रॉक डाल्टन की कविता_बेहतर प्यार के लिए
रॉक डाल्टन (1935-1975) अल साल्वाडोर के क्रांतिकारी कवि रॉक डाल्टन ने अपनी छोटी सी जिंदगी कला और क्रांति के सिद्धांत को आत्मसात करने और उसे ज़मीन पर उतारने मे बिताई. उनका पूरा जीवन जलावतनी, गिरफ्तारी, यातना, छापामार लड़ाई और इन सब के साथ-साथ लेखन में बीता. उनकी त्रासद मौत अल साल्वाडोर के ही एक प्रतिद्वंद्वी छापामार समूह के हाथों हुई.
उनकी पंक्ति- “कविता, रोटी की तरह सबके लिए है” लातिन अमरीका मे काफ़ी लोकप्रिय है. यह कविता मन्थली रिव्यू, दिसंबर 1985 में प्रकाशित हुई थी.)
हर कोई मानता है कि लिंग
एक श्रेणी विभाजन है प्रेमियों की दुनिया में-
इसी से फूटती हैं शाखाएँ कोमलता और क्रूरता की.
एक श्रेणी विभाजन है प्रेमियों की दुनिया में-
इसी से फूटती हैं शाखाएँ कोमलता और क्रूरता की.
हर कोई मानता है कि लिंग
एक आर्थिक श्रेणी विभाजन है-
उदाहरण के लिए आप वेश्यावृत्ति को ही लें,
या फैशन को,
या अख़बार के परिशिष्ट को
जो पुरुष के लिए अलग है, औरत के लिए अलग.
एक आर्थिक श्रेणी विभाजन है-
उदाहरण के लिए आप वेश्यावृत्ति को ही लें,
या फैशन को,
या अख़बार के परिशिष्ट को
जो पुरुष के लिए अलग है, औरत के लिए अलग.
मुसीबत तो तब शुरू होती है
जब कोई औरत कहती है
कि लिंग एक राजानीती श्रेणी विभाजन है.
जब कोई औरत कहती है
कि लिंग एक राजानीती श्रेणी विभाजन है.
क्योंकि ज्यों ही कोई औरत कहती है
की लिंग एक राजनीतिक श्रेणी विभाजन है
तो वह जैसी है, वैसी औरत होने पर लगा सकती है विराम
और अपने आप की खातिर एक औरत होने की कर सकती है शुरुआत,
औरत को एक ऐसी औरत मे ढालने की
जिसका आधार उसके भीतर की मानवता हो
उसका लिंग नहीं.
की लिंग एक राजनीतिक श्रेणी विभाजन है
तो वह जैसी है, वैसी औरत होने पर लगा सकती है विराम
और अपने आप की खातिर एक औरत होने की कर सकती है शुरुआत,
औरत को एक ऐसी औरत मे ढालने की
जिसका आधार उसके भीतर की मानवता हो
उसका लिंग नहीं.
वह जान सकती है कि नीबू की महक वाला जादुई इत्र
और उसकी त्वचा को कामनीयता से सहलाने वाला साबुन
वही कंपनी बनाती है, जहाँ बनता है नापाम बम,
कि घर के सभी ज़रूरी काम
परिवार के एक ही सामाजिक समुदाय की ज़िम्मेदारी हैं,
की लिंग की भिन्नता
प्रणय के अंतरंग क्षणों मे तभी परवान चढ़ती है
जब परदा उठ जाता है उन सारे रहस्यों से
जो मजबूर करते हैं मुखौटा पहनने पर और पैदा करते हैं आपसी मनमुटाव.
और उसकी त्वचा को कामनीयता से सहलाने वाला साबुन
वही कंपनी बनाती है, जहाँ बनता है नापाम बम,
कि घर के सभी ज़रूरी काम
परिवार के एक ही सामाजिक समुदाय की ज़िम्मेदारी हैं,
की लिंग की भिन्नता
प्रणय के अंतरंग क्षणों मे तभी परवान चढ़ती है
जब परदा उठ जाता है उन सारे रहस्यों से
जो मजबूर करते हैं मुखौटा पहनने पर और पैदा करते हैं आपसी मनमुटाव.
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [12.08.2013]
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सादर
सरिता भाटिया