एक पत्र तुम्हारे नाम...
ये सिर्फ तुम जानती
हो, या तुम्हारी धड़कनें कि मेरी चाहते क्या हैं ? मैं किस तरह जीना चाहता हूं
और मेरी जरुरतें क्या हैं। चाहे वे भावनात्मक हो या भौतिक, शारीरिक हो या मानसिक।
ये सब तुम्हें पता हैं। मुझे याद है कि इन सबके के बारे में मैने तुम्हें कभी नहीं
बताया। लेकिन तुम्हें ये सब पता हैं। उन दैनिक चीजों के अलावा कि मैं कब कुछ खाना
चाहता हूं और कब तुमसे दुलार के बहाने प्यार पाना चाहता हूं। तुम्हारे साथ हंसी
ठिठोली के रास्ते..
लेकिन ये सब तुम्हे
कैसे मालूम हैं और तुम्हीं क्यों जानती हो, मेरी निजी भावनाओं का इतना ध्यान कैसे रख
पाती हो। जबकि हम लोगों के संबंध सिर्फ एक दायरे तक हैं। जो सार्वजनिक तौर पर बेहद
तंग हैं और हमारे बीच एक बड़ी दूरी हमेशा बनी रहती हैं। सिर्फ साल में एक दो सार्वजनिक
मुलाकातों को छोड़कर, लेकिन जब भी तुमसे मिलता हूं ऐसा लगता है। जैसे तुम्हें सब
पता हो। जब मैं तुमसे दूर था, उस वक्त की खुशी और गम भी। ऐसा महसूस होता है तुमसे
बढ़कर मेरा चाहने वाला कोई नहीं। तुमसे मिलके जब वापस आता हूं तो सोचता हूं कि और
भी तो लोग है मेरे दायरे में। लेकिन मेरे मन के भावों को सिर्फ तुम कैसे पढ़ पाती
हो, बिल्कुल सटीक, मैं उलझ जाता हूं तुम्हारी इस खूबसूरत जादूगरी में। क्या पिछले
जन्म में हमारी धड़कनें एक दूसरे की हमसफर थी..
तुम्हें पता है, जब
से मैंने होश संभाला है खुद को तन्हा पाया हैं। तमाम लोगों और रिश्तों के बावजूद।
लेकिन जब तुमसे मिलता हूं। ऐसा लगता है जैसे मैंने खुद को तुम्हारे हवाले कर दिया
हो। कुछ घंटों की मुलाकात के दौरान तुम्हारा साया मेरे साथ-साथ चलता महसूस होता
हैं। और इस घड़ी के बीतते ही, डूबते सूरज की तरह तुम्हारा साया अंधेरे में गुम हो
जाता हैं। और मैं फिर तन्हा रह जाता हूं।
हां, एक चीज तुम्हें
बताना चाहूंगा, तुम जब भी मेरा नाम लेती होगी, इसकी आहट मुझे मिल जाती हैं।
धड़कनों के सहारे, मन की बेचैनी बढ़ जाती हैं और अंतर्मन में सिर्फ तुम्हारा नाम
गूंजता रहता हैं। जो तुम्हारी जुबां पर मेरा नाम होने की हामी भरता हैं।
एक दूसरे के मन की
पल-पल की आहटों को पढ़ लेने वाले हम दोनों के ह्रदय की डोर, शायद एक ही हैं। अब तक
मैं जितने से लोगों से मिला हूं। उनमें तुमने मुझे सबसे बेहतर समझा हैं। इसलिए जब
मैं तुम्हारे पास आता हूं ठहर जाता हूं। मुझे लगता है कि मेरी फिक्र करने वाला कोई
हैं। और तुम मेरी इसी कमजोरी को पकड़ मुझे चौंकाती रहती हो। उन मुलाकातों के दौरान
तुम्हारे हर स्पर्श से उठनी वाली गर्माहट को संजोता हूं। ताकि सर्दियों की उन
कड़कड़ाती तन्हाई में प्यार भरा गर्माहट महसूस कर सकूं।
जहां तक मैं मानता
हूं। तुम्हारे साथ मेरा रिश्ता अंतर्मन के भावों से जुड़ा हैं। धड़कनों की रफ्तार
से बंधा हैं। इसलिए जब तुम्हारा ख्याल आता हैं, अंतर्मन के तार झंकृत होने लगते
हैं। तुम्हारे होने की आहट मिलते ही मैं गुम हो जाता हूं अपनी मुलाकातों की छोटी बगिया
में.. मन के भीतर, यादों की क्यारी में खुशियों के छोटे-छोटे फूल उगाने को...
सप्रेम
भावनात्मक प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंpallavi ji shukriya
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