मां, मुझे आंचल ओढ़ा देती
मैं कितनी भी लंबी चादर खरीद लूं
ये मां का आंचल नहीं हो सकती.
इसके जड़ीदार कोने और रंग
मां की साड़ी पर बिखरी
पत्तियों की छींट और उसके रंग जैसे नहीं है.
मां अपने आंचल से ढंक देती थी
सूरज को, जब मैं सोना चाहता था.
धूप, मुझे जगा नहीं पाती थी
जब मैं मां के आंचल तले छुप जाता था.
मां का स्पर्श बहुत गर्माहट भरा था.
जब वह मुझे चिपका लेती
अपने सीने से,
माघ की ठंड में
जब मैं नहाने से मना करता.
मैं अक्सर मां से लिपट कर सोता
दोनों हाथों से उसे दबोच लेता.
जब मैं भयावह सपने देखता
मां, मुझे आंचल ओढ़ा देती.
मैं गर्माहट भरी नींद में डूब जाता
मां, मेरी पीठ थपथपा देती.
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