Short Story: क्यों हर बार राखी बंधवाकर रोने लगता हैं?
अभी कुछ ही दिन पहले पता चला था कि दीदी को उनको पतिदेव ने गांजे के नशे
में खूब मारा हैं और उनकी तबीयत खराब हैं। यह सुनकर मेरा तो खून खौल उठा।
चूंकि घर से दूर था इसलिए फोन कर मां और पिता जी पर बरस पड़ा। मैं
आ रहा हूं जीजा जी से निपटने। लेकिन मां ने फोन पर ही कहा, मैं तेरे पैर पड़ती
हूं तू कुछ मत कहना उन्हें..तुझे मेरी कसम जो, तूने उसके ससुराल फोन किया।
उसकी जिंदगी खराब हो जाएगी, घर उजड़ जाएगा। हो सकता है वह और भी मारने
लगे उसे कि तूने अपने मां बाप को क्यों खबर की।
हफ्ते भर भी नहीं बीता कि सावन चढ़ा और धान रोपने की तैयारी करते-करते राखी आ गई। हालांकि मां के मना करने के बाद मैंने दीदी को फोन नहीं किया। लेकिन अंदर ही अंदर से उस घटना को लेकर जलता रहा। आखिर जिस मां ने पैदा किया उसने कभी अपनी बेटी को छुआ भी नहीं तो फिर ये जी..जाजी कौन होते हैं। स्सालाल..नशेड़ी..जब खेतों की ओर जाता तो ऐसे ही बकते हुए रास्ता तय करता। मां भी पूछ बैठती क्या बात है आजकल बहुत गुस्से में रहता हैं?
सावन का आखिरी दिन पहले से ही लोग हल्ला कर रहे हैं...कल रक्षाबंधन है..राखी है..राखी..ये शब्द सुनकर मेरा मन आत्मग्लानि से भर उठता हैं। मैं जानता हूं..तमाम परेशानियों के बावजूद दीदी आएंगी..खुशी खुशी..कई तरह की मिठाइयां लेकर.. अपने छोटे भाई के लिए..मां बड़े प्यार से कहेंगी..आज खेलने मत जाना..जल्दी से नहा लो और राखी बंधवा लेना और हर बार की तरह मुंह मत बनाना...
दोपहर से पहले 11 बजे तक दीदी आ गई..मेरी आरती उतारी..तिलक लगाया और मेरी कलाई पर रेशम का धागा बांध दिया और बोली.. ये लो..और पूरा सफेद रसगुल्ला मुझे खिला दिया..और नहीं नहीं करते मैं उनके हाथों को पकड़कर उनके मुंह की तरह बढ़ाने लगा। मेरी नजर उनके हाथों पर पड़े गहरे जख्म के निशान पर ठहर गई। मां बोली..राखी बंधवाई है तो बहन की रक्षा भी करना..मैं मां की तरफ देखता हूं..बहन के जख्मों को देखता हूं..सिहरन सी उठती है और मैं आत्मग्लानि से भर जाता हूं...मेरी आंखों से आंसू टपक पड़ते है..दीदी मुझे गोद में उठा लेती हैं और पश्चाताप में सिसकने लगता हूं। मां और दीदी की नजरें एक दूसरे पर ठहर जाती हैं..सवाल बनकर...?? क्यों हर बार राखी बंधवाकर रोने लगता हैं ?
हफ्ते भर भी नहीं बीता कि सावन चढ़ा और धान रोपने की तैयारी करते-करते राखी आ गई। हालांकि मां के मना करने के बाद मैंने दीदी को फोन नहीं किया। लेकिन अंदर ही अंदर से उस घटना को लेकर जलता रहा। आखिर जिस मां ने पैदा किया उसने कभी अपनी बेटी को छुआ भी नहीं तो फिर ये जी..जाजी कौन होते हैं। स्सालाल..नशेड़ी..जब खेतों की ओर जाता तो ऐसे ही बकते हुए रास्ता तय करता। मां भी पूछ बैठती क्या बात है आजकल बहुत गुस्से में रहता हैं?
सावन का आखिरी दिन पहले से ही लोग हल्ला कर रहे हैं...कल रक्षाबंधन है..राखी है..राखी..ये शब्द सुनकर मेरा मन आत्मग्लानि से भर उठता हैं। मैं जानता हूं..तमाम परेशानियों के बावजूद दीदी आएंगी..खुशी खुशी..कई तरह की मिठाइयां लेकर.. अपने छोटे भाई के लिए..मां बड़े प्यार से कहेंगी..आज खेलने मत जाना..जल्दी से नहा लो और राखी बंधवा लेना और हर बार की तरह मुंह मत बनाना...
दोपहर से पहले 11 बजे तक दीदी आ गई..मेरी आरती उतारी..तिलक लगाया और मेरी कलाई पर रेशम का धागा बांध दिया और बोली.. ये लो..और पूरा सफेद रसगुल्ला मुझे खिला दिया..और नहीं नहीं करते मैं उनके हाथों को पकड़कर उनके मुंह की तरह बढ़ाने लगा। मेरी नजर उनके हाथों पर पड़े गहरे जख्म के निशान पर ठहर गई। मां बोली..राखी बंधवाई है तो बहन की रक्षा भी करना..मैं मां की तरफ देखता हूं..बहन के जख्मों को देखता हूं..सिहरन सी उठती है और मैं आत्मग्लानि से भर जाता हूं...मेरी आंखों से आंसू टपक पड़ते है..दीदी मुझे गोद में उठा लेती हैं और पश्चाताप में सिसकने लगता हूं। मां और दीदी की नजरें एक दूसरे पर ठहर जाती हैं..सवाल बनकर...?? क्यों हर बार राखी बंधवाकर रोने लगता हैं ?
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