साइकिल का पंक्चर
photo Courtesy_googl e दिन के बारह बज रहे होंगे। जेठ का महीना था, शहर और देहात को जोड़ने के लिए गंगा के ऊपर बने तीन किलोमीटर लंबे पुल पर हवा कुछ ज्यादा ही तेज ही थी। बैरियर के नीचे साइकिल पंक्चर होने के बाद बाबू पैदल ही पुल पार करने के मूड में था। हालांकि अब उसे साइकिल को ठेलना पड़ रहा था। दरअसल उसकी साइकिल का पिछला पहिया पंक्चर हो गया था और उसके पास इतने पैसे नहीं थे वह उसे ठीक करा सके। हां ये सच हैं। यकीन मानिए, उसका बाप उसे मात्र एक रुपया देता था। जब वह अपने कॉलेज के लिए जाता था। वह भी महीने में कभी कभार, जून 2008 में एक रुपए में क्या मिलता होगा ? आपको बता दूं उस जमाने में साइकिल का पंक्चर भी पांच रुपए में बनता था। लेकिन उसके लिए ये अमूमन रोज की ही बात थी। कभी अगला टायर पंक्चर हो जाता तो, कभी पिछला, कभी चेन खराब हो जाती तो कभी ब्रेक काम नहीं करते, यहां तक की उस साइकिल की सीट भी टूटी हुई थी। जिस पर ठीक से बैठा जा सके। लेकिन मुफलिसी से घिरे होने के बावजूद वह घबराता नहीं था। हां कभी-कभी वह चिढ़ने लगता था। उस दिन भी उसके मन में यहीं सवाल उठ रहे थे। कैसी है उसकी ये जिंद...