स्वच्छ भारत अभियान: दो अक्टूबर के बाद कौन झाड़ू लगाएगा?
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हम भारतीयों को कचरा
छुपाने की बड़ी गंदी आदत है. घर, गांव और शहर के किसी कोने में
कचरा छुपा देते हैं. या फिर अगर कचरा द्रव अवस्था में हुआ तो गंगा, यमुना, गोमती या फिर किसी अमानीशाह नाले में बहा
देते हैं. जैसे कचरे के निपटान की कोई और व्यवस्था ना हो. मजे की बात तो ये है कि
देश में ही कचरे के निपटान की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है, जैसे
सड़क और खुले में हगने वाले हजारों लोगों के पास शौचालय की व्यवस्था नहीं है.
द्रव अवस्था वाला कचरा नदी
और नाले के पानी में मिल जाता है और वो फिर हमें कचरा नहीं दिखता, लोग उसे गंदा पानी कहने लगते हैं. जैसे दिल्ली के आने के बाद मैंने यमुना
को देखकर कहा था, आह, यमुना जी कितनी
गंदी हो गई है! और तभी मेरे चचा जान ने तपाक से जवाब दिया, अबे,
ये यमुना जी नहीं, नाला है.. नाला. मैं अवाक
रह गया?
इस देश में सफाई को लेकर
सब चिंतित है. लेकिन सवाल ये है कि झाड़ू लगाने के बाद कचरे का निपटान कैसे होगा.
क्या कचरा निपटान के नाम पर दिल्ली के लोग यूपी की सीमा पर कचरे का पहाड़ बनाएंगे
या यमुना में बहाते रहेंगे.
जरा राजधानी के बाहर
निकलिए. हरिद्वार से होते हुए कानपुर, इलाहाबाद और
बनारस तक गंगा में कितने नाले गिरते होंगे. नालों के जरिए लोग गंगा में अपना मल
मिलाते फिर रहे हैं. नतीजा, आचमन और वुजू वाला गंगा का पानी
जहर हो गया.
बापू के जन्मदिन से
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छ भारत अभियान शुरू करने जा रहे हैं. झाड़ू थामे
मंत्री जी लोगों की तस्वीरें टेलीविजन के स्क्रीन पर रेंग रही है और स्वच्छ भारत
अभियान को लेकर जो गंभीरता मंत्रियों के चेहरे पर दिख रही है वो और कहीं और नहीं
दिख रही.
उमा भारती और राजनाथ सिंह
की गोमती को साफ करने की तस्वीरों को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे दोनों लग्घी से
पानी पिलाने की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. मोदी सरकार के दूसरे मंत्री दिल्ली
की सड़कों पर झाड़ू मार रहे हैं. लेकिन मंत्रियों ने सफाई के बाद कचरे का निपटान
कहां किया या फिर दिल्ली शहर के किसी कोने में उसे छुपा दिया.
दिल्ली-यूपी बॉर्डर के पास
कचरे का पहाड़ बना हुआ है. उधर से गुजरने वालों के नथुने सांस रुकने से फूल जाते
हैं क्योंकि उस एरिया में कोई सांस भी नहीं लेना चाहता है. सवाल तो यही है कि
सबकुछ चमकदार बनाने के नाम पर दिल्ली से सटी यूपी की सीमा पर कचरा फेंककर इति श्री
कर लेना है, तो फिर तो हो चुका भारत स्वच्छ.
इस देश में कचरे के निपटान
की समस्या का हल नहीं ढूढ़ा जा सका है. लुटियंस से लेकर गरीबी रेखा के नीचे वाले
द्रव कचरा यमुना में बहाते रहे और सूखा कचरा यूपी की सीमा पर फेंकते रहे. सवाल
सिर्फ दिल्ली का नहीं है, उन नालों का है जो शनैः शनैः नदियों को लील रहे हैं.
कचरे के निपटारे के नाम पर
लोग नदियों में कचरा बहा रहे हैं. गंगा किनारे बसे शहर और कारखानों का कचरा कहां
गिरता है. गंगा में ही ना. सैकड़ों छोटे बड़े नाले और सीवर के पानी ने गंगा की
हालत क्या बना दी. लेकिन इन नालों के कचरे को निपटाने के लिए प्रधानमंत्री ने कोई
फैसला नहीं लिया. क्या गंगा को साफ करने के लिए ये नाले बंद होंगे. प्रधानमंत्री
कोई कठोर फैसला लेंगे. अगर कारखानों और फैक्ट्रियों के कचरे का निपटारा नहीं हुआ
और गंगा मैली होती रही, तो हो गया आपका भारत स्वच्छ. ये तो ठीक वैसे ही हुआ
जैसे कमरे में झाड़ू लगाके कचरा गली में फेंक दो.
वाराणसी प्रधानमंत्री का
संसदीय क्षेत्र है और तमाम लोग स्वच्छ भारत अभियान के तहत सफाई पर निकलेंगे. अगर
नहीं भी निकले तो पूर्व की तरह कचरे का निपटारा गंगा में ही होगा ना. जाहिर है ऐसा
कोई फैसला नहीं हुआ है कि 2 अक्टूबर के बाद गंगा किनारे बसे शहरों के नाले बंद करा
दिए जाएंगे. क्या कानपुर, हरिद्वार में कारखानों का औद्योगिक कचरा गंगा में
नहीं गिरेगा, अगर ये सब होता रहा, तो
गंगा की हालत क्या होगी. फिर सफाई करने का क्या मतलब रह जाएगा कि अपना कचरा ले
जाकर गंगा में फेंक दें. अगर सफाई के नाम कचरा ही इकट्टठा करना है तो भारत को
स्वच्छ बनाने का क्या लाभ.
बनारस से शिवगंगा जब चलती
है, तो दिल्ली पहुंचने में 800 किलोमीटर का सफर करती है.
सफर में सुबह शाम दिखने वाले नजारे बताते है कि देश में शौचालय की समस्या कितनी
बड़ी है. हर रोज करोड़ों लोग सड़क किनारे और खुले में शौच करने को मजबूर हैं.
प्रधानमंत्री ने शौचालय बनवाने की घोषणा की है लेकिन प्रक्रिया कितना आगे बढ़ी है.
इसकी स्थिति स्पष्ट नहीं है. लेकिन अगर करोड़ों लोग खुले में और सड़क किनारे शौच
करेंगे, तो वे सफाई रखने के लिए अनुशासन कहां से लाएंगे.
बेहतर होता कि
प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान से पहले जन धन योजना के जरिए पैसा देकर यह सुनिश्चित
करते कि हर घर में शौचालय का निर्माण हो, कम से कम उतने
घरों में, तो हो ही जितने बैंक अकाउंट खुले हैं. आजकल शौचालय
के निर्माण में महज तीन चार दिन लगते हैं बमुश्किल से दस दिन. इससे स्वच्छ भारत
अभियान में गति और गंभीरता आती.
दिल्ली सहित देश के हर
राज्य में सफाई कर्मचारियों की हालत बहुत बुरी है. बेहतर होता सफाई कर्मचारियों की
नियुक्तियां होती, मुझे नहीं लगता कि दो अक्टूबर को झाड़ू लगाने के बाद
प्रधानमंत्री हर रोज सफाई के लिए सड़क पर उतरेंगे. क्योंकि जो उत्साह मंत्रियों और
उनके समर्थकों के चेहरे पर दिख रहा है वो बता रहा है कि वे तो दो अक्टूबर के दिन
झाड़ू लगाने वाले है, क्योंकि उस दिन भारत के प्रधानमंत्री
झाड़ू लगाने वाले हैं. बताइए दो अक्टूबर के बाद झाड़ू कौन लगाएगा.
सही में बताऊं तो मुझे कुछ
कंक्रीट नजर नहीं आ रहा है. प्रधानमंत्री जी बताइए 2 अक्टूबर को जो कचरा इकट्ठा
होगा उसका निपटान कैसे होगा. आप कह रहे हैं कि बदलाव आ गया है कचरे के निपटान में
बदलाव दिखना चाहिए ठीक उसी तरह जैसे उद्योगपतियों के चिकने चेहरे पर दिख रहा है.
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