समाजवाद का मुलायम ठुमका

​​कुछ ही समय पहले चारा घोटाले में जेल की सजा काटने के बाद लालू अपने घर पहुंचे तो उनके सम्मान में किस तरह के नृत्य संगीत का आयोजन हुआ। क्षेत्रीय जुबान में कहें तो यह "नाच" का प्रोग्राम था। लालू यादव के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम उतना भव्य नहीं था, जितना यूपी में सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के सैफई में आयोजित "नाच का कार्यक्रम" लेकिन दोनों कार्यक्रम नाच के ही थे। दरअसल, यूपी और बिहार में नाच का कार्यक्रम सामंती दबंगई का प्रतीक है। 

बचपन के दिनों में जब गांव में किसी की बारात आती थीं, तो सबसे पहले हर पुरूष (चाहे युवा, अधेड़ हो या बुजुर्ग) यहीं पूछता था कि बाराती क्या लेकर आए हैं ? नाच, वीडियो या कुछ और.. अगर बाराती वीडियो लेकर आए तो गांव के लौंडे सबसे ज्यादा खुश होते। वजह ये होती कि उन्हें फिल्में देखने को मिलता। वहीं, अगर बाराती नाच लेकर आए होते तो अधेड़ और बुजुर्ग उम्र के मर्दों की खुशी का ठिकाना ना होता। बाराती पक्ष (वर पक्ष) की तारीफ में कसीदे पढ़े जाते।

दरअसल, नाच का मतलब यहां कोठेवालियों से है। जिन्हें एक निश्चित संख्या में तय कीमत पर बुलाया जाता और शादी की रात वो नाच गाने से बारातियों का मनोरंजन करती। शादी के दिन रातभर कार्यक्रम चलता, अगले दिन लड़के वालों ने अगर कह दिया कि जलुआ होगा या खिचड़ी खाएंगे तो बारात अगले दिन भी लड़की वाले के यहां ठहरती और नाच का कार्यक्रम चलता। गांव भर के मर्द और बाराती खुले मैदान में लगे टेंट के नीचे बैठकर नाच देखते और पैसे उड़ाते। इनमें गरीब से लेकर अमीर तक शामिल होते। बीपीएल परिवार के मर्दों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उनके घर में खाने के लिए है या नहीं।

अब आप सोच रहे होंगे कि मैं ये क्यों लिख रहा हूं? दरअसल, गरीबी और मुफलिसी से बदहाल यूपी के लोगों ने अब अपना टेस्ट बदल लिया, वो नाच के बदले बारात के साथ आर्केस्ट्रा मंगाने लगे। लेकिन लखनऊ की गद्दी पर बैठे सत्ताधारियों का नाच प्रेम नहीं छूटा, बल्कि वह भव्य हो गया।

सैफई महोत्सव दरअसल नाच का वही कार्यक्रम है जहां मुलायम कुनबा अपने सामंती शौक को जीता है। भले ही इसी कुनबे के लाडले और सूबे के सीएम को अपनी रियाया का ख्याल ना हो। मुजफ्फरनगर की घोर शीत लहरी में भले ही मासूम सिसक रहे हो लेकिन मुख्यमंत्री को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें इतना याद रहता है कि मीडिया अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभा रहा। लेकिन उन्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं।

मुगालते में जी रहे मुख्यमंत्री के पिता मुलायम भले ही सच से मुंह मोह लें, पीडितों को षडयंत्रकारी बता दें लेकिन गरीब के आंगन की मिट्टी ठंड के मारे सूख के चट्टान हो गई है। मुलायम और उनके कुनबे के हाथ से फिसला कथित समाजवाद का घड़ा गरीब के आंगन में बिखरा ही मिलेगा। फिर ना तो मुख्यमंत्री बटोर पाएंगे ना ही उनके अब्बा। 

22-01-2013

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