अपनी कवितायेँ मिटा दूँ
तुम्हारी ख़ुशी के लिए मैं अपनी कवितायें मिटा दूँ ताकि कोई जान न सके हमारे दरम्यान क्या था ये तुम्हारा आदेश है लेकिन तुम ये जान लो कि मैं तुम्हारा आदेश मानने को बाध्य नहीं हूँ ये कवितायेँ मेरी भावनाएं है क्या मैं उन्हें मिटा दूँ ये कवितायें उस समय पल्लवित हुई जब मैं तन्हा था ये कवितायें आधार है मेरे सुकून का इन्हें न लिखूं तो बेचैनी मेरी जान ले ले तुम कहती हो, मैं सरसों के फूल पर लिखूं तुम भूल जाती हो कि तुम्हारे बिना सरसों के फूल उजाड़ बियाबां की तरह है तुम हो तो फूल.. फूल हैं मौसम ... हैं हृदय में गति है मस्तिष्क में विचार है विचारों में प्रेम है प्रेम है तो मैं हूँ मैं हूँ तो कवितायें हैं इन्हें मिटाने के लिए तुम मुझे मिटा दो मेरा आग्रह है तुमसे 01.02.2016