Intestinal Tuberculosis Wali Kahaniya - 2

डेड पड़े फोन में अचानक हरकत होती है और तुम्हारा नाम फ्लैश होता है। यूं कई बरसों बाद तुम्हारा फोन करना वैसे ही है जैसे मेरी कब्र पर फूलों के साथ फातिहा पढ़ने आई हो। फोन की रिंग टोन से मेरी आत्मा जागती है और निर्जीव प्रतीत होती कविताओं में जान आ जाती है। मैं अपनी कब्र में उठकर बैठ जाता हूं... तुम्हारी आंखों के आंसू पोंछने के लिए.. 

Intestinal Tuberculosis Wali Kahaniya - 2

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"एक हथौड़े वाला घर में और हुआ "

FIRE IN BABYLON

बुक रिव्यू: मुर्गीखाने में रुदन को ढांपने खातिर गीत गाती कठपुतलियां