मैं अपना आरम्भ कितना पीछे छोड़ आया हूं।

Courtesy_Google
मृत्यु तब तक कोई समस्या नहीं है.. जब तक आपने जीना शुरू नहीं किया है। लेकिन मैं तो अभी ठिठका हूं..ठीक, चलने से पहले..। मैं अकेले जीना नहीं चाहता और मरना भी..इसलिए इंतजार कर रहा हूं उसके आने का..ताकि हम अंगुलियों के पेंच लड़ा सकें..

यूं भी ठिठकना आप की स्मृतियों को ताजा कर देता है। दो पतंगें हवा में पेंचे लड़ा रहीं थी, खिलखिला रही थी और एक दूसरे की नोंकझोंक में मगन थीं..नीचे ढेर सारे लोग चिल्लाते हुए अपने हाथ हवा में लहरा रहे थे..

कौन जानता था उनकी ये खुशी स्वार्थवश थी। हवा का तेज झोंका एक पतंग को खींचता हुई दूसरी से अलग कर गया। जिसे छतों पर खड़े लोगों ने लूट लिया..

स्मृतियां आपके पांवों में उलझ जाती है..लेकिन नए बीजों को पनपने के लिए भूमि की गर्माहट बहुत जरुरी होती है। जीने की नई शुरूआत से पहले सोचता हूं..मैं अपना आरम्भ कितना पीछे छोड़ आया हूं।

(कहीं कुछ टूटा हुआ सा है..शीशे सा।)

24.06.2013


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"एक हथौड़े वाला घर में और हुआ "

Vande Bharat Express : A Journey to Varanasi

कौड़ियों के भाव बिक रही प्याज: जो रो नहीं पाएंगे वो झूल जाएंगे फंदे से!