Intestinal Tuberculosis Wali Kahaniya - 1

दिन भर ऑफिस में खटने के बाद कॉर्तिकेय और मैं घर की ओर चल पड़े। हालांकि मेरी तबीयत खुश नहीं थी और मुझे इस बात का अंदाजा हो गया था कि आज फिर अस्पताल न जाना पड़े। कई सारी चिंताएं मेरी दिमाग में घूम रही थी। नौकरी वापस ज्वॉइन किए हुए कुछ ही दिन हुए थे और सैलरी अभी मिली नहीं थी। जैसे तैसे खर्चा चल रहा था। इस बात को लेकर मन अंदर ही अंदर डरा हुआ था। आधे रास्ते तक पहुंचे पेट में दर्द होना शुरू हो गया। मैंने कार्तिकेय से कहा कि मेरे पेट में दर्द हो रहा है। उसने दवाइयों के बारे में पूछा, मैंने बताया कि दवाइयां तो मैं टाइम से खा रहा हूं और आज भी समय पर ले लिया था, लेकिन दर्द हो रहा है। कार्तिकेय ने मुझे कमरे पर छोड़ा और अपने कमरे चला गया। हालांकि जाते हुए उसने इत्तला किया कि अगर कोई परेशानी हो, तो मैं उसे कॉल कर लूं।

कॉर्तिकेय के जाने पर मैं भागा-भागा कमरे पर पहुंचा और जाते ही पसर गया। काम वाली बाई और खाना बना गई थी और जुठे बर्तन बेसिन पड़े हुए थे। मैंने जूते खोले और कराहते हुए हाथ मुंह धोएं। आइने के सामने जब खुद से नजरें मिलाई तो आंखों में लगभग आंसू आ गए थे। पेट की टीबी ने तोड़ के रख दिया था। लगातार दवाएं खाने के बावजूद दर्द जाने का नाम नहीं लेता और महीने में चार बार अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते। कमजोर आर्थिक पृष्टभूमि के लोग आर्थिक रूप से टूटने के साथ बहुत जल्दी ढेर होते हैं और इसके लिए मुझे किसी उदाहरण की जरूरत नहीं थी। किचन में जाकर मैंने कुछ खाने के लिए तलाशा, लेकिन कुछ नहीं मिला। फ्रिज के ऊपर अंडा रखा हुआ था। मैंने सोचा फ्राई बना लेता हूं। दो अंडे का फ्राई बनाया। गर्म फ्राई को ब्रेड के साथ खा गया। हालांकि इस बीच पेट का दर्द थोड़ा कम हुआ। मुझे लगा कि शायद पेट ना भरने के चलते हुआ हो। दर्द कम हुआ तो मैंने टीवी चलाया और लेट गया। दल मिनट बाद पेट का दर्द बढ़ने लगा। टीवी देखने का मन नहीं हो रहा था। मैं उठकर अपने कमरे में आया और लेट गया। दर्द की दवाएं खाई और लेट गया कि दवा का असर होते ही शायद आराम मिले। आधे घंटे से ज्यादा हो गए और दर्द लगातार बढ़ता रहा।

दर्द से बेचैन होकर मैंने अपने रूम पार्टनर सौरभ का फोन मिलाया और उसे अपनी हालत बताई। उसने कहा कि यार, कमरे पर तो कोई है नहीं। बाकी लोग भी ऑफिस गए हुए हैं। मैं किसको भेजूं। तुम ऐसा करो, पांच मिनट इंतजार करो। मैं कुछ जुगाड़ करता हूं। इधर, दर्द बेइंतहा बढ़ने लगा था. मन उल्टी का हो रहा था। इस बीच मैंने कार्तिकेय को फोन मिलाया, रिंग जा रही था, लेतिन उसने फोन उठाया नहीं.. मैंने खीझ के मारे एक बार- दोबार- कई बार कॉल किए। ताकि वो फोन उठाए.. लेकिन फोन पर कोई आवाज नहीं आई। इस बीच मैं बाथरूम में गया और उल्टी की। एक बार उल्टी शुरू होती... तो फिर रूकने का नाम नहीं लेती। पेट में एक बूंद पानी भी नहीं बचता। सब निकल जाता। उल्टी के बाद जैसे तैसे मैंने हाथ मुंह धोएं और वापस बिस्तर पर गिर गया। इस बीच सौरभ का फोन आया कि राजीव घर पर नहीं है। हिमाचल गए हैं। उन्होंने भाभी को फोन करके बोला है वो और वंश दो मिनट में आ रहे हैं। मैंने फोन रखा था कि कार्तिकेय का भी फोन आया। उसने माफी मांगी और बोला कि मैं सो गया था, मैं उसे अपनी हालत बताई और जल्दी आने को कहा। कार्तिकेय मेरे कमरे से दो तीन किलोमीटर दूर रहते थे। बाइक से वो दम मिनट पहुंचा, तब तक वंश और भाभी आ गए थे। उन्होंने मेरी कंडीशन देखी, तो बोले हॉस्पिटल चलते हैं। मैंने कहा कि कॉर्तिकेय आ रहा है और हम हॉस्पिटल जा रहे हैं आप कमरे पर रहिएगा हम आए तो चले जाइएगा।

कार्तिकेय के साथ हम पटपड़गंज वाले अस्पताल पहुंचे और वहां डॉक्टर ने बेड पर लेटने के लिए कहा। नर्स आई और ब्लड प्रेशर और बाकी चीजें नोट करने के बाद सारी डिटेल ली। डॉक्टर को लेकर आई। डॉक्टर को सारी जानकारी दी कि 6 महीने हो गए हैं टीबी की दवाएं खाते हुए.. लेकिन दर्द रूक नहीं रहा है। दर्द के साथ उल्टी भी हो रही है। डॉक्टर ने काउंटर प्रिस्क्रिप्शन लिख कर दिया और दवाएं लेकर आने को कहा। कॉर्तिकेय जब पर्ची लेकर आएं तो उन्होंने भर्ती करने को कह रहे हैं। मैंने उन्हें हालात का जायजा बताया तो कार्तिकेय ने कहा कि कोई नहीं। मैं पैसे दे दूंगा। कॉर्तिकेय ने अपने पैसे से फीस भरी और दवाएं और बाकी जरूरी मेडिकल सामान ले आएं। इस बीच दर्द के मारे मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी। काउंटर पर जब 5 हजार जमा हो गए नर्स इंजेक्शन और बाकी सारी चीजें लेकर आई। जल्दी से उसने दो इंजेक्शन भरे और दाहिने चूतड़ में ठोंक दिए। नर्स ने कहा कि दस मिनट में आराम हो जाएगा.. लेकिन आराम नहीं हुआ। मैंने कॉर्तिकेय से कहता, नर्स से कहता कि आराम नहीं है। कॉर्तिकेय ने जोर देकर आराम नहीं हो रहा है। क्या कर रहे हैं आप लोग। नर्स ने फिर इंजेक्शन लगाया और ड्रिप चढ़ा दी। मैंने दस मिनट इंतजार किया और अब धीरे-धीरे दर्द कम हो रहा था। एक घंटे बाद मुझे एक सेमी एसी कमरे में शिफ्ट कर दिया गया । जहां आंटी होने की दहलीज पर खड़ी और 35-40 के बीच की औरत अपनी 10 बरस की बिटिया को लेकर दो दिन से वहीं जमीं हुई थी।

इतना सब करने में रात के 9 बज चुके थे। अस्पताल का स्टॉफ का कंबर और बाकी सारी चीजें दे गया। एक नर्स मैडम आई और उन्होंने बल्ड प्रेशर और खून के नमूने लिए। मैंने उनसे कहा कि रात में दर्द हो तब, उन्होंने कहा कि एक स्टॉफ यहीं रहेगा। कोई दिक्कत नहीं होगी। इस बीच वो औरत जिन्हें हम आंटी बुला रहे थे, लगातार हमारी ओर देख रही थी। शायद पूरे हालात की जानकारी लेनी चाह रही थी। मैं उनकी नजरों को पढ़ रहा था। थोड़ा आराम मिलने के बाद कार्तिकेय ने फोन पर मिस कॉल देखने और बाकी घटनाक्रम के बारे में बात करना शुरू किया। मैंने उसे अपनी स्थिति बताई और अगर आपने न आते तो क्या होता। इस बीच मैंने कॉर्तिकेय से कहा कि वह फोन करके सौरभ को बोल दे कि भाभी कमरे पर ताला लगा कर चली जाए। कॉर्तिकेय ने ऐसा ही किया। उधर, सौरभ ने अनुराग और डेविड को भी फोन कर दिया। इधर आंटी से बात होनी शुरू हुई उन्होंने अपना दुखड़ा गाया और हमने अपना। वो काफी पैसे वाली घर की थी। उनका अस्पताल के पास में ही होटल था। उनकी बिटिया जो कोई फरमाइश करती होटल से तुरंत अस्पताल चला आता।

आंटी को जब हमारे और कॉर्तिकेय के बारे में पता चल गया तो उन्होंने अपना स्नेह पर बरसाया और कुछ खाने के लिए पूछा लेकिन हमने मना कर दिया। अब दस से ज्यादा टाइम हो गया था। मैंने कॉर्तिकेय से घर जाने को कहा, क्योंकि उसे खाना भी बनाना था और सुबह के टाइम ऑफिस भी जाना। मैंने उन्हें जाने को कहा, तो कॉर्तिकेय ने कहा कि अनुराग और डेविड को आ जाने दीजिए फिर मैं चला जाऊंगा। अनुराग और डेविड को मेरे अस्पताल में भर्ती होने जानकारी हो गई थी और जल्दी ही अस्पताल पहुंच गए। उनके अस्पताल पहुंचते ही मैंने कॉर्तिकेय को छुट्टी दी और शुक्रिया कहा। उसने मुस्कुरा कर कहा, जल्दी ठीक हो जाइए। बाकी शुक्रिया तो चलता रहेगा। कॉर्तिकेय ने कहा कि मैं ऑफिस में भी जानकारी दे दूंगा और परेशान मत होइए आराम से इलाज कराइए। अब तक सवा ग्यारह बज गए थे। अनुराग और डेविड आए और फिर सारा हाल जाना। कैसे क्या हुआ और कौन लेकर आया। फिर हम बैठे रहे। बातें करते रहें। अनुराग और डेविड से आंटी की भी पहचान हुई। दो तीन घंटे के करीब हम लोग बात करते रहे। दोनों लोग मुझसे कमरे पर चलने को कह रहे थे। वो मेरी हालत जान गए थे। ऐसा कई दफा हो चुका था। उन्होंने कहा कि पैसे बर्बाद करने से कोई फायदा नहीं है। कमरे पर चलिए अगर फिर कोई दिक्कत हुई तो टांग के ले आएंगे नहीं तो रात के बारह बजे के बाद पूरा चार्ज लगेगा। मेरे पास भी पैसे नहीं थे। कॉर्तिकेय ने पूरा पैसा दिया था। मैंने कहा कि अस्पताल के स्टॉफ से बात करो। दोनों लोग बात करने काउंटर पर गए।


आंटी जो अब लगभग सोने की मुद्रा में आ चुकी थी और लेटी हुई थी। उठी और अपनी बिटिया के पास उट के गई उसे चादर ओढ़ाया और कपड़े सम्हालते हुए मेरे पास आई और मेरे हाथों में सौ रुपये का नोट जबरदस्ती पकड़ा गई। मेरे लाख मना करने के बावजूद वह नहीं मानी। मेरे हाथों में ड्रिप लगी थी और मैं ज्यादा कुछ नहीं कर सकता था। उन्होंने मेरे माथा सहलाया और मातृत्व भरी आंखों से कहा अपना ख्याल रखना। बरसों बाद किसी ने मेरे माथे को सहलाते हुए कहा था कि अपना ख्याल रखना। मेरी आंखों में आंसू में आ गए। मेरे बदन में सनसनी दौड़ गई थी। आंटी से आराम से आगे बढ़ी और अस्पताल में लगे अपने उस बिस्तर पर लेट गई। मेरे मन में हजारों ख्याल उमड़ रहे थे। इस पहले कि अनुराग और डेविड आए मैंने सौ रुपये का नोट छिपा लिया। दोनों बंधुओं ने पूरा हिसाब किताब ओके करा लिया। एक लंबी चौड़ी नर्स आई और उसने ड्रिप की नीडिल निकाल कर पट्टी बांध दिया। अनुराग ने अपने अंदाज में कहा, चलिए भाई साहब.. चलते हैं। और हम तीनों लोग एक मोटर साइकिल पर सवार होकर मयूर विहार फेज-1 की ओर चल पड़े.. लेकिन ना जाने क्या मैं अस्पताल में उस आंटी के पास छोड़ आया था। अगले कई दिनों तक उनके स्नेहिल मातृत्व का हैंगओवर मुझ पर हावी रहा.. और अब भी जब मैं उनके बारे में सोचता हूं। उनके स्नेह की लहरें मुझे बहा ले जाती है.. अपने दरिया में। हां, मैं उनका नाम पूछना भूल गया था और मोबाइल नंबर भी।

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