म पर टिमटिमाती बत्तियों की रोशनी में
बादलों ने चौपाल लगाई
और, धीमी रोशनी के उजियारे में
रात ने स्याह चोला पहना
हल्की फुहारों की हवाओं संग बहने की जिद
नंगे फर्श पर सोए लोगों के पास
मैली और फटी चादरें थीं
चुभती हुई उदास रात में
शब्दों का स्वेटर बुनना
गरमाहट भरा था..
हिसार, 19 मई, 2012
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