Ramdom Notes
आप मुझसे कुछ भी करवा
लीजिए। मुझे बैठने से खासा दिक्कत है। मैं लगातार सोचता रहता हूं। और कुछ ना कुछ
करता रहता हूं। हालांकि इससे कुछ लोगों को चिढ़ भी होती है। जब मैं पहली नौकरी कर
रहा था सीएनबी न्यूज में तो ऑफिस तीन बजे का था। मैं दस पन्द्रह मिनट पहले पहुंच जाता
था। और जाते ही सीनियर लोगों को नमस्ते बोलता था, वो लोग
सुबह वाली शिफ्ट में थे। और वाइंड अप कर रहे होते तो काम बताने लगते। और मैं शुरू
हो जाता। मेरे साथी कहते (जो लोग हमारे साथ कैंपस प्लेसमेंट में गए थे) कि चलो चाय
पीने तो मैं नहीं जाता, कहता कि यार काम बहुत है। वे लोग
नाराज होते और कहते कि ये नहीं जाएगा चलो हम लोग चाय पीने चलते हैं। कहने का मतलब
है कि मैं जो करने गया हूं और जो करने जा रहा हूं उसमें देरी बर्दाश्त नहीं है।
ऐसा नहीं है कि मुझे काम के दौरान पीना और खाना बर्दाश्त नहीं है। लेकिन काम मेरी
प्राथमिकता है। हम रिजल्ट की तरफ बढ़ रहे हैं। काम खत्म होने वाला है। तब मैं
रिलैक्स हो जाता हूं और चाय पीता हूं, खाना खाता हूं।
दोस्तों से मिल आता हूं और सब कुछ करता हूं।
मैं वो आदमी हूं जो प्रचार
के झांसे में नहीं आता। मैं मंडे को फिल्म को देखता हूं। मैं तय करता हूं कि मुझे
कौन सी फिल्म देखनी है। अगर फिल्म में दम है तो फिल्म देखने के लिए समय निकाला
जाना चाहिए। मैं फिल्म खुद को समृद्ध करने के लिए देखता हूं। कुछ नया सीखने के
लिए। किरदारों के जरिए मैं सीखता हूं कि किस परिस्थिति और स्थिति में कितना संयमित
रहना है। कितना अडिग रहना है। सामने वाले में कितनी गहराई है और वो कितना डूब सकता
है। ये फिल्म देखकर आप समझ सकते हैं, जब थिएटर से बाहर
निकलते हैं और चलते फिरते किरदारों से मिलते हैं। क्योंकि हम सब एक किरदार हैं।
अपनी-अपनी भूमिकाएं जी रहे हैं।
मुझे सीरियस मनोरंजन पसंद
हैं। मुझे हल्का सब्जेक्ट पसंद नहीं है।
मैं मुश्किल परिस्थितियों
में परेशान दिखता हूं। हताश नजर आता हूं। दिल करता है सबकुछ छोड़कर समस्या से बाहर
आ जाऊं। लेकिन नहीं, मैं मन ही मन समस्या का तोड़ ढूंढ़ रहा होता हूं।
15.04.2016
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