प्रेम में बाधक

मैं ऑफिस जा रहा हूँ।
मेट्रो की सीढ़ियां चढ़ रहा हूँ।
पैरों के दाब से जगता हूँ
तो एहसास होता है कि मैं तुमसे हजार किलोमीटर दूर हूँ।
लेकिन ये जानने से पहले
मैं तुम्हारे साये में था
तुम्हारे पहलू में था
तुमसे बातें कर रहा था।
तुम सामने बैठी थीं
हमारी नजरें उलझी थी
मैं तुम्हारी लटें सुलझा रहा था
फिर मेट्रो की सीढियां आ गई
रोजाना चढ़ना और उतरना
भावनाओं की डोर से बंधें
दो हृदय में कम्पन पैदा करतीं है
आलिंगन बद्ध दो जोड़ी बाहें अलग हो जाती हैं
तुम्हें बताऊँ
ये सीढ़ियों से मेरा रोज का चढ़ना और उतरना
हमारे प्रेम में बाधक है।

27.11.2015


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