प्रेम धधकता बहुत है.. दिलों में

उपलों की तरह उदासियां 
थाप दी गई है कल्पनाओं के कैनवास पर 
और तब से ओढ़ ली है मैंने खामोशी 
तुम्हारे ना होने से उपजे दर्द को ढंकने के लिए 
लेकिन एक दिन मैं उगल दूंगा
भाव शून्य होने से पहले 
सारा दर्द.. सारी खामोशी 
उस मटके में 
जिसे तुमने रखा था
गुलाब रोपकर 
मकान के मुंडेर पर 
ये कहते हुए कि ये हमारे प्रेम का प्रतीक है.
अब मुरझाने लगा है 
वो.. लाल गुलाब 
उसकी सांसों की आवृति डूबने लगी है
लेकिन प्रेम डूबेगा नहीं
मैं रोप दूंगा उसे 
भूमि की कोख में 
गर्माहट से भरी एक सुबह 
मेरा प्रेम आंखें खोलेगा
और तब दुनिया जानेगी
दो अनजान प्रेमियों के बारे में 
जो अछूत थे, दुनिया के लिए 
जिनका प्रेम असहय था 
पाक-साफ, धोई-पोछी
संस्कृति के लिए 
लोग पूछेंगे.. उनका गुनाह क्या था? 
प्रेम समा नहीं पाता 
दुनियानवी खांचों में 
मैंने देखा है..
उपलों की आग की तरह 
संस्कृति के अहरा पर 
प्रेम धधकता बहुत है.. 
दिलों में..

21-02-2014

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